माँ और पिता के इस स्वरूप को अर्धनारीश्वर कहा गया है। जिस प्रकार प्रेम व तेज क्रोध दोनो का जीवन में होना अनिवार्य है उसी भांति जीवन के उतार चढ़ाव में हर तरह की परिस्थिति हमारे जीवन में आती ही है, सामान्य मानव को लगता है कि एक समस्या का अन्त हुआ हम विजयी हुये, एक नई समस्या कष्ट सामने आ गया, जीवन एक समस्या से निकल दूसरी समस्या में जाना ही हो गया है, हमे कष्ट अधिक व सुख कम नजर आते है, आपकी सारी समझ उस कष्ट के नीचे दब जाती है व विवेक खत्म हो जाता है और आपको लगता है की जीवन में कुछ ठीक नहीं, यही दो सोच है, जो एक शिष्य को नहीं रखनी है हमारा विचार एक समाधान से दूसरे समाधान की ओर होना चाहिये।
जब हम मन में ही कष्ट, समस्या के नकारात्मक भाव रखे तो कैसे हम समस्याओं के परे होंगे- हम तो सद्गुरूदेव स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी के शिष्य है हमारा सारा ध्यान समस्याओं के समाधान पर होना चाहिये, हमें दीन-हिन समस्याओं के लिये दबना नहीं अपितु एक शूरवीर सैनिक की भांति हंसते-खेलते समस्याओं का सामना करना है और वो तब सम्भव है, जब हम अपने जीवन में माँ पार्वती की तरह सौम्यता साथ ही महादेव शिव की तरह रोद्रता भी दिखाये तब ही हम जीवन की हर परिस्थितियों में विजयी हो सकेंगे।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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