जीवन में भी ऐसा नियम लागू होता है, हम किस रंग-रूप के हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है, हमारा आन्तरिक व्यक्तित्व कैसा है? इसकी महत्ता है। हमारे अन्दरूनी व्यक्तित्व से जो दृष्टकोण बनता है, उसी से हम शिखर पर पहुंच सकते हैं। हमारा दृष्टिकोण जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता है, यहां तक की व्यक्ति के निजी और व्यावसायिक जीवन पर भी। प्रत्येक व्यक्ति बेहतर दृष्टिकोण अपनाकर अपना किरदार श्रेष्ठता से निभा सकता है, क्षेत्र कोई भी हो सफलता का सूत्र हमारा नजरिया ही है। सफलता-असफलता हमारे नजरिये पर निर्भर है, जो आशावादी होते हैं, उनके लिये उनका दृष्टिकोण सफलता का माध्यम बन जाता है और जो निराशावादी हैं, उनके लिये रास्ते का रोड़ा बन सकता है। एक ही जैसा काम दो व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न परिणाम देता है, एक को सफलता मिलती है, दूसरे को असफलता मिल सकती है। इसका कारण बस इतना ही है कि उनके दृष्टिकोण में भिन्नता होती है, उनके देखने का नजरिया अलग-अलग होता है।
किसी परीक्षा में हजारों परीक्षार्थी सम्मिलित होते हैं, उनमें कुछ पास होते हैं, कुछ बहुत ही अच्छे अंकों से पास होते हैं और कुछ फेल हो जाते हैं, दो-तीन विद्यार्थी सर्वश्रेष्ठ अंको से पास होते हैं। निश्चित रूप से इस सफलता के पीछे उनका परिश्रम है, लेकिन यह परिश्रम करने की शक्ति उन्हें कहां से मिलती है? उनका यह नजरिया था, कि मुझे अच्छे अंक प्राप्त करने है, मुझे सर्वश्रेष्ठता प्राप्त करनी है, उनके इस नजरिये ने उनको सफलता प्रदान की, जितना बेहतर नजरिया होगा, उतनी सर्वश्रेष्ठ सफलता मिलती है। इसलिये मैंने कहा आपका आन्तरिक व्यक्तित्व कैसा है? आपकी सोच क्या है? आपकी विचाराधारा कैसी है?
आपका चिन्तन कैसा है? आपके भाव कैसे हैं? जब आप स्पष्ट हो जाते हैं, आपका आन्तरिक व्यक्तित्व स्पष्ट होता है, आपका नजरिया स्पष्ट हो जाता है, तब आप स्वयं को ऊंची उड़ान भरने के लिये तैयार समझें, सफलता के योग्य मानें। यह नजरिया जिसकी मैं चर्चा कर रहा हूं आपके सामने, इसे प्राप्त करने के लिये बहुत अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते हैं। यह हमें सरलता से प्राप्त हो सकता है, यदि हम स्वयं को थोड़ा सा खंगालने का प्रयास करें, आप स्वयं अभी विचार करना प्रारम्भ करें, तो अपना मूल्यांकन कर सकते हैं, आप यह जान सकते हैं, कि आपका नजरिया किस तरह का है, आप आशावादी हैं या निराशावादी।
कुछ लोगों की आदत होती है, ना-नुकुर करने की, उनका काम ही है, केवल और केवल दूसरों में कमियां निकालना, प्रत्येक काम में वे कमियां ढूंढ लेते हैं, जीवन भर ऐसा ही करते रहते हैं और तनाव पूर्ण जीवन जीते हुये चले जाते हैं, अपना पूरा जीवन तनाव में ही बिता देते हैं, भरा हुआ है संसार ऐसे लोगो से, निराशावादियों से।
नकारात्मक नजरिया जीवन को दूभर और दुष्कर बना देता है, तनावपूर्ण रोगमय जीवन देता है। फिर उसे आप जीवन कहें, यह आपकी मर्जी है, मैं ऐसे जीवन को जीवन नहीं कहता, एक बात और आप समझ लें, जो स्वयं से हारता है, उसे कोई भी जीता नहीं सकता, स्वयं से हारा व्यक्ति हर जगह हारता है, नकारात्मकता आपको ऐसे दलदल में फंसा देगी, जहां से निकलना असंभव हो जाता है और आदमी उसी नकारात्मकता के आस-पास सबको कोसता हुआ, स्वयं की किस्मत, भाग्य को धिक्कारता हुआ, घिसट-घिसट कर जीवन बीता देता है। नकारात्मकता इतनी बुरी है, कि यह आपको ईश्वर से, गुरु से, परिवार से, मित्रों से प्रत्येक वह वस्तु, वह व्यक्ति जो आपके जीवन में महत्वपूर्ण है, उससे दूर कर देती है। और इसी नकारात्मकता के कारण आपका चिंतन, आपका विचार, आपकी सोच दूषित हो जाती है। इतनी दूषित हो जाती है, कि आप निकृष्टता की हद के पार तक सोच लेते हैं! घटिया मानसिकता दिनचर्या बन जाती है। प्रत्येक समय उठते-बैठते, व्यक्ति में Negativity छाई रहती है। वह प्रत्येक कार्य को अलग ढंग से सोचता है, उसमें कुछ ना कुछ कमियां ढूंढ लेता है। कोई ना कोई रास्ता ढूंढ लेता है ना-नुकुर करने का।
