भगवान भैरव किसी भी बाधा की उपस्थिति को स्वीकार तक नहीं करते, उसे छिन्न-भिन्न कर ही वे शांत होते हैं, उनकी इसी शक्ति को क्रोध भैरव चैतन्य शक्ति के रूप में आत्मसात कर साधाक अपने जीवन के दुख, दैन्य, कष्ट, पीड़ा, रोग, शत्रु बाधा आदि जो कुछ भी उसके जीवन में अशुभ है, जो भी कष्टप्रद है, जीवन को नारकीय बनाने में सहायक होता है, उसकी समाप्ति करने में समर्थ हो पाता है।
इसलिये भैरव साधना श्रेष्ठतम साधना कही जाती है, यह काल पर विजय प्राप्त करने की साधना होती है और काल पर विजय प्राप्त करना सहज नहीं है, काल का तात्पर्य है मृत्यु, काल का मतलब है समय, काल पर विजय प्राप्त करने का तात्पर्य है, कठिनाई, अड़चन, समस्याओं पर विजय प्राप्त करना, जो सबके बस की बात नहीं है, इसीलिये भैरव साधना श्रेष्ठतम साधना है, क्योंकि यह काल विजय सिद्धिदायक है।
जीवन अनेक प्रकार के संयोगों से भरा हुआ है, अनेक प्रकार की विषमताओं से युक्त है, वर्तमान युग में पग-पग पर इतनी बाधायें हैं, इतनी पेरशानियां हैं, इतने शत्रु हैं, कि ऐसी स्थिति में व्यक्ति के लिये एक ही मार्ग रह जाता है, जिसके द्वारा वह प्रतिदिन जीवन में आने वाली समस्याओं पर पूर्ण रूप से विजयी हो सकता है और अपने जीवन की प्रत्येक समस्या पर विजय प्राप्त कर सकता है, वह मार्ग है साधना का। साधनाओं के अनुसंधान कर्ताओं ने ऐसी अनेक साधनाओं का अनुसंधान किया, जो कि व्यक्ति के दैनिकचर्या के संकट और छोटी-मोटी परेशानियों का सहज निदान बन सकें। इस प्रकार की साधनाओं में क्रोध भैरव साधना श्रेष्ठतम साधना मानी गई है, जिसका फल तत्क्षण मिलता है।
भैरव साधना की एक पद्धति ‘तामसिक’ भी है, जो कि समस्त विघ्न-बाधाओं को इतनी प्रचण्डता से समाप्त कर देती है, कि उसके समक्ष तो संसार का कोई भी वेग ठहर ही नहीं सकता, किन्तु इन साधनाओं को दुर्भावनाओं से लिप्त कर देने वाले कुछ तथाकथित साधकों के कारण इसका रहस्य गुरुजनों ने लुप्त ही कर दिया था। यह भ्रम है कि भैरव साधक को तामसिक क्रियाओं में लिप्त होना आवश्यक है, या जो तामसिक क्रियाओं में लिप्त है, वही वास्तविक भैरव साधक हो सकता है। यहां पर जिस तमोगुण की चर्चा की जा रही है, उसका तात्पर्य यही है कि भैरव साधक के भीतर शिव स्वरूप भैरव के तमोगुण विद्यमान है, जो भैरव अपने आराध्य देव शिव की ही भांति विष रूपी तत्वों को पचाने की क्षमता से युक्त हैं, उन्हीं की तरह साधक भी अपने जीवन की समस्या रूपी विषों से संघर्ष करने में सामर्थ्यवान होता है।
सामर्थ्यवान होने का तात्पर्य यह नही कि आपका शरीर बलिष्ठ और पहलवानों के जैसे हो जाये, इसके लिये मनः शक्ति बलवान होनी चाहिये, क्षमता होनी चाहिये कुछ भी कर गुजरने की, रिस्क लेने की। आज के समय में जो मित्र हैं, जो सगे हैं, जो सम्बन्धी हैं, वे सबसे अधिक शत्रुवत् भावों से युक्त होते हैं। कभी भी पीठ में छुरा घोंपने को तैयार रहते हैं या जब व्यक्ति निष्क्रिय होता रहता है, तब अपयश करते हैं, आपकी किसी योजना, कार्य में पीठ पीछे समस्यायें पैदा करते रहते हैं।
ऐसे शत्रुवत् भावों के जो विष हैं, उन्हें पीते हुये जीवन में आगे बढ़ने की जो क्षमता की आवश्यकता है, वह इस साधना के द्वारा साधक प्राप्त करता है और शत्रु को नहीं शत्रुवत् भाव को परास्त करने में सफल में होता है। यहां प्रस्तुत क्रोध भैरव साधना प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष शत्रुवत् भावों को समाप्त करने की साधना है, शत्रुवत् भावों से दूषित व्यक्ति से बच निकलने की यह क्रिया वास्तव में इस घोर सांसारिक युग में प्रत्येक साधक-साधिकाओ के लिये अनिवार्य है, उनके निष्कंटक जीवन के लिये आवश्यक है।
24 जून रात्रि 7 बजे के बाद या किसी भी रविवार को काले वस्त्र धारण कर, ऊनी आसन पर काला कपड़ा बिछाकर दक्षिण मुख होकर बैठे व अपने समक्ष काजल अथवा काली स्याही से क्रोध भैरव यंत्र भूमि पर अंकित कर लें-
इस यंत्र का निर्माण एकाग्रचित्त भाव से करें तथा जहां-जहां ‘भं’ बीज अंकित है, वहां-वहां ज्वालाग्र स्थापित कर मध्य में ‘रं’ बीज पर क्रोध भैरव गुटिका स्थापित करें, पश्चात् भैरव गुटिका पर कुंकुम का तिलक लगायें और लौंग अर्पित कर तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करें।
अब पुष्प की पंखुडि़यां लेकर दोनों हाथ जोड़कर सद्गुरुदेव का स्मरण करें व साधना सफलता हेतु प्रार्थना करें।
आनन्दमानन्दकरं प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजबोधरूपम्।
योगीन्द्रमीडयं भवरोगवैद्यं श्रीमद्गुरुं नित्यमहं नमामि।।
दोनों हाथ जोड़कर भैरव ध्यान करें-
भक्त्या नमामि क्रोध भैरवं तरुणं त्रिनेत्रं,
कामप्रदान् वरकपाल त्रिशूलदण्डान्।
भक्तार्तिनाशकरणे दधतं करेषु,
तं कौस्तुभाभरण भूषित दिव्यदेहम्।।
ऊँ तीक्ष्णदंष्ट्र! महाकाय! कल्पान्त दहनोपम्।
भैरवाय नमस्तुभ्य अनुज्ञां दातुमर्हसि।।
पश्चात् निम्न मंत्र का 3 माला मंत्र जप शत्रु दमन माला से जप करें-
मंत्र जप पश्चात् थोड़ी देर अपने आसन पर आंख बंद कर ध्यान में बैठें और यह चिंतन करें कि आपके प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष शत्रु आपसे भयभीत होकर भाग रहें हैं।
साधना पूर्ण होने पर समस्त साधना सामग्रियों के साथ कुछ काली मिर्च के दाने रख कर मेरे समस्त शत्रुओं की गति-मति स्तम्भित हो, कह कर किसी निर्जन स्थान पर उसे फेंक दें और भूमि पर बने यंत्र को धो-पोंछ कर साफ कर लें।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,