हमें यह छोटी उम्र से सिखाया गया है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है और यह बात सत्य भी है कि ज्ञान व प्रेम बांटने से बढ़ता है, अगर वह सच्चा व पवित्र हो। पर आज के युग में सभी ज्ञानी हो गये हैं, सभी को ज्ञान तो ढेना है पर ग्रहण किसी को नहीं करना और जो ज्ञान दिया भी जा रहा है, वे भी निरर्थक है। वास्तविक ज्ञान हमें विवेक पूर्ण बनाता है, हमें एक चेतना देता है, जिससे हम स्वयं के मन व शरीर का भरण-पोषण कर सके। वही पर बेकार-निरर्थक ज्ञान हमें हर अच्छी चीज पर संदेह करने व व्यर्थ में ही तार्किक बनाता है, हमारे आस-पास ऐसे कई लोग होते हैं जो हमेशा व्यर्थ में तर्क-वितर्क करते रहते हैं उन्हें हर बात पर संदेह होता है। अतः वे सदैव इस बात से ग्रसित होते हैं कि उनके आस-पास के लोग कोई षड़यंत्र कर रहे हैं, वे अनायास ही दुःखों से अपने आप को घेर लेते हैं। वे केवल दु:खों की नकारात्मकता ही फैलाते है।
जब आपके जीवन में कष्ट-दुःख-कठिनाईयां आती है तो लोग आपको सहानुभूति दिखाने आते हैं पर कोई भी आपके कष्टो का भोग सहन को तैयार नहीं होता। सुख में तो सभी आते हैं, हर्ष मनाने, मिठाई खाने, दुःख का जहर पीने कोई नहीं आता तो फिर क्यों अपने दुःख का ढिढोरा पीटे, बोलने-सुनने में अच्छा लगता है कि दुःख बांटने से कम होता है, पर वास्तविकता में दुःख बांटोगे तो उपहास का कारण बनोगे। लोग आपके दुःख की गपशप करेंगे। अपने दुःख का व्याख्यान केवल अपने गुरू के सामने करो, जिनमें यह सामर्थ्य है कि वे उन कष्टों को, उस विष को पी कर आपका जीवन अमृतमय कर सकें- आपको दुःख को हराकर विजय होने, सुखी होने का सामर्थ प्रदान करे। सुख का प्रचार करो दुःखों का निस्तारण।
इस दुनिया में ज्ञानी तो बहुत बैठे हैं वे घी से लिपटी जोश से भरी बाते बोल चले जायेंगे। पर आपका गुरू आपको वो ज्ञान देंगे जो प्रत्यक्ष है जो साक्षात हो, जो आपके वास्तविक जीवन में काम आये, अपितु वो नहीं जो आपको वास्तविकता से दूर ले जाये।
गुरू वो ज्ञान प्रदान करते हैं, जिससे मन शांत होता है अधीर नहीं।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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