उत्साही व्यक्ति के लिये कोई भी कार्य कठिन नहीं है, जबकि अनुत्साही व्यक्ति के लिये प्रत्येक कार्य दुष्कर और दुरुह है। उत्साह उसे सदैव चिन्ता मुक्त भी रखता है। उत्साही व्यक्ति की समस्यायें आसानी से सुलझ जाती हैं। यहां तक गम्भीर बीमारी में भी आश्चर्यजनक ढंग से सुधार होने लगता है।
संसार में ऐसा कोई कार्य नहीं है, जो मनुष्य के लिये असम्भव हो। असम्भव कार्य को भी सम्भव करने का प्रयास तभी सफल होता है, जब मनुष्य आशावादी होकर पूरे उत्साह और जोश के साथ जीवन में आगे बढ़ने का प्रयास करता है। सफलता अथवा विजय की आशा मनुष्य को विषम परिस्थितियों में भी संघर्ष करने की प्रेरणा देती है।
जीवन विभिन्न प्रकार के संघर्षो से भरा हुआ है। संघर्षों से मुकाबला करने में ही हमारी परीक्षा है, किन्तु इस परीक्षा में हम तभी सफल होते हैं, जब हम उत्साह पूर्वक अपने कार्य में लग जाये। अंग्रेजी की एक कहावत का भाव है- अप्र्रिय अथवा दुःखद परिस्थितियां अकेले नहीं आतीं। परिवार में अनेक समस्यायें एक साथ लेकर आतीं हैं, जो हमारी शक्ति और साहस को चुनौती देतीं है, जैसे परिवार में प्रियजनों की गम्भीर बीमारी, आय के ड्डोतो की कमी अथवा दीर्घकालीन महंगी चिकित्सा, जो कभी-कभी हमारे मन को चिन्तित और विचलित कर देती है। लेकिन यही तो समय है- हमारे धैर्य और उत्साह की परीक्षा का।
अतः परीक्षा की इस घड़ी में हमें हार नहीं माननी चाहिये, अपितु पूरे उत्साह और धैर्य के साथ इन विषम परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना चाहिये। संघर्षों का डटकर मुकाबला करने में ही बुद्धिमानी है। निराश होकर बैठ जाने से कभी किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता। इसलिये हमें अपने पुरुषार्थ से परिस्थितियों को मनोनुकूल कर निरन्तर आगे बढ़ते रहने का प्रयास करना चाहिये।
उत्साह बड़ा ही प्रेरणाप्रद होता है। वह हमें अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है। यदि हम किसी कार्य में श्रेष्ठता प्राप्त करना चाहते हैं अथवा उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचना चाहते हैं तो हमें स्वयं में उत्साह पैदा करना होगा तथा उसे अन्त तक बनाये रखना होगा।
आशावादी अथवा उत्साही व्यक्ति ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफल होता है। एकलव्य की कहानी से तो सभी लोग परिचित होंगे ही। गुरु द्रोणाचार्य द्वारा शिक्षा देने से मना करने पर भी उसने हार नहीं मानी, अपितु गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें पूर्ण आस्था और विश्वास रखते हुये उसने उत्साहित होकर ही सतत अभ्यास द्वारा अपने लक्ष्य की प्राप्ति की। इसके विपरीत यदि वह हतोत्साहित और निराश होकर बैठ जाता तो आज उसका नाम लेने वाला कोई न होता।
मनुष्य के जीवन में उत्साह का महत्वपूर्ण स्थान है। मनुष्य यदि उत्साही है तो वह प्रत्येक परिस्थिति में अपना मनोबल बनाये रख सकता है तथा अपने कार्य में सफलता प्राप्त कर सकता है। वैज्ञानिक निरन्तर आविष्कारों में लगे रहते हैं, लेकिन अनेक प्रयोगों की असफलता के बाद ही उन्हें अन्त में सफलता प्राप्त होती है। यह उनके द्वारा उत्साह को अनवरत बनाये रखने का ही तो परिणाम है।
नैपोलियन को आल्प्स पर्वत ने रास्ता दिया था। राजा रणजीत सिंह को बरसात में बढ़ी हुई सिन्धु नदी से भी उस पार जाने का मार्ग मिल गया था। यह इन लोगों के जोश व उत्साह के कारण ही हुआ।
उत्साह ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्यक्ति को विशिष्ट बनाता है। एक विद्यार्थी जिसके लिये विद्या अध्ययन केवल कर्तव्य है, एक साधारण नागरिक ही बन पाता है। जबकि दूसरा विद्यार्थी जिसके लिये विद्याध्ययन चरमोत्कर्ष पर पहुंचने का एक लक्ष्य है, वही आगे चलकर महान बन जाता है।
