पूरे वर्ष में 24 एकादशी पड़ती है, परन्तु यह वर्ष पुरुषोत्तम अधिक मास युक्त है, अतः इस वर्ष 26 एकादशियां होंगी। सभी एकादशियों पर भगवान विष्णु की पूजा, ध्यान और उपवास किया जाता है, जो कि जीवन के पालनकर्त्ता हैं, इसके साथ ही जो भक्त वर्ष की सभी एकादशियों का उपवास नहीं कर पाते, वे निर्जला एकादशी का व्रत रखते हैं, जिससे उन्हें सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता है।
निर्जला एकादशी को पाण्डव अथवा भीम एकादशी भी कहा जाता है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आती है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार निर्जला एकाद्वशी व्रत जून में होता है। साधारणतः निर्जला एकाद्वशी का व्रत गंगा दशहरा से युक्त होता है। भगवान शिव ने भागीरथ द्वारा इसी गंगा दशहरा दिवस पर पापहारिणी गंगा अमृतमयी गंगा को धरती पर अवतरित किया था। अधिक मास होने पर यह निर्जला एकादशी गंगा दशहरा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
एकादशी व्रत को सम्पन्न करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिये। जो श्रद्धालु व्रत कर रहें हैं, उन्हें व्रत पूर्ण करने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत पूर्ण करने का प्रयुक्त समय प्रातः काल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओ को मध्याह के समय पारण करने से बचना चाहिये।
कुछ कारणों की वजह से यदि कोई प्रातः काल पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे मध्याह के बाद पारण करना चाहिये। कभी-कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिये हो जाता है। जब एकादशी का व्रत दो दिन होता है, तब पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिये। दूसरे दिन पड़ने वाली एकादशी को वैष्णवी एकादशी कहते हैं। संन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी व्रत करना चाहिये। जब एकादशी व्रत दो दिन का होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के संदर्भ में निर्जला एकादशी की कथा मिलती है, जो इस प्रकार है- सभी पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिये महर्षि वेदव्यास ने एकादशी व्रत का संकल्प करवाया। माता कुन्ती और द्रौपदी सहित सभी एकादशी का व्रत रखते, भीम जो कि गदा चलाने और खाना खाने के मामले में काफी प्रसिद्ध थे, वे बहुत ही विशालकाय और ताकतवर भी थे, लेकिन उनमें एक न्यूनता थी, कि उन्हें भूख बहुत लगती थी। भीम भूख बर्दाश्त नहीं कर पाते थे, भूख से वे व्याकुल हो जाते, इसी कारण महीने में दो दिन उपवास करना उनके लिये बहुत कठिन था। जब पूरे परिवार का उन पर व्रत के लिये दबाव पड़ने लगा तो वे इसकी युक्ति ढूंढने लगे।
वे महर्षि वेदव्यास के पास गये और अपनी समस्या का विस्तार से उल्लेख किया। भीम पूछने लगे हे पितामह! मेरे परिवार के सभी सदस्य एकादशी का उपवास रखते हैं, परन्तु मैं अपनी जठराग्नि की ऊष्णता के कारण यह व्रत नहीं रह पाता। मैं कर्म, पूजा, पाठ दानादि करता हूं लेकिन उपवास रखना मेरे सामर्थ्य की बात नहीं है। मेरे पेट के अन्दर वृक नामक जठराग्नि है, जिसे शांत करने के लिये मुझे अत्यधिक भोजन की आवश्यकता होती है, अतः मैं भोजन के बिना नहीं रह सकता।
तब व्यास जी ने कहा भीम यदि तुम इस जीवन के पश्चात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करना चाहते हो, तो तुम्हारे लिये भी यह व्रत करना आवश्यक है। इस पर भीम की चिंता और बढ़ गयी, उन्होंने व्यास जी से कहा हे महर्षि! कोई उपाय बताने की कृपा करें, जिससे मुझे भी पुण्य लाभ मिल सके।
इस पर महर्षि वेदव्यास ने गदाधारी भीम से कहा कि हे वत्स! तुम निर्जला एकादशी का उपवास करो, यह उपवास है तो कठिन लेकिन श्रद्धा शक्ति, समर्पण और संकल्प से करने पर तुम यह व्रत करने में सफल होगे और तुम्हें सभी एकादशियों के उपवास का फल प्राप्त होगा।
उन्होंने कहा कि निर्जला एकादशी के पुण्य के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने मुझे बताया है। तुम ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का उपवास करो। इसमें आचमन व स्नान के अलावा जल भी ग्रहण नहीं किया जा सकता। इस तिथि पर निर्जला उपवास रखकर भगवान केशव अर्थात् श्री हरि की पूजा करना और अगले दिन स्नानादि कर निर्धन को दान-दक्षिणा देकर भोजन करवाकर फिर स्वयं भोजन करना। इस प्रकार तुम्हें केवल एक दिन के उपवास से वर्ष भर के उपवासों जितना पुण्य मिलेगा। जिसके उपरान्त भीम और सभी पांडव परिवार ने निर्जला एकादशी का व्रत रखा और इस पुण्य कर्म के भागीदार बनें।
भीम द्वारा उपवास रखे जाने के कारण ही निर्जला एकादशी को भीम एकादशी भी कहा जाता है। पांडवों ने भी इस दिन निर्जला एकादशी व्रत रखी थी इसलिये इसे पाण्डव एकादशी भी कहते हैं अर्थात् इस उपवास के माध्यम से जीवन में कौरवों रूपी असुरों का संहार हो सके।
आपकी माँ
शोभा श्रीमाली
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,