अगर कहीं, किसी जगह प्रेम का जिक्र होता है, तो राधा का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है—-क्यों? क्योंकि वह एक दृढ़ निश्चयी कन्या थी, एक निर्भीक प्रेमिका थी, एक संवेदनशील स्त्री थी—–एक बार कृष्ण को चाहा, तो फिर जीवन भर उसकी मूर्ति को अपने हृदय में बसाये रखा, फिर कभी भी किसी अन्य पुरुष को देखना तो दूर, ऐसा ख्याल भी उसके मन में नहीं आया।
यह बात अलग है, कि उसके पिता ने जबरन उसका विवाह पास के गांव के एक बनिये से कर दिया था, पर फिर भी जीवन भर वह अपने कृष्ण की रही, अपने कान्हा की ही रही— और उसने इस प्रकार यह सिद्ध कर दिया, कि स्त्री को रोका तो जा सकता है, परन्तु उसके मन को विवश नहीं किया जा सकता– वह तो एक बार जिस पर आ गया—-तो आ ही गया।
वृषभानु की वह भोली-भाली कन्या, जिसने अपना समस्त जीवन कृष्ण की बाहों में, अपने प्रियतम के आगोश में, यमुना तट पर बिता दिया था, वह बाद में विवश हो एक छोटे से घर में कैद तो हो कर रह गई, पर उसकी समस्त देह, उसका मन, उसका रोम-रोम मानों कृष्ण-कृष्ण की ही रट लगाता रहा—-!!
कृष्ण भी राधा के बिना एक क्षण भी नहीं रह पाते थे—एक दिन भी उससे मिले बगैर निकल जाता था, तो उनको बेचैनी होने लग जाती थी–और वे तुरन्त यमुना किनारे अपनी मुरली की तान छेड़ कर अपनी प्रियतमा को आने का निमंत्रण देने लगते—-!
कृष्ण जैसे निर्मोही को भी राधा ने वश में कर लिया था—-परन्तु यह सम्भव कैसे हुआ? उनके इर्द-गिर्द तो सैकड़ों गोपियां और ग्वाल-बालाएं विचरती रहती थीं, जो अत्यन्त आकर्षक और सम्मोहक थीं, परन्तु कृष्ण तो उनकी ओर देखते भी न थे तो इस चंचला ने, इस ग्वाल-कन्या ने कान्हा पर ऐसा क्या जादू कर दिया, कि वे उसके वशीभूत हो गए?
जब समस्त गोपिकाएं कृष्ण को रिझाने की चेष्टा करतीं और उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करने की कोशिश करतीं, तो राधा मन ही मन सोचती, कि एक न एक दिन कान्हा को अपना बनाना ही है, फिर चाहे उसके लिए कुछ भी क्यों न करना पड़े। इसके साथ ही साथ—–राधा को इस बात का आभास भी था, कि कृष्ण सामान्य पुरुष नहीं हैं, पुरुषोत्तम हैं, सोलह कलाओं से युक्त हैं, अतः वह परेशान रहती, कि किस प्रकार इस पूर्ण पुरुष को अपना बनाऊं?
इस सोच-विचार में वह खाना-पीना भी भूल गई, निद्रा उसकी आंखों से दूर हो गई और वह दिन-प्रतिदिन कमजोर एवं विक्षिप्त सी हो गई। एक दिन जब वह कृष्ण के ही ख्यालों में डूबी हुई यमुना के तट पर विचरण कर रही थी, कि अचानक देवर्षि नारद उसके समक्ष प्रकट हुए।
नारद के पूछने पर राधा ने उन्हें अपनी आप बीती कह सुनाई और अंत में यह भी जोड़ दिया- यदि मैं कान्हा को न पा सकी, तो यमुना में ही कूद कर अपने प्राणों को विसर्जित कर दूंगी। नारद को तो हमेशा अठखेलियां ही सूझती है, कुछ देर तो वे सोचते रहे, कि भगवान को किस तरह बांधा जाये, मैं तो बांध नहीं पाया, शायद यह बांध ले। मन ही मन मुस्कुरा कर उन्होंने कहा- एक विधि तो है, परन्तु! परन्तु क्या बताइये न! चुप क्यों हो गए?
