ग्रहण काल ही वासत्व में साधना, दीक्षा, सिद्धि और सफलता को पूर्ण रूप से प्रदान करने में समर्थ होता है। जीवन के कुछ दिवस ही ब्रह्माण्ड में इस अद्भुत क्रिया के होते हैं, जब प्रकृति का अणु-अणु चैतन्य होने के साथ ऐसा वातावरण होता है, जो साधक को उसके परिश्रम का सौ गुना अधिक फल और जीवन को एकदम से परिवर्तित कर देने का क्षण होता है।
बुद्ध पूर्णिमा जो बोधित्व प्राप्ति अर्थात स्वयं का बोध करने का दिवस है, इस दिव्य सुअवसर पर अपने जीवन को आत्म-प्रकाश की ओर अग्रसर करने की चेतना से युक्त करने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य जाति के लिये आवश्यक है। व्यक्ति जब अपने आत्म ज्ञान से परिचित हो जाता है, तब वह अपने सामर्थय का पूर्ण उपयोग कर पाता है। अपनी इच्छा अनुसार अपने जीवन का स्वरूप निर्मित करता है।
इस चन्द्र ग्रहण युक्त बुद्ध पूर्णिमा के श्रेष्ठ योगों पर अपने इष्ट, सदगुरूदेवजी द्वारा शक्तिपात दीक्षायें ग्रहण करने पर व्यक्ति अपनी चेतना, क्षमता, गुणों व आत्म ज्ञान का बोध प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है। जिसके पश्चात् उसके सभी कार्य शीघ्र ही सफल हो पाते हैं, उसे किसी प्रकार की बाधा, परेशानी, अड़चन का सामना नहीं करना पड़ता, जिससे वह सर्वोन्नित के मार्ग पर गतिशील हो पाता है।
इस दीक्षा के माध्यम से साधक के भीतर की चेतना का उदय होता है और वह अपने सामर्थ्य, शक्ति से परिचित होने की क्रिया प्रारम्भ कर पाता है। जिससे उसके आत्म-शक्ति में वृद्धि होती है, निरन्तर प्रयासरत साधक धीरे-धीरे आत्म ज्ञान युक्त होते हैं और जीवन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि केवल और केवल आत्म ज्ञान युक्त होना है, स्वयं को परमार्थ की ओर अग्रसर करना है। यही जीवन का शाश्वत सत्य है।
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