यह मेरा अहं नहीं है, लेकिन मैं कायर भी नहीं हूं, कि मैं पूर्णतः बुद्धिवादी होते हुये भी स्वयं को आध्यात्मिक व्यक्ति के रूप में न स्वीकारुं। मेरी यह मिश्रित प्रकृति जहां उपयोगी साबित हुयी है, वहीं कभी-कभी मैंने हानि भी उठायी है, किन्तु इसी स्वभाव के कारण मुझे यह अद्वितीय साधना प्राप्त हुयी।
मुझे एक आवश्यक कार्यवश नेपाल जाना पड़ा, नेपाल पहुंच कर वहां अपना कार्य सम्पन्न किया, वहीं मेरे एक मित्र ने सलाह दी, कि यहां पर दक्षिणकाली शक्तिपीठ है और वहां से कुछ दूर पर गुफा में एक योगी रहते हैं, वे एक सिद्ध योगी हैं, उनके आशीर्वाद से अनेक लोग लाभान्वित हुये तुम्हें भी चलकर उनका दर्शन करना चाहिये।
मैंने अपनी सहमति प्रकट की और अगले दिन का समय नियत किया। अगले दिन जब हम दक्षिणकाली पहुंचे तो वहां एक-दो लोग ही घूमते हुये दिखाई दिये, पूछने पर पता चला, कि वे योगी अभी-अभी गुफा में साधना करने गये हैं और अब बाहर निकलना मुश्किल है।
हमने सोचा, इतनी दूर आ ही गये हैं, तो कुछ देर यहां की प्राकृतिक सुन्दरता का आनन्द उठा लें व मां काली के दर्शन भी कर लें। यह सोचकर हम काली मन्दिर की ओर गये, मां काली के विग्रह की तेजस्विता की दिव्य अनुभूति हुयी, हृदय में आनन्द का संचार हो गया, मां काली के दर्शन करने के पश्चात् हम वहां की प्रकृति में मुग्ध भाव से घूमने लगे थे, कि तभी ऐसा लगा, कि जैसे मुझे कोई शक्ति उस ओर खींच रही है, जिधर योगी की गुफा थी, मैं आकर्षण बद्ध हो उस ओर चल पड़ा। मैं वहां पहुंचा ही था, कि वे अपनी गुफा से बाहर आते हुये दिखाई दिये, मेरे मित्र ने दौड़ कर उनके चरण स्पर्श किये, तो उन्होंने एक हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उसे देखा।
उनकी वेशभूषा लामाओं जैसी थी, शायद लोगों को उनके विषय में मालूम नहीं था, इसलिये वे उन्हें योगी कहते थे या फिर वे पूर्व में लामा रहें हों, लेकिन अब एक योगी के रूप में जीवन व्यतीत कर रहें हैं, मेरा यह विचार खंडित हुआ, जब उन्होंने मुझे अपनी ओर आने का इशारा किया, मैंने उन्हें प्रणाम किया और जब मैं उनके पास गया तो उन्होंने अत्यन्त सौम्यता से पूछा-किसी विशेष कार्य से आये हो?
प्रत्युत्तर में मेरे मुंह से निकला- सिर्फ दर्शन करने आया हूं, यदि आप आज्ञा दें, तो हम नित्य आ जाया करें! मैं यह उत्तर उन्हें देखते हुये विमुग्ध भाव से बोल पड़ा था, क्योंकि बाद में मेरे मित्र ने मुझे पूछा- तुमने ऐसा क्यों कहा—- तुम तो तीन दिन बाद चले जाओगे? मैं स्वयं उलझन में फंसा हुआ था, कि कैसे मेरे मुंह से ये शब्द निकले, ईश्वरेच्छा बलिहारी सोचकर पुनः अपने शेष कार्य सम्पन्न किये और अगले दिन पुनः नियत समय पर मैं वहां पहुंच गया।
वहां पहुंचा तो देखा, कि वे कुछ स्थानीय लोगों से घिरे बैठे हैं ओर उनकी समस्या का हल बता रहें हैं। मैं थोड़ी देर तक उन्हें दूर से निहारता रहा। उनका आभामण्डल स्पष्ट रूप से आभासित हो रहा था, मैं एकटक उन्हें देखता ही जा रहा था, कि तभी वह मेरे समीप आकर बोले- क्या बात है, क्या देख रहे हो? मैं जैसे स्वप्न से जागा, लेकिन अत्यन्त सहम गया, कि मैं क्या कर रहा था, फिर भी मैंने हिम्मत करके उन्हें स्पष्टता से बता दिया- मैं आपके मुख मण्डल को निहार रहा था, मेरी पलक झपक ही नहीं रही थी।
