लेकिन वास्तव में संसार ने केवल उनको ही सराहा है, जाना है, सम्मान दिया है, जिन्होंने अपने भाग्य का निर्माण स्वयं किया हो तथा विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में जूझते हुए भी अपने लक्ष्य का ध्यान रखा और उसकी ओर बढ़ते हुए निरन्तर प्रयासरत रहे। व्यक्ति के जीवन में यदि समस्याएं नहीं आयें, तो व्यक्ति के जीवन जीने का सार्थक उद्देश्य ही समाप्त हो जाताहै, जीवन तो वह होता है, जो वास्तव में जीवन्त हो, बार-बार समस्याएं आयें और व्यक्ति उन समस्याओं का समाधान अपनी शक्ति तथा बुद्धि के द्वारा प्राप्त करते हुए आगे आने वाली नई चुनौतियों पर विजय प्राप्त
जीवन में अपराजित अर्थात् विजयी रहने का तात्पर्य है, प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना, अपनी क्षमता तथा सामर्थ्य के अनुसार जो काम हाथ में लें, उसमें लक्ष्य सिद्धि अवश्य प्राप्त हो, शास्त्रों के अनुसार अपराजिता के छः अर्थ हैं-
व्यक्ति के जीवन में समस्याएं मुख्यतः सांसारिक ही होती हैं। ये समस्याएं उसे इस संसार में अन्य व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न की गई परिस्थितियों के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं। परिस्थितियों को अपने अनुरूप ढालना ही व्यक्ति की विशेषता कही जाती है और वही व्यक्ति पूर्ण पुरुष बन सकता है, जिसके जीवन में निरन्तर साहस का उद्वेग संचरित होता हो, वह व्यक्ति जीवन में निरन्तर कुछ नवीन करने का विचार करता रहे, अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु अपना मार्ग स्वयं बनाने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहे।
संसार में व्यक्ति को जीवन तो जीना ही है और जीवन के साथ बाधाएं और कष्ट जुड़ेंगे ही। कुछ बाधाएं परिवार द्वारा आरोपित होंगी, जिन्हें जिम्मेदारियां कहा जा सकता है और कुछ बाधाएं जिस प्रकार का भी कार्य कर रहें हैं, उसके द्वारा आयेंगी, क्योंकि किसी भी व्यक्ति के लिए जीवन मार्ग पर फूल बिछे नहीं होते। इस पथ पर पुष्प भी हैं, तो कांटे भी हैं, कंकड़ भी हैं, तो समतल धरती भी है, तो फिर किस प्रकार व्यक्ति अपने आपको किन शक्तियों के माध्यम से ऐसा बना ले, जिससे कि वह कष्टों पर स्वयं विजय प्राप्त कर सके।
विजय का तात्पर्य है, कि जो भी जीवन में कांटे हैं, जो भी जीवन में कंकड है, जो भी जीवन में न्यूनताएं है, जो भी जीवन में शत्रु हैं, उन सब पर पार पाना और उन सबको समाप्त कर देना। यदि जीवन में विजयी बनना है, तो मनुष्य को कुछ ऐसा कार्य करने के लिए निरन्तर प्रेरित होना पड़ेगा, जिससे कि उसका जीवन दूसरों से कुछ अलग बन सके।
जीवन में मुख्य समस्याएं जिनके कारण व्यक्ति को पराजय प्राप्त होती है, इसके मूल में तीन प्रकार के ही शत्रु मुख्य हैं, ये शत्रु हैं-
दैहिक अर्थात् शरीर की कृशकायता, शरीर की क्षीण शक्ति, शरीर में रोग, कष्ट।
दूसरा शत्रु है, जो कि आपके कार्य में आपकी आलोचना (निन्दा) करते हैं, सुनियोजित तरीके से आपको आगे बढ़ने से रोकते हैं और आपकी उन्नति का मार्ग अवरुद्ध करते हैं।
तीसरे प्रकार के शत्रु मानसिक शत्रु होते हैं, जो कि आपके विचारों को जड़ कर देते हैं, आपके उत्साह की गति मंद कर देते हैं, आपकी आन्तरिक शक्ति को क्षीण कर देते हैं, जिसके कारण आपके अपने जीवन में कोई भी कार्य करने का उत्साह ही नहीं बचता है।
यदि आपका जीवन मार्ग केवल कण्टकाकीर्ण ही है, और जीवन में शत्रुओं की प्रबलता है, भय ने इस प्रकार से जीवन को घेर लिया है कि किस प्रकार से जीवन व्यतीत किया जाए, वह उपाय ही नही मिले, तो जीवन में निराशा आती है और निराशा व्यक्ति को, उसकी आत्मा से तोड़ने का प्रयास करती है, उसे जीवन की निरर्थकता का अनुभव होने लगता है और उसे लगता है, कि ऐसा जीवन जीने से क्या लाभ है, जिसमें केवल जीवन को भार समझ कर ढ़ोया जाय, कि उसमें और पशु में कोई अन्तर ही न रह जाय।
यदि व्यक्ति प्राण ऊर्जा से युक्त है, यदि व्यक्ति के जीवन में चेतना है, विशेष संस्कार है और एक अजस शक्ति का भण्डार जाग्रत है, तो वह व्यक्ति अपने जीवन में किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मान सकता, उसे विषम से विषम परिस्थिति में भी ऐसा ही लगता है कि मैं इस पराजय की स्थिति को विजय की स्थिति में बदल दूंगा और वह प्राणवान ऊर्जा का पुंज होकर अति तीव्र गति से कार्य करता है, अतः वह स्वयं परिस्थितियों का दास न होकर परिस्थितियों को अपना दास बना लेता है और फिर वही व्यक्ति अपने जीवन को अपनी इच्छानुसार जी सकता है, जीवन की पूर्णता का बोध कर सकता है, जीवन में आनन्द के सभी आयामों को प्राप्त कर सकता है। ऐसा ही व्यक्ति वास्तव में मनुष्य जीवन जीता है।
सूर्य ग्रहण जो ऊर्जा शक्ति का अजड्ड भण्डार है, सूर्य से ही सम्पूर्ण धरा ऊर्जा ग्रहण कर अपने जीवन को जीवन्त शक्ति से युक्त बनाती है, सूर्य से ही सम्बलता प्राप्त होती है। क्रियमाण की क्रिया भी ऊर्जा शक्ति से युक्त होकर सम्बल होने का विधान है।
इस ओजस्वी दिवस पर ऊर्जावान, शक्तिवान, समर्थवान, श्रेष्ठ, सफल व जीवन्त जीवन की प्राप्ति की क्रिया मानस टैलीपैथी के माध्यम से सूर्य ग्रहण के दिव्य दिवस पर विजय सिद्धि क्रियमाण सिद्धि दीक्षा परम पूज्य सद्गुरुदेव प्रदान करेंगे, वे साधक जो उत्साह, उमंग, जोश से जीवन के पूर्ण लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रयासरत हैं, उन्हें ऐसे सुअवसर का पूर्ण लाभ अवश्य उठाना चाहिए।
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