वही जो अपने गुरू के बताये मार्ग पर पूर्ण निष्ठा एवं कर्मठता से चले! साधना को अपने नित्य कर्म का हिस्सा बनाले। एक सामान्य व्यक्ति जो नूगरा (बिना गुरू का) है वह अपना पूरा जीवन केवल अपने दुःखो के कारण को ढूंढ़ने में व स्वयं को एक झूठे ऐश्वर्य पूर्ण जीवन मे डुबाने में लगाते है, ऐसा ऐश्वर्य-सुख जो क्षणिक है, जो नश्वर है जो बस कुछ पल के लिये लुभावना लगता है। ऊबाऊ व घातक हो जाता है।
गुलाब जामुन केवल एक-दो ही अच्छे स्वादिष्ट लगेंगे उसके बाद भी खाने पर वह कष्टकारी रोगों का कारण बनेंगे, धन एक सीमा तक ही भोगने योग्य होगा उसके बाद वो ईर्ष्या, भय, शक, विवाद का कारण बनेगा। बिना गुरू के व्यक्ति लक्ष्य हीन होता है और लक्ष्य बना भी लेता है तो कुछ तुच्छ पाने की लालसा के पीछे, लालच खत्म या उस लक्ष्य को पाने मे समय अधिक लगता है तो लक्ष्य को ही भूल जाते है। परन्तु एक सच्चा शिष्य वह है जो अपने गुरू की चेतना के लिये एक शक्ति पुंज है व स्वयं ही अपने सुखो का कारण है वह अपने आसक्तियों को, कष्टों को नियंत्रण करना जानता है।
एक साधक के समक्ष आप हजारो प्रलोभन रख दो तो डिगेगा नहीं वह बस शान्त मन से मुस्कुराता रहेगा।
आपको भूख-नींद कोई समय, काल या मुहूर्त देख कर नही आती तो फिर आपको जो पाना है, जिसके अभाव के कारण आप स्वयं को दुःखी, दीन-हीन मान बैठे हैं, एक भिखारी की तरह हाथ फैलाये दूसरों पर अपने सुखों के लिये निर्भर हो, उसके चाहने से या उसकी भीख से आप प्रसन्न नहीं होगे। आपको जीवन मे वास्तविकता मे सुखों को प्राप्त करना है तो उसके योग्य बनो, उसको पाने के लिये साधक बनो, जीवन मे एक नित्यता-अभ्यास लाओ। गुरूदेव द्वारा बताई प्रत्येक साधना सार्थक है, सिद्ध है पर उसके मायने सभी के लिये अलग-अलग है। जिस प्रकार प्रेम के कई मायने होते है उसी प्रकार आपके द्वारा की गई साधना के पीछे आपकी क्या मूल इच्छा है उसी पर साधना सफलता निर्भर करती है।
अगर आपको एक सच्चा साधक बनना है तो आप अपने लक्ष्य को व गुरू के बतलाये मार्ग को एक कर चले तभी आप अपने जीवन को पूर्णता की ओर ले जा सकेंगे।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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