इस भौतिक संसार में अगर हम स्वयं का अच्छा चाहते है तो हमे स्वयं पहले दूसरो का भला करना होगा। सुख भोगने के लिये हमें पहले किसी के सुख का कारण बनना होगा। अगर हम खुद नकारात्मक है तो हम कैसे कुछ अच्छा सोच या अच्छा कर सकेंगे, उसके लिये अपने अन्दर से नकारात्मक भावना को निकाल कर, ज्ञान की ज्योति को प्रज्जवलित करना होगा।
जिस प्रकार व्यापार में मुनाफ़े के लिये आपको अच्छा सामान व अच्छी सुविधा देनी होती है, जिस प्रकार परिवार वालों का सहयोग प्राप्त करने के लिये उनका सम्मान व सेवा करनी पड़ती है, तभी एक सफ़ल व्यापार या परिवार का निर्माण हो सकता है।
गुरू कभी नहीं चाहता कि उनका शिष्य, साधक जन्म-जन्मों तक अपने बुरे कर्मों के कुप्रभाव का फ़ल भोगता रहे व अपना जीवन नारकीय परिस्थितियों मे व्यतीत करें। गुरू तो चाहता है, दुःखों की समाप्ति व कुकर्मों का पश्चाताप करना व सामान्य व्यक्ति न रहकर एक पूर्ण शिष्य, साधक बनाना ही एक गुरू का दायित्व होता है।
सुख- दुःख तो हमेशा आते रहते है, पर गुरू के सानिध्य में दुःख जल्द समाप्त होते है व कष्टों से लडने की असीम शक्ति आ जाती हैं। वर्ष के इस अन्तिम माह में आपके कष्टों का हरण हो व आने वाले वर्ष की चुनौतियों से लड़ने का सभी में जोश व उत्साह अपने अन्दर पैदा हो। आने वाला वर्ष आप सभी के लिये नई आशा व सर्व सुखो से पूर्ण हो।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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