ऐसी स्थिति में व्यक्ति कर्महीनता से ग्रसित होने लगता है और उसके भावना, विचार, चिंतन में भी बदलाव दिखता है। यह मानव में स्वाभाविक रूप से देखने को मिलता है, इसे गुण-अवगुण कुछ भी कहा जाये लेकिन वास्तविक सत्य तो यही है कि परिस्थितियां ही मनुष्य के भाव, विचार और कर्म के लिये पूर्णतः जिम्मेदार है। जैसी परिस्थितियां उसके जीवन में निर्मित होती हैं उसी अनुसार वह कर्मशील होता है।
इसलिये जीवन में लक्ष्मी से पूर्व परिस्थितियां अनुकूल होनी चाहिये और ये अनुकूल स्थितियां भी अष्टलक्ष्मी का ही स्वरूप है। यदि जीवन में परिस्थितियां नहीं अनुकूल होंगी तो आप श्रेष्ठता नहीं प्राप्त कर पायेंगे। आप लाखों रूपये खर्च करके भी व्यापार में श्रेष्ठ आय नहीं प्राप्त कर पाते, क्या कारण है?
हजारो रूपयें खर्च करने पर भी रोग की समाप्ति नहीं होती, क्यों? क्योंकि परिस्थितियां प्रतिकूल थी और यदि परिस्थितियां अनुकूल हों तो आप छोटे से व्यापार में श्रेष्ठ धन आय अर्जित करने में सफल होते हैं। पचास रूपये की दवा से आपको स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होने लगता है। वास्तव में परिस्थियां जीवन का वह बहुमूल्य तथ्य हैं, जिसे प्रत्येक व्यक्ति को स्वीकार करना ही चाहिये।
प्रश्न यह है कि परिस्थितियां आपके अनुकूल कैसे निर्मित हों? किस विधि से आप परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना सकते हैं! एक बात सदा ध्यान रखें परिस्थितियों के अनुकूल – प्रतिकूल भाव पर ही आचार-विचार का निर्माण होता है और आचार-विचार के भाव पर कर्म करने की इच्छा शक्ति जाग्रत होती है तथा कर्म से ही लक्ष्मी को प्राप्त किया जा सकता है।
कर्म भी दो रूपों में विभाजित है, प्रथम आध्यात्मिक कर्म जिसे आप पूजा, अर्चना, उपासना, साधना, मंत्र जाप, दीक्षा आदि के रूप में जानते हैं। दूसरा अर्थ (धन) प्राप्ति के लिये आप जो भी कार्य कर रहें हैं। तात्पर्य यह है कि आध्यात्मिक-भौतिक कर्म के संयोग व समन्वय से धन अर्थात् लक्ष्मी की प्राप्ति हो पाती है।
धन प्राप्ति के लिये तो आप दैनिक रूप से प्रतिदिन भौतिक कर्म करते रहते हैं, कभी-कभी आध्यात्मिक कर्म करने का भी संयोग मिलता होगा। लेकिन लक्ष्मी प्राप्ति के लिये आध्यात्मिक कर्म करने का जो सर्वश्रेष्ठ दिवस है, वह दीपावली महापर्व है, जिसे प्रकाश पर्व भी कहा जाता है, जो जीवन में सुस्थितियों के प्रकाश का संचार करने में सहायक है।
दीपावली महापर्व में केवल लक्ष्मी प्राप्ति का भाव ही नहीं समाहित है बल्कि जीवन का वह प्रत्येक पक्ष जिस पर सांसारिक गृहस्थ जीवन की आधार शिला है, वे सभी पक्ष लक्ष्मी के भाव से आप्लावित हैं। इसलिये लक्ष्मी सहस्र स्वरूपा है। केवल रूपये, पैसे, भवन, वाहन होने से क्या प्रसन्नता आ सकती है। हमारे पास लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति हो पर हमारे पास ज्ञान-सम्मान न हो, संतान ना हो, धन का उचित रूप से उपयोग करने की योग्यता ना हो, सदा धन खोने का भय लगा रहता हो, रूग्णता से ग्रसित हों, अर्जित धन पानी की तरह स्वास्थ उपचार में व्यर्थ खर्च हो रहा हो, कोर्ट-कचहरी, मुकदमे आदि में अनावश्यक रूप से बर्बाद होता हो तो ऐसे धन की क्या उपयोगिता? धन कमाना कोई मुश्किल कार्य नहीं है, चुनौतीपूर्ण तो उस धन से समृद्धि की प्राप्ति व अपने जीवन को खुशहाल बनाना है।
