बुद्ध अपने राज्य का परित्याग कर भारत की गलियों में भिक्षाटन करते हुये मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याणार्थ उपदेश करते थे। उनका हृदय आकाश की भांति विशाल था, उन्हें स्वर्ग की कामना न थी और न धन अथवा राज सिंहासन की इच्छा थी। वे अद्वितीय निस्वार्थ योगी थे! वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे, जो पशु-बलि रोकने के लिये अपने प्राण त्याग करने को सदा उद्यत रहते थे। उन्होंने एक बार राजा से कहा- यदि मेमने की बलि आपके स्वर्ग जाने में सहायक होती है, तो नर-बलि अधिक सहायक होगी, अतः आप मेरा बलिदान कीजिये, वे अपने असाधारण बलिदान, महान् त्याग तथा निष्कल्मष जीवन के द्वारा संसार में अपनी अमिट छाप छोड़ गये।
अनेक ऋषियों तथा देवदूतों ने प्रेम तथा अहिंसा का उपदेश दिया है, किन्तु नैतिक वैचारिक रूप में सम्पूर्ण इतिहास में अहिंसा तथा प्रेम के सिद्धांत की पुष्टि इतनी कभी नहीं हुयी जितनी बुद्ध काल में हुयी थी। किसी ने भी अहिंसा तथा विश्व प्रेम के सिद्धान्त का भगवान बुद्ध के समान व्याप क प्रचार नहीं किया। किसी ने भी इन दोनो सद्गुणों- प्रेम व अहिंसा को बुद्ध जैसा अपने आचरण में नहीं लाया। किसी का भी हृदय बुद्ध के जैसा सुकुमार, सदय तथा करूणार्द्र नहीं था। यही कारण है कि वे आज भी करोड़ो लोगों के हृदय में प्रतिष्ठापित हैं।
चींटी, कीट या श्वान जैसे क्षुद्र प्राणियों में किंचित पीड़ा देख कर उनका हृदय जोरों से धड़कने लगता तथा द्रवित हो जाता था। उन्होंने अपने पूर्व जन्म में एक भूखे क्रूर हिंसक पशु के लिये आहार रूप में अपना शरीर अर्पित कर दिया था। अनेक जन्मों में ऐसे दया के अनेक कार्यो के कारण ही वे भगवान बुद्ध बने। भगवान बुद्ध का जीवन आज के घोर घृणा, ईर्ष्या के वातावरण में सम्पूर्ण मानव जाति के प्रेरणादायक है, उनके जीवन की अनेक घटनायें ऐसी हैं, जिनसे जीवन के सिद्धांतो में स्पष्ट नीति अपनाने की प्रेरणा मिलती है, उन्हीं प्रेरक प्रसंगों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है- एक समय की बात है भगवान गौतम बुद्ध एक गांव में धर्म सभा को सम्बोधित कर रहे थ। लोग अपनी विभिन्न परेशानियों को लेकर उनके पास जाते और उसका हल लेकर खुशी-खुशी वहां से लौटते।
उसी गांव के सड़क के किनारे एक गरीब व्यक्ति बैठा रहता तथा महात्मा बुद्ध के उपदेश शिविर में आने जाने वाले लोगों को बड़े ध्यान से देखता। उसे बड़ा आश्चर्य होता कि लोग अन्दर तो बड़े दुःखी चेहरे लