वे संसाधनों का, ऐश्वर्यों का संचय स्वयम के भोग के लिये करते व अपने जीवन को सम्पन्न, सरल व सफल बनाने के लिये करते, परन्तु सभी का भोग नहीं कर पाते, जिस प्रकार हमें अपने पूर्वजों की धन-सम्पत्ति व विरासत प्राप्त होती है सभी भाती हमें उनके कर्मों का भी भोग प्राप्त होता है, इसलिये सदियों से हम हर वर्ष अपने पूवर्जो के सुफल की प्राप्ति व कुकर्म के प्रायश्चित के लिये पितृ पक्ष के पन्द्रह दिन श्राद्ध मय बिताते हैं, जीवन समाप्त होने पर व्यक्ति अपने साथ कुछ नहीं ले जाते, पर अपने पीछे अपना कर्म छोड़ जाते हैं, इन दिनों किये गये पितृ कर्मों से हमे अपने र्स्वग लोक विलिन प्रियजनों का आशीर्वाद प्राप्त होता है व हममें अच्छे संस्कारों की वृद्धि होती हैं, अधिकतर लोगों को अपने पितरों के मरण तिथि का भी ज्ञान नहीं होता। मेरा घर, मेरा पैसा, मेरी जमीन, मेरा हक करने में लगे रहते हैं और अपने पितरों के जाने के शोक का ढोंग भर करते हैं, ताकि स्वयं की इज्जत-सम्मान बना रहे, इसी कारण पितृ रूष्ट होते हैं। जिसके फलस्वरूप हमारा जीवन और अत्यधिक कष्टकारी हो जाता है और हमें कई तरह के अकारण समस्याओं को भोगना पड़ता है, जैसे पारिवारिक कलह, दुर्घटनायें, नौकरी व व्यवसाय में हानि होना व ऐसी कई समस्यायें, पर इन सब समस्याओं से बहुत ही सरलता पूर्वक बचा जा सकता है।
आप सभी इन दिनों निस्वार्थ धर्म का कार्य करें, अपने पितरों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने का प्रयत्न करें व उनके रिश्ते नातों को निभाएं व इन दिनों में विधिवत श्राद्ध करें जिससे आपके जीवन की समस्याओं का अन्त हो। यह आदिकाल से चली आ रही परंपरा श्रीकृष्ण द्वारा रचित इस पृथ्वी पर जन्में प्रत्येक मनुष्य द्वारा किया जाने वाला कर्म है, जिसे पूर्ण कर हम अपने पापों के भाग को कम करते हैं व अपने जीवन को पुण्य के माध्यम से पूर्णता की ओर ले जाते हैं, हमारे जीवन की कमियों को दूर करने व पूर्णता प्राप्त करने की क्रिया ही श्राद्ध कर्म है।
विनीत श्रीमाली
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