वहीं जो सकारात्मक ऊर्जा से भरे हैं, जिनका चिंतन, जिनकी सोच Positive है, वे ताजगी, जोश, उमंग, उत्साह से भरपूर होते हैं, वास्तव में वे ही सफलता प्राप्त करने के अधिकारी हैं, क्योंकि उनके सोचने का, समझने का नजरिया अलग होता है। उनकी क्रियायें अलग होती हैं, वे आशावादी हैं, मुश्किल से मुश्किल समय में भी वे सकारात्मक चिंतन से विजय प्राप्त कर लेते हैं, कोई ना कोई सफलता का सूत्र ढूंढ लेते हैं।
और उनका मस्तिष्क नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति से कहीं ज्यादा सक्रिय होकर कार्य करता है। वे अपनी ऊर्जा का सही उपयोग कर पाते हैं। नकारात्मकता क्या है, यह आपको कार्य से पहले ढुल-मुल बना देती है। आपकी ऊर्जा शक्ति को क्षीण कर देती है। जिस ऊर्जा से आप उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं, वह ऊर्जा शक्ति व्यर्थ के चिंतन और कार्यो में क्षय होती है और आप तनावग्रस्त तो होते ही हैं। क्रोध का भाव उत्पन्न होने लगता है, विवेक शून्यता बढ़ जाती है। कहने का तात्पर्य इतना ही है कि एक नकारात्मकता के कारण आप कितनी और समस्याओं से घिर जाते हैं।
आशावादी नजरिया उत्तम विचार, आईडिया उत्पन्न करता है, नये कौशल आपमें विकसित करता है। ऐसे व्यक्ति हमेशा नये-नये कार्य सम्पन्न कर अपनी प्रतिभा में निखार ला पाते हैं, आशावादी विचार व्यक्ति को उच्च शिखर पर ले जाकर स्थापित कर देता है। इस भूल में मत रहना, कोई व्यक्ति आपको उच्चता पर ले जायेगा, आपका नजरिया आपको वहां तक पहुंचाता है। व्यक्ति का नजरिया दुरुस्त होना चाहिये, श्रेष्ठ होना चाहिये। इसका बड़ा लाभ है, इसे शामिल तो करें आप अपने जीवन में, जीवन के अंदाज बदल जायेंगे, इधर आपका नजरिया बदला, उधर आपका जीवन पटरी पर आ जायेगा और गाड़ी दौड़ने लगेगी, बराबर Positive नजरिये से ही जीवन की गाड़ी अविरल रूप से चलती रहेगी और यदि चलती रही, तो एक दिन ऐसा भी आयेगा कि दौड़ पड़ेगी। यदि रूक गयी तो चलाने में पसीने आ जाते हैं, गाड़ी अभी-अभी रूकी हो तो थोड़े परिश्रम से चल भी जाती है। लेकिन यदि गाड़ी बहुत दिनों से बन्द है, तो उसके पुर्जो में जंग लग जाती है।
फिर मैकेनिक को बुलाना पड़ता है, वह उसके सारे पुर्जे खोलकर अलग-अलग कर देता है, सभी पुर्जे साफ करता है, स्वच्छ करता है। कभी ब्रश से, कभी पेट्रोल डालकर, कभी अन्य किसी केमिकल से, अच्छे से साफ कर फिर सारे पुर्जे जोड़ता है और जोड़ता है, पर पहले जैसी बात नहीं रह जाती है। रिपेयर करने में कुछ टूट-फूट हो जाती है, स्क्रैच आ जाता है। कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ टेढ़ा-मेढ़ा रह जाता है।
इसलिये पहला ध्यान तो यह रखें, कि मैकेनिक से गाड़ी रिपेयर ना कराना पड़े, क्योंकि उसमें खतरा बड़ा हो सकता है। गाड़ी रिपेयर की कंडीशन में होगी तो ही रिपेयर होगी, बहुत जंग लगा होगा, तो कबाड़ के सिवा कुछ नहीं है। दूसरा और भी महत्वपूर्ण है, गाड़ी रूकने ना दें, उसे चलाते रहें। चलेगें तो लाभ ही लाभ है, थोडे़-बहुत मेंटेनेन्स खर्च से गाड़ी चलती रहेगी। रूकने पर गाड़ी में जंग लग जायेगी, मुश्किल हो जायेगी। मेकेनिक भी गुस्सा करेगा, कि गाड़ी पूरी तरह कबाड़ा करके ही लाया है, थोड़ा पहले लेता आता, तो गाड़ी लम्बी चल जाती। आशावादी बनें, सकारात्मक विचार रखें, अपना नजरिया स्पष्ट करें, यह विचार आपको सफल बनायेगा——-शुभाशीर्वाद्!
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