हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नदी किनारे बैठे थे। तभी अचानक माता पार्वती को चौपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो इस खेल में निर्णायक भूमिका निभा सकता। शिवजी और पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की मूर्ति बनाई और उसमें जान डाली और उसे खेल में सही फैसला लेने का आदेश दिया। खेल में माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात दे रही थी।
चलते खेल में एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। माता पार्वती ने गुस्से में आकर बालक को श्राप दे दिया और वह लंगड़ा हो गया। बालक अपनी भूल के लिए माता से बार-बार क्षमा मांग रहा था। बालक के निवेदन को देखते हुए माता ने कहा कि अब श्राप वापस नहीं हो सकता, लेकिन एक उपाय से श्राप से मुक्ति पाई जा सकती है। माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन पूजा करने इस जगह पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और सच्चे मन से व्रत पालन करना।
बालक ने व्रत की विधि जानकर श्रद्धापूर्वक संकष्टी का व्रत किया। उसकी सच्ची आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास लाने की इच्छा बताई। भगवान गणेश ने उस बालक को शिवलोक पहुँचा दिया, लेकिन जब वह पहुँचा तो वहाँ उसे केवल भगवान शिव ही मिले। माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गई थी। जब शिवजी ने बच्चे से पूछा की तुम यहाँ कैसे आए तो उसने बताया कि गणेश की पूजा से उसे यह वरदान प्राप्त हुआ है। यह जानने के बाद भगवान शिव ने भी पार्वती को मनाने के लिये संकष्टी का व्रत किया और इसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर कैलाश वापस लौट आयी ।
पौराणिक कथा के अनुसार, विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मी जी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी, सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परन्तु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया।
अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया, सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं, तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को न्योता नहीं दिया गया है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए यदि गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं, दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया-यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर का ध्यान रखना, आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। होना क्या था कि इतने में गणेशजी वहाँ आ पहुँचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया, बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेश जी के पास गए और रुकने का कारण पूछा, गणेश जी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें। तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जायेंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
गणेश जी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी, जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए और जगह-जगह से टूट गए, किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। तब नारद जी ने कहा-आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया, यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है, शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए, गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले, अब रथ के पहिए निकल तो गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया, अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नमः’ कहकर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनका पूजन किया होगा इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है, हम तो मूर्ख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं, आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आयेगा। इस कथा के अनुसार एकदंत संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत करने वालों पर गणेश भगवान का आशीर्वाद बना रहता है और भगवान की कृपा से उनके बिगड़े हुए काम बनते हैं और मार्ग में आने वाले संकट भी दूर हो जाते हैं।
भविष्य पुराण में बताया गया है कि संकष्टी चतुर्थी पर उपवास करने और सुबह-शाम विधि विधान के साथ एकदंत भगवान गणेश की पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं और बुद्धि, बल और विवेक की प्राप्ति होती है। भगवान गणेश अपने भक्तों के हर विघ्न को दूर करते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला बताया गया है और इस व्रत के करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है। साथ ही भगवान गणेश की कृपा से धन धान्य में वृद्धि होती है।
संकष्टी चतुर्थी पर सुबह उठकर व्रत का संकल्प लें और भगवान गणेश का ध्यान करें। इसके बाद किसी मंदिर या घर पर चौकी बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें और गंगाजल से छिड़काव करें। फिर सिंदूर, अक्षत, फल, फूल आदि चीजें अर्पित करें और घी से बनी मिठाइयों, मोदक का नैवेद्य लगाऐं। इसके बाद दूर्वा घास अर्पित करें और घी का दीपक जलाकर आरती करें। फिर गणेश चालीसा या गणेश अर्थवशीर्ष का पाठ करें। संकष्टी चतुर्थी पर शाम के समय भी भगवान गणेश की पूजा करें। इस व्रत में चांद की पूजा का भी महत्व बताया गया है। शाम के समय भगवान गणेश की पूजा करने के बाद चांद के दर्शन कर अर्घ्य दें और फिर व्रत खोलें।
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