उत्साह ही कभी हंसी, कभी मुस्कान, कभी लगन और कभी शक्ति के रूप में प्रकट होता है। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम संसार के रंगमंच पर सदैव एक उत्साही और आशावादी अभिनेता के रूप में उतरें। हम ऐसा प्रयास करें कि उत्साह हमारे जीवन को रंग-बिरंगी खुशियों से भर दे तथा हमें उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचा दे।
निरन्तर कुशलता पूर्वक अच्छे कर्मों को करते रहना चाहिये- योगः कर्मसु कौशलम्। किन्तु हर कार्य शरीर अभिमान को त्यागकर ही करना चाहिये। कर्तापन का भान अथवा कर्तव्य अभिमान कार्य की सिद्धि में सबसे बड़ी बाधक है। सफलता, असफलता के संकल्प-विकल्प को तूल देने से कार्य की सिद्धि नहीं होती। समुद्र में तूफान के कारण नाव के डूबने का भय शाश्वत है, फिर भी कोई भी नाविक अपनी नाव को लगातार किनारे पर बांध कर नहीं रखना चाहता। अतः जीवन को उत्साहमय, उल्लासमय बनाते हुये उत्साह पूर्वक कार्य करना चाहिये। हिम्मत हारने से कुछ भी नहीं होता। लक्ष्य प्राप्त करना है तो बुलन्दी से काम लीजिये, मंजिल तक पहुंचने के लिये जोश के साथ होश भी रखना चाहिये। हरि के आश्रय से निरन्तर आगे बढ़ने पर मंजिल हासिल हो ही जाती है-हारिये न हिम्मत बिसारिये न नाम
एक पराजित राजा किसी गुफा में शरण लिये हुये था। एक मकड़ी गुफा की छत की ओर बार-बार पहुंचने का प्रयास करते हुये भी वापस गिर पड़ती थी। सातवें प्रयास में वह छत तक पहुंचने में सफल हो गयी। राजा को अनायास ही गुरु मिल गया। वह भी युद्ध में छः बार हार चुका था। मकड़ी के उत्साह से प्रेरित होकर उसने एक बार फिर शत्रु को ललकारा। विजय राजा की हुई है। इससे यह निश्चित है कि मंजिल बिना कष्ट उठाये नहीं मिलती।
अर्जुन जब कर्म-विमुख होने लगे तो उनके हित, चिन्तक भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रोत्साहित किया-
मृत्यु द्वारा हम नहीं मारे जाते, मृत्यु का भय ही हमारे विनाश का कारण है। अतः धैर्य के साथ अपना कर्तव्य निभाते रहना ही हमारे जीवन का लक्ष्य होना चाहिये। प्रेरणा और प्रवृत्ति अभिन्न है। प्रवृत्ति से कर्म में सातत्य बना रहता है। विकट परिस्थितियों पर काबू पाने के लिये हिम्मत और हौसला ही एकमात्र रामबाण औषधि है।
एक गाड़ीवान की गाड़ी कीचड़ में फंस गयी। गाड़ीवान हनुमान जी का भक्त था। गाड़ी को कीचड़ में ही छोड़कर उसने जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करना शुरु कर दिया। उसकी आर्त पुकार सुनकर मारुतिदेव उसके सम्मुख प्रकट हो गये। गाड़ीवान वर मांगा- हे महावीर! दया कीजिये और मेरी कीचड़ में फंसी गाड़ी को पार निकालिये। हनुमान जी बोले- भोले आदमी! मुझ अकेले से यह काम नहीं हो सकता। बैलों को उत्साहित कर जरा तू भी अपना जोर लगा। गाड़ीवान ने दीन होकर पूछा- फिर अंजनी कुमार! आप क्या करेंगे। हनुमान जी ने कहा- मैं केवल प्रेरणा देने के लिये हूं, कर्म तो तुम्हें स्वयं करना पड़ेगा।
नूतन वर्ष को हर स्वरूप में श्रेष्ठमय बना सकें और उसके लिये जो आवश्यक है वह उत्साह व उमंग साथ ही लक्ष्य प्राप्ति का भाव इन्हीं क्रियाओं में चेतना रूपी उच्चता हमें गुरु से प्राप्त होती है और यह चेतना निरन्तर क्रियाशील रहे, इसी हेतु जीवन को साध्य शक्तियों से युक्त कर सकें, इसी भाव-भूमि की प्राप्ति के लिये पंचशक्ति महामाया साधना महोत्सव के माध्यम से नूतन वर्ष के प्रत्येक दिवस को प्रकाशमय कर सकेंगे।
ऐसी ही समस्त क्रियायें आत्मसात करने हेतु 28-29-30 दिसम्बर को बिलासपुर छ-ग- में जाज्वल्यमान नूतन वर्ष साधनात्मक महोत्सव में योगा, प्राणायाम, यज्ञ, हवन, मंत्र जाप, साधना, अंकन की क्रियाओं के माध्यम से महामाया शक्तियों को मजबूर कर देंगे कि वे साधक, भक्त के जीवन में आने वाला यह नूतन वर्ष भूतकाल की विषम स्थितियों को सर्व स्वरूप में संहार कर शिव परिवारमय निर्मित कर सकें। आप सभी का सहृदय स्वागत है—!
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