एक साधु-सन्यासी गृहस्थ जीवन को छोड़ अपना पूरा जीवन तप-प्रायश्चित में लगा देते है, उन्हें सामाजिक बंधन का कोई भय नहीं होता वे तो जीवन के गूढ को समझने व अपने पापों को अन्त कर मोक्ष की प्राप्ति के लिये संलग्न होते है, वही एक गुरू आपको अपने गृहस्थ जीवन को पूर्ण सुख, आनन्द के साथ भोगने व अपने कर्तव्य की पालना करते हुये एक साधक व गृहस्थ दोनों जीवन की पालना करना सिखाते है। आपको अपने पापो के अंत के लिये अपने गृहस्थ को नहीं त्यागना अपितु आप केवल भक्ति से जीवन के सर्व सुखो की प्राप्ति कर सकते है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण भगवान श्री गणेश जी है। जिन्हें अपनी मातृ भक्ति से असीम शक्तियाँ प्राप्त हुई, इतनी कि सर्व देवों की सेना को भी उन्होंने हंसी खेल में हरा दिया था, उनके शौर्य, पराक्रम से तीनों देव हतभ्रत रह गये थे। उनकी भक्ति अपने इष्ट, अपने गुरू माता पिता मे इतनी अत्यधिक थी। वे पूर्ण ब्राह्माण्ड में अद्वितीय है, उनकी इसी चेतना, विश्वास, फल स्वरूप उन्हें सर्व प्रथम पूजनीय माना गया है, जीवन में हर शुभ कार्य के आरम्भ से पूर्व भगवान गणपति को पूजा जाता है, कोई भी शुभ कार्य को पूर्ण करने के लिये गणपति आराधना अनिवार्य है उन्हें माँ लक्ष्मी का वरदान भी मिला है जो भक्त लक्ष्मी गणेश की आराधना साथ में करते है लक्ष्मी कभी उन्हें छोड़ कर नहीं जाती।
भगवान गणेश ने महाभारत का भी लेखन किया है जो ग्रन्थ कई वर्षो से मानव कल्याण के लिये व हर अच्छे बुरे का ज्ञान प्रदान करता है, ये तभी सम्भव हो सका जब उनकी भक्ति पर ब्रह्मा जी को पूर्ण विश्वास था।
आपको भी अपने जीवन में हर संभव मनोरथ को पूर्ण करने के लिये भक्ति के मार्ग पर चलना है, अपने जीवन को गृहस्थ जीवन के साथ साधनात्मक जीवन के समन्वय के साथ चलना है, जिसका ज्ञान आप अपने गुरू से प्राप्त कर सकते है-भक्ति में वो शक्ति है जो असम्भव कार्य को भी सम्भव बना सकती है। अपने मनचित में इसी भाव चिन्तन के साथ आप 17-18 अगस्त को गौरी शंकर सुहाग महाकाल शतायु जीवन धनदा महोत्सव में सम्मिलित हो।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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