सांसारिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती है, कि उसके पास लक्ष्मी का स्थायी वास हो और वह हर प्रकार से समृद्ध, सम्पन्न हो। लक्ष्मी का अभिप्राय केवल धन नहीं है। धन मुद्रा तो लक्ष्मी का एक चलाय मान स्वरूप है जो दैनिक व्यवहार में लेन-देन के रूप में प्रयुक्त होता है। लक्ष्मी का वास्तविक स्वरूप ‘श्री’ है और यह श्री रूपी लक्ष्मी अपने अष्ट स्वरूप धान्य लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, जय लक्ष्मी, वीर्य लक्ष्मी, राज लक्ष्मी और सौभाग्य लक्ष्मी के रूप में प्रगट होती है। जिनकी आपूर्ति तो होनी आवश्यक ही है, परन्तु महाकव्यों आदि ग्रंथों में लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन आया है, जिसे पूर्ण रूप से प्राप्त करना ही सही रूप में अक्षय लक्ष्मी को प्राप्त करना है।
लक्ष्मी का तात्पर्य है- सौभाग्य, समृद्धि, धन-वैभव, सफलता, सम्पन्न प्रियता, लावण्य, आभा, कान्ति तथा राजकीय शक्ति ये सब लक्ष्मी के स्वरूप हैं और इन्हीं गुणों के कारण भगवान विष्णु ने भी लक्ष्मी का वरण पत्नी के रूप में किया और इन सब गुणों का समावेश होता है, जो इनको प्राप्त कर लेता है, वही वास्तविक रूप से लक्ष्मीपति है।
अतः व्यक्ति अपने जीवन में उपरोक्त सुस्थितियों को आत्मसात करना चाहता है तो, उसके लिये आवश्यक है कि वह अक्षय लक्ष्मी कवच धारण करे। जिससे व्यक्ति अपने रोम-रोम में अक्षय तत्व को समाहित कर सकेंगे और साथ ही जीवन में किसी भी तरह का क्षय नहीं होता और व्यक्ति आर्थिक, भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति कर सकेंगे। जो भी व्यक्ति इस कवच को धारण कर लेता है उसके जीवन में समृद्धि व शुभता स्थायित्व रूप से बनी रहती है।
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