कहा जाता है कि बीमारी, मुकदमा और गरीबी ये तीन शत्रु ऐसे हैं जो जीवन को दीमक की तरह खोखलाकर देने वाले हैं। एक बार जब ये तीनों जीवन में घुस जाते हैं तो जीवन शनैः-शनैः खोखला होता रहता है और ऐसा लगता है कि जीवन का कोई अर्थ ही नहीं है। मनुष्य का ये कर्त्तव्य है कि इन तीन बाधाओं से जीवन में जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी मुक्ति प्राप्त कर ले। जीवन में शत्रुओं द्वारा किये गए घात-प्रतिघात से जो स्थिति बनती है वह अत्यन्त पीड़ा दायक होती है। रोज-रोज कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना, सम्पत्ति पर दूसरों का कब्जा, परिवार में विभेद, ये सारी स्थितियाँ विनाशकारी ही हैं।
समस्त विघ्नों का नाश करने वाले विघ्नविनाशक गणेश की यदि साधक पर कृपा बनी रहे, तो उसके घर में ऋद्धि-सिद्धि, जो कि गणपति जी की पत्नियाँ हैं और शुभ-लाभ जो कि उनके पुत्र हैं, उनका भी स्थायित्व होता है। इसी हेतु श्री गणपति अवतरण पर्व पर सद्गुरूदेव जी भगवान गणपति जी की दिव्य चेतना युक्त तांत्रोक्त विघ्ननाश अघोर प्रयोग से यह ‘अखण्ड पुण्य प्राप्ति त्री विघ्न नाशक गणपति लॉकेट’ को प्राण प्रतिष्ठीत कर चेतन्य किये हैं। इसके निरन्तर धारण करने से साधक के घर में सुख, सौभाग्य, समृद्धि, मंगल, उन्नति एवं समस्त शुभ कार्य सफलतामय होते ही रहते हैं।
वास्तव में यह लॉकेट धारण करना ही भगवान गणपति का कृपाद्योतक है, त्री विघ्न नाशक तथा अखण्ड पुण्य प्राप्ति का प्रतीक है।
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