दरिद्रता को जीवन में कभी भी प्रश्रय नहीं मिला। यदि हमारे प्राचीन ग्रंथों को टटोलकर देखें तो उसमें कहीं पर भी दीनता या दरिद्रता की सराहना नहीं हुई है। हमारे कोई भी ऋषि, मुनि, सिद्ध योगी या तपस्वी दरिद्र नहीं रहे। धन की महत्ता को उन्होंने भी समझा था और उन्होंने भी स्वीकर किया था कि जीवन की पूर्णता भूखमरी, गरीबी, दीनता या दरिद्रता नहीं है, अपितु समृद्धता, सुख और सौभाग्य है।
यदि परिश्रम से ही समृद्धता प्राप्त होती तो जितने भी मजदूर पत्थर तोड़ने वाले या मेहनत करने वाले कारीगर हैं, वे सभी लखपति, करोड़पति अथवा समृद्धिशाली होते क्योंकि वे नित्य दस-बारह घण्टे परिश्रम करते हैं और जरूरत से ज्यादा मेहनत कर शरीर तोड़कर कार्य करने के बाद विश्राम करते हैं, फिर भी उसके जीवन में दरिद्रता व गरीबी बनी रहती है। इससे स्पष्ट है कि मात्र परिश्रम से जीवन में समृद्धता नहीं आ सकती।
और न भाग्य से ही जीवन की गरीबी मिट सकती है। यदि हम अपने चारों ओर दृष्टि डालें तो मुठ्ठीभर लोग ही धनवान या समृद्धिशाली हैं और लगभग 80 प्रतिशत व्यक्ति गरीबी की रेखा से भी नीचे जीवन यापन कर रहें हैं या औसत मध्यम वर्गीय जीवन जी रहे हैं।
तो क्या इन सबके भाग्य कमजोर हैं ? क्या इन सबके भाग्य में गरीबी ही लिखी हुई है, क्या इन सबके जीवन में सामान्य जीवन जीने की लकीर अंकित है? ऐसा तो संभव नहीं है, खाली भाग्य के भरोसे बैठे रहने से ही जीवन में समृद्धता और ऐश्वर्य प्राप्त नहीं हो सकता।
और जब तक आपके जीवन में समृद्धता सुख और सौभाग्य प्राप्त नहीं हो सकता, तब तक न तो आप अपनी इच्छाओं को पूर्णता दे सकते हैं और न आपके मन में जो कार्य करने की भावना है उनको सम्पन्नता, श्रेष्ठता दे सकते हैं। यदि आपको चित्रकला का शौक है और इस कला को ऊंचाई पर उठाना है तो केवल रोटी रोजी के चक्कर में पड़कर अपनी मन की हसरत पूरी नहीं कर सकते है। इसके लिये आप जब अपने जीवन की मूल आवश्यकताओं की समस्याओं से परे हटेंगे तभी अपने मन में जो भावनाएं है, उनको ऊंचाई पर उठा सकेंगे।
अब यह प्रामाणिक रूप से स्पष्ट हो गया है कि मनुष्य केवल अपने प्रयत्नों या परिश्रम से ही पूर्णता, समृद्धता और ऐश्वर्य प्राप्त नहीं कर सकता, इसके लिये यह जरूरी है कि उसे परिश्रम के अलावा दैवी सहायता भी चाहिये और जब तक हम इस दैवी सहायता को प्राप्त नहीं कर पाते, जब तक उन्हें अपने अनुकूल नहीं बना पाते तब तक हमारा जीवन सामान्य सा जीवन ही बना रहेगा, चाहे हम कितना ही परिश्रम कर लें, चाहे हम कितना ही भाग्य का रोना रो लें।
आप निर्णय कर लीजिये, भली प्रकार से विचार कर लीजिये पर ऐसा न हो कि सोचने-सोचने में ही आपको कई वर्ष लग जाएं और जीवन व्यतीत हो जाय, ऐसा न हो कि आप यह सोचकर बैठ जायें कि इस क्षेत्र का मार्गदर्शक या गुरु स्वयं आपके दरवाजे पर आकर दरवाजा खट-खटायेगा और आपको मार्ग दर्शन देगा। इसके लिये स्वयं ही प्रयत्न करना पड़ेगा, स्वयं ही आगे बढ़कर निर्णय करना होगा और जल्दी से जल्दी निश्चय कर अपने पारिवारिक उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिये लक्ष्मी स्वरूप में साधना आवश्यक है।
यदि जीवन में देखा जाये तो हमारे सामने हजारों-हजारों उदाहरण है कि उन्होंने गरीबी में, भूखमरी में, कंगाली में जन्म लिया और सही मार्गदर्शन के साथ जीवन के उच्च्तम सोपान पर पहुंचे। अमेरिका के रॅाकफेलर अत्यन्त गरीबी में पैदा हुये, पर उन्हें जीवन में संत पीटर मिले और उनके बताये हुये रास्ते पर चलकर वे करोड़पति-अरबपति बनें। ओनासिस जन्म के समय या बचपन में इतने गरीब थे कि कई बार उन्हें भरपेट खाना भी नहीं मिलता था, पर उन्हें संत बर्ग मिले और उन्होंने दैवीय कृपा प्राप्त करने का रास्ता बताया जिससे ऑनासिस अपने जीवन में अरबपति बन सके। इसी प्रकार इंग्लैण्ड के कुबेरपति गुरुच, जापान के अरब पति आनाविबा आदि साथ ही हमारे आस-पास भी सैकड़ों उदाहरण हैं, जिन्होंने अत्यन्त गरीबी में जन्म लेकर भी उच्च संतों के मार्ग दर्शन की छाया तले आगे बढ़कर समृद्धतम जीवन प्राप्त किया और अरबपति बनें।
यह कल्पना नहीं, अपितु हकीकत है, आप चाहें तो इस गरीबी से ऊपर उठकर अपने जीवन को पूर्ण समृद्ध बना सकते हैं। अपने घर की दरिद्रता हजारों-हजारों मील दूर धकेल सकते हैं, जीवन की कंगाली को परे हटा सकते हैं और अपने जीवन में समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं, जो अपने आप में अद्वितीय हो, सौभाग्यदायक हो पूर्ण और ऐश्वर्यवान हो।
इसी हेतु सर्व दुःख भंजन अष्ट लक्ष्मी साधना श्री सूक्त व सहस्त्र लक्ष्मी के भावों से चैतन्य किया जा रहा है। इस साधना द्वारा जीवन की दरिद्रता, अभाव, गरीबी आदि अशुभता का शमन हो सकेगा और दीपावली महालक्ष्मी पर्व पर शुभ-लाभमय अष्ट सिद्धि स्वरूप में धन, विद्या, धान्य, गज, संतान, विजय, ऐश्वर्य लक्ष्मी से आप्लावित हो सकेंगे, जिससे कुबेरमय चेतना से जीवन का सर्व स्वरूपों में विकास होगा और आनन्द, सुख, भोग, विलास, सौन्दर्य, रस, आभूषण, वस्त्र, कीर्ति, गौरव, भू-भवन, वाहन आदि मनोकामनायें निश्चित ही पूर्ण होंगी।
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