मानवी जीवन पर आकाशस्थ ग्रहों के परिणाम होते हैं। यह बात आज की सदी में भी मान्य है। अशुभ या अनिष्ट ग्रहों का ज्ञान मनुष्य कें जन्मांग में स्थित ग्रहों से प्राप्त होता है। अशुभ या अनिष्ट ग्रहों के अशुभत्व या अनिष्टता को समाप्त कर शुभत्व या इष्टता प्राप्त करने के उद्देश्य से हमारे ऋषि-मुनियों ने रत्नों का आयोजन किया है। रत्न सुंदरता को बढ़ाता ही है, किंतु साथ ही मनुष्य के जीवन पर शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव डालता हैं।
नीलम शनिदेव का प्रधान रत्न है। इसे संस्कृत में इन्द्र नीलमणि, हिन्दी में नीलम और अंग्रेजी में सेफ़ायर टरग्यूज (Sapphire Turguese) कहते हैं। अधिकतर नीलम हिमालय, विन्ध्य, आबू पर्वतों के अंचल में, लंका, काबुल में मिलते है। प्रत्येक वर्ण के लिये इस रत्न को धारण करना श्रेष्ठ माना गया है।
मुख्यतः नीलम रंग में नीला होता है, मोर पंख के रंग का नीलम सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह चमकीला होता है तथा पतली-पतली नीली किरणें-सी निकलती दिखाई देती हैं।
नीलम पहनने का चुनाव अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिये। नीचे वे बिन्दु स्पष्ट किये गये हैं, जिन्हें नीलम पहनना श्रेयस्कर रहता है-
नीलम चार रत्ती या उससे बड़ा ही प्रभावशाली होता है। पंच धातु या लोहे की अँगूठी में यह विशेष फलदायी है। सोने की अँगूठी में भी नीलम पहिना जा सकता है। पाँच वर्षो तक पहिने गये नीलम का प्रभाव समाप्त हो जाता है, अतः इसके बाद दूसरा श्रेष्ठ नीलम अँगूठी में धारण करना चाहिये। किसी भी गुरूवार या शनिवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत हो कर निम्न शनि मंत्र का जाप कर धारण करें।
मंत्र का 21 मिनिट तक जप कर अँगूठी या लॉकेट बना कर धारण करें।
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