परन्तु वह अत्यधिक जटिल है, तुम कर पाओगी? क्यों नहीं, आप बोलिये तो सही——अपने प्राणों की आस तो मैं पहले से ही छोड़ बैठी हूं। यद्यपि कृष्ण पूर्ण सोलह कला दिव्य व्यक्तित्व है, अतः किसी सामान्य विधि से उन्हें प्राप्त कर पाना मुश्किल है, इसके लिए तो उनकी एक-एक कला को ही वशीभूत करना पड़ेगा, तभी वे पूर्ण रूपेण तुम्हारे आकर्षण पाश में बंध पायेंगे?
एक विशेष साधना है, जिसके सम्पन्न करने से वह कलायें वशीभूत हो जाती हैं, इसकी बड़ी विशेषता यह है, कि जहां इस साधना से तुम अपने प्रियतम को वशीभूत कर सकोगी, वहीं तुम स्वयं में भी ऐसा अनुभव करोगी, कि वे कलाएं आंशिक रूप से तुम्हारे अन्दर प्रवेश कर गई हैं।
अतः एक तरह से फिर तुम स्वयं भी षोड़श कला पूर्ण हो सकोगी और अपने चितचोर को रिझा सकोगी, क्योंकि तुम स्वयं उस स्तर पर पहुंच कर ही उस पूर्ण पुरुषत्व युक्त व्यक्तित्व को प्राप्त कर सकोगी।
ऐसा कहने के उपरान्त नारद ने राधा को दीक्षा दी और राधा ने उन्हें गुरु रूप में स्वीकार किया। फिर उन्होंने राधा को वह अद्वितीय साधना विधि समझाई, जिन्हें सम्पन्न कर वह कृष्ण के हृदय की धड़कन बन सकी, उनके आंखों की ज्योत्सना बन सकी। इस साधना को स्त्री या पुरुष कोई भी सम्पन्न कर सकता है और लाभ उठा सकता है।
यह साधना इतनी तीक्ष्ण और तुरंत प्रभाव डालने वाली है, कि यदि साध्य व्यक्ति की रक्षा स्वयं ब्रह्मा भी करें, तो भी वह मोहित होता ही है। इस साधना की विशेषता यह है, कि जहां इससे अन्य जन मोहित होते हैं, वहीं व्यक्ति स्वयं भी अत्यधिक सुन्दर एवं आकर्षक हो जाता है। वह देखने में कितना ही कुरूप क्यों न हो, इस साधना के बाद एक अनोखी वशीकरण शक्ति विकसित होती ही है, उसके अन्दर इतना आकर्षण उतर जाता है, कि लोग देखते ही उसकी ओर स्वतः ही खिंचते चले आते हैं।
03 सितम्बर या राधा अष्टमी 17 सितम्बर अथवा किसी भी सोमवार को रात्रि दस बजे के उपरान्त श्वेत वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख हो कर अपने सामने कामेश्वरी अप्सरा यंत्र स्थापित कर उसके मध्य में कुंकुम से अपनी प्रिया या प्रिय का नाम लिखें और उसका सामान्य पूजन करें। फिर चन्द्र ललित माला के सुमेरु पर कुंकुम का तिलक कर उसका भी पूजन करें। तत्पश्चात् सुमेरू पर कुंकुम को अपने ललाट पर लगायें। इसके उपरान्त उसी माला द्वारा निम्न मंत्र का 4 माला मंत्र जप करें-
इस मंत्र का उच्चारण करते समय सर्व के स्थान पर उस व्यक्ति विशेष का नाम भी लगा सकते हैं, यदि किसी को विशेष रूप से अपने अनुकूल बनाना हो तो, यह तीन दिवसीय साधना है। तीन दिन के उपरान्त यंत्र तथा माला को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से साधना में सफलता प्राप्त होती है और मनोवांछित कार्य सम्पन्न होता है।
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