अपने मुख पर स्मित लिये हुये मुझे अपने साथ ले, गुफा के बाहर स्थित एक चट्टान पर बैठ गये और फिर मुझसे ऐसे बात करने लगे, जैसे मैं उनका अत्यन्त आत्मीय हूं तथा बहुत समय पहले से ही उनका परिचित हूं। उन्होंने मुझसे मेरी रूचियां पूछीं तथा धीरे-धीरे हम लोगों का वार्तालाप सामान्य विषय से बढ़ते-बढ़ते तंत्र की ओर मुड़ गया और धीरे-धीरे तंत्र के अनेक सूत्रों की व्याख्या उन्होंने मुझे समझायीं, जो मेरे लिये सर्वथा नवीन थीं। समय काफी हो चला था, उनकी साधना का समय हो गया था, अतः मैंने पुनः अगले दिन आने की अनुज्ञा ली, उन्होंने अगले दिन प्रातः ही आने को कहा।
निर्धारित समय पर प्रातः ही मैं उनके पास पहुंचा तो देखा, वे अत्यन्त ही प्रसन्न मुद्रा में उसी शिला पर बैठे थे, मैंने उनको प्रणाम किया और उनके निकट ही बैठ गया उन्होंने उस दिन स्वतः ही सम्मोहन (जिसे सीखना मेरे जीवन का अभीष्ट था), के विषय में चर्चा छेड़ी, पांच घण्टे कैसे बीते जान ही न पाया।
अचानक वे उठे और बोले- मेरे पास वैश्वाचार्य द्वारा भोजपत्र पर लिखित सम्मोहन की सर्वथा गोपनीय विधि है। यह जानकर मेरे अन्दर की उत्सुकता इतनी तीव्र हो गयी, कि मैं उनसे पूछा बैठा- क्या आप मुझे वह विधि बतायेंगे, यह भोजपत्र दिखायेंगे?
शायद वे उस दिन अत्यन्त प्रसन्न थे, उन्होंने मुझे वह भोजपत्र दिखाया, भोजपत्र अत्यन्त जर्जर अवस्था में था और उस पर लिखी भाषा भी मुझे समझ नहीं आ रही थी। उन्होंने उसका सरलीकरण कर मुझे उसकी व्याख्या समझायी। उसे जानकर मुझे एहसास हुआ कितनी सहजता से मुझे एक अद्वितीय ज्ञान की प्राप्ति हुयी है!
उन्होंने स्पष्ट किया इस साधना विधि को सम्पन्न करने वाला व्यक्ति पूर्ण सम्मोहनकर्ता बन जाता है तथा वह जिसे चाहे उसे अपने वश में कर सकता है। उसके अन्दर इतना अधिक आकर्षण उत्पन्न हो जाता है, कि उसके आकर्षण से पशु-पक्षी तक मोहित हो जाते हैं, जो इस साधना को पूर्णता के साथ सम्पन्न कर लेता है, वह इस क्षेत्र का अद्वितीय साधक होता है।
उन्होंने अपना मूल परिचय भी स्पष्ट किया, कि वे एक लामा हैं, लेकिन भारतीय तंत्र ने उनको ज्यादा आकर्षित किया ओर धीरे-धीरे वे इस ओर प्रवृत्त हो गये। उन्होंने स्पष्ट किया, कि भारतीय तंत्र में अनेक शोध कार्य सम्पन्न हुये हैं, जिसके कारण यह अति विकसित विद्या है, लेकिन सामान्य जन में प्रचलित न होने के कारण धीरे-धीरे यह अपना मूल स्वरूप खोती जा रही है। इस विद्या में विभिन्न विषयों पर किये गये विवेचन अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, जो अनेक रहस्यों को अपने में समाये हुये हैं। मैंने यह अनुभव भी किया, कि उनके हृदय में इस बात का दुःख है, कि समाज मूल में न जाकर ऊपरी तलछट को ही देखने का प्रयास करता है।
उनसे आज्ञा लेकर मैं उनके द्वारा बतायी गयी विधि को सार्वजनिक कर रहा हूं, जिसको सम्पन्न कर आप भी इस क्षेत्र में अद्वितीय साधक बन सकते हैं।
इस साधना में आवश्यक सामग्री सम्मोहन यंत्र व सम्मोहन वशीकरण माला है।
सम्मोहन-वशीकरण माला से निम्न मंत्र की नित्य 3 माला जप करें-
मंत्र जप समाप्त होने पर जो भी नैवेद्य चढ़ाया हो, उसे स्वयं ग्रहण करें।
तीन दिन तक नित्य पूजन कर मंत्र जप करें।
साधना पूर्ण होने पर यंत्र व माला को नदी में प्रवाहित कर दें।
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