कभी आप विचार करें स्वास्तिक (चिन्ह) के दोनों तरफ शुभ-लाभ क्यों लिखा जाता है। क्योंकि मात्र लाभ अर्थात् धन से जीवन में सुख-समृद्धि नहीं आ सकती, इसलिये लाभ से पहले शुभ (मंगलमयता) का जीवन में पूर्ण रूपेण संचार होना चाहिये। शुभ का तात्पर्य जीवन के सर्वमंगलता से है जिसमें जीवन के प्रत्येक पक्ष सम्मिलित हैं। जो लक्ष्मी के अष्ट स्वरूपों में दर्शाये गयें है-
आदि लक्ष्मीः जो जीवन के मूल तत्व से परिचित कराने में सहायक होती है और सत्य का बोध कराती है।
धन लक्ष्मीः जिसके द्वारा जीवन में धन, वैभव, सम्पत्ति, आय, संसाधन, भवन, वाहन आदि की प्राप्ति होती है।
विद्या लक्ष्मीः महालक्ष्मी में विद्या तत्व भी समाहित है, जिसके द्वारा ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन में स्थिर मनोदशा निर्मित होती है, जिससे जीवन का भटकाव समाप्त हो जाता है और साधक अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर गतिशील बना रहता है।
धान्य लक्ष्मीः धान्य लक्ष्मी का तात्पर्य अन्न, भोजन आदि सेवन की वस्तुओं से है, जिनकी उपासना धान्य लक्ष्मी के रूप में की जाती है। बिना अन्न के जीवन संभव ही नहीं, ना ही जीवन में विकास संभव है।
गज लक्ष्मीः खोये हुये मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश की प्राप्ति में गज लक्ष्मी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। गज लक्ष्मी की पूजा से अपने अधिकार व वर्चस्व की प्राप्ति होती है और शक्ति, बल, ऊर्जा की वृद्धि होती है।
संतान लक्ष्मीः परिवारिक व संतान सुख वृद्धि के लिये संतान लक्ष्मी की उपासना की जाती है, जो सर्व स्वरूपों में संतान सुख से आप्लावित करती है।
विजय लक्ष्मीः पैतृक धन, सम्पत्ति, सम्पदा तो जीवन में प्राप्त हो सकता है, परन्तु जीवन में स्वयं के बल पर सफलता-श्रेष्ठता विजय लक्ष्मी के द्वारा ही प्राप्त होता है।
ऐश्वर्य लक्ष्मीः धन हमारे जीवन में उपयोगी हो और हम अर्जित धन का पूर्ण भोग कर सकें तथा अर्जित धन में निरन्तरता बनी रहे, इस हेतु ऐश्वर्य लक्ष्मी की उपासना की जाती है।
आद्या शक्ति महालक्ष्मी के इन्हीं अष्ट स्वरूपों से सर्व सुखमय जीवन की प्राप्ति होती है और माँ लक्ष्मी द्वारा ही सर्व दुःखों का भंजन हो सकता है। यदि जीवन में अष्ट स्वरूप में लक्ष्मी की प्राप्ति हो और सांसारिक जीवन का प्रत्येक पक्ष सम्बल हो तो जीवन के सभी दुःखों का शमन निश्चित रूप से होता ही है। इसी हेतु सर्व दुःख भंजन महालक्ष्मी साधना दीपावली महापर्व पर सम्पन्न करने हेतु कैलाश सिद्धाश्रम- जोधपुर में अष्ट लक्ष्मी, महालक्ष्मी सूक्त, श्री सूक्त व सहस्र लक्ष्मी के भावों से चैतन्य किया जा रहा है। इस साधना को सम्पन्न कर साधक सांसारिक जीवन को समृद्ध-सम्बल बनाने में पूर्णता समर्थ अष्ट लक्ष्मी की चेतना को पूर्णरूपेण आत्मसात कर सकेंगे, जिससे जीवन के सभी कष्ट, बाधा, विषमता, दुखों का शमन होगा और महालक्ष्मी पर्व पर शुभ-लाभमय अष्ट सिद्धि स्वरूप धन, विद्या, धान्य, गज, संतान, विजय, ऐश्वर्य लक्ष्मी से आप्लावित हो सकेंगे, जिससे कुबेरमय धन शक्ति युक्त जीवन निर्माण होगा और आनन्द, सुख, भोग, विलास, सौन्दर्य, रस, आभूषण, वस्त्र, कीर्ति, गौरव, भू-भवन, वाहन आदि मनोकामनाएं निश्चित ही पूर्ण होंगी।
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