पराजय का तात्पर्य है, पीड़ा, हानि, नुकसान, बाधा, विरोध, कार्य में अपूर्णता, अपमान इत्यादि। यदि कोई कार्य सिद्ध ना हो तो यह व्यक्ति की पराजय है और आगे की क्रियाओं के लिये उत्साह भी समाप्त हो जाता है। पराजित होना या ना होना यह भाग्य पर भी निर्भर है, इसका सत्य से कोई सरोकार नहीं है। यह हमारे अन्तः मन की न्यून शक्तियों और दैवीय ऊर्जा की कमी व निश्चेतना पर निर्भर करता है, साथ ही उन दोषों पर जो हमारे प्रगति के मार्ग को बाधित कर रहें है।
इस विजय दशमी के चैतन्य दिवस पर पुरूषोत्तम सर्वार्थ साधिनी विजयश्री शक्ति कवच धारण करने से व्यक्ति जीवन में आच्छादित राक्षसी दुःख पूर्ण स्थितियों पर विजयश्री प्राप्त करता ही है। जिससे वह अभाव, असफलता, पराजय रूपी रावणी आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर मर्यादा पुरूषोत्तममय षोड़श कला युक्त चेतना से आप्लावित होता है, साथ ही भौतिक जीवन में सभी सुखों का पूर्णता से उपभोग कर पाता है और उसके जीवन में आनंद, प्रसन्नता, वृद्धि का भाव बना रहता है।
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