पारद को रस, शिव, स्वर्ण, रोगमुक्तिकरण, अजर, अमर, गगनचारी और रसेन्द्र कहा गया है, शास्त्रों में बताया गया है कि जो व्यक्ति पारद धारण कर उसका नित्य दर्शन करता है या उसका भक्तिभाव से स्मरण करता है, वह कई जन्मों के पापों से छूट जाता है और उसे परम पुण्य की प्राप्ति होती है।
जब पारद मुद्रिका का निर्माण हो जाता है, तब इसे विशेष मंत्रों से मंत्र सिद्ध कर, वशीकरण और सम्मोहन मंत्रों से सम्पुटित किया जाता है और फिर चैतन्य मंत्रों से इसे सिद्ध किया जाता है। आज के युग में यह अलौकिक तथ्य है, यह अद्वितीय मुद्रिका है, तंत्र के क्षेत्र में सर्वोपरि वस्तु है, जिससे हमारा जीवन, सहज, सुगम, सरल और प्रभायुक्त बन जाता है और स्वतः ही गुरू की चेतना उस साधक या शिष्य के हृदय में समाहित होने लगती है और वह श्रेष्ठता की ओर अग्रसर हो जाता है। सद्गुरूदेव जी द्वारा श्रावण मास के पावन पर्व पर साधकों के लिये चैतन्य कर यह श्रावणमय शिव शक्ति पारद मुद्रिका प्रदान की जा रही है।
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