शास्त्रों में तो गुरू के महत्व का बहुत बखान किया गया है परन्तु उस युग के शिष्य-साधको और आज के धारणा में बहुत परिवर्तन आया है तो गुरू को भी वर्तमान स्थिति अनुसार ही निर्देश देने होते है, साधक के लिये बहुत सरल है अपनी गरिमा खोकर गुरू को हर समस्या के लिये अंकुश लगाना या फिर विलास करना पर गुरू का तो हर स्थिति में दायित्व है कि उसे समाधान प्रदान करना है, क्योंकि साधक तो बड़ी सरलता से गुरू को अपने हर कष्ट सोंप देते हैं, इन सभी में शिष्य का उत्तरदायित्व किस तरह है स्वयं की समस्याओं के समाधान हेतु, कितना संकल्पित है क्योंकि गुरू सदैव साधक के लिये कल्याणकारी है, गुरू पर विश्वास न हो तो, सबसे पहले उनके कहे अनुरूप आचरण करे, गुरू की बतायी गई क्रिया को भली भांति समझे क्योंकि गुरू को आपकी समस्या का ज्ञान व समाधान कई वर्ष की साधना के तप व चेतना शक्ति से प्राप्त हुआ है। सद्गुरूदेव ने अपने तप, साधना शक्ति से साधकों के लिये साधक तप का मार्ग सुगम बनाया है। जटिल से जटिल समस्या का समाधान साधना से सम्भव है, साधक को चाहिये कि वह पूर्ण विश्वास से अपने गुरू के ज्ञान-आज्ञा को आत्मसात करें। गुरू से अपेक्षा तो आप सभी करते हैं, परन्तु क्या एक साधक-शिष्य ने ये आंका कि वो कितने सत्य -सफल हुये है एक शिष्य बनने में।
इस संन्यास महोत्सव 08 नवम्बर 2022 को आप सभी सपरिवार सद्गुरूदेवजी के इस ज्ञान दिवस, त्याग दिवस पर आकर गुरू की चेतना को आत्मसात करे।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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