आपकी वह प्रकृति, वह स्वभाव आपके गुरू को सदैव से ज्ञात है जितना आप स्वयं को नहीं जानते, आपके मन के हर भाव को वे आपसे अधिक समझते है। ऐसा कोई भेद नहीं है जो उनसे छिपा हो, वो व्यक्त न करें तो अलग बात है क्योंकि गुरू-शिष्य के संबंध का मूल ‘‘त्वम् चित्त्ते मम् चित्ते त्वम् प्राण मम् प्राण ’’ ही तो है।
गुरू आपको वो ज्ञान, वो शक्ति व विद्या व साधना अवश्य देंगे पर आपको उस पर विश्वास करना होगा,
उसे अपने अंदर उतारना होगा, उसके हर शब्द, हर मंत्र को दिव्यता को समझना होगा। आपको उसको जीवन्त कर जीना होगा अपने अन्दर उस विश्वास को चेतना का स्वरूप देना होगा।
फिर चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति क्यों न आये, आपके अन्दर वह दिव्यता ही होगी। आप में वह भय नहीं रहेगा, आपमें भी वह आत्म शक्ति जाग्रत होगी व हर साधक बल-वृद्धि से लक्ष्मी युक्त हो सकेंगे।
आप सभी 19-20-21 अप्रैल को दुर्ग में सद्गुरूदेव जन्म उत्सव पर सम्मिलित होकर अपने उस भय पर विजय प्राप्त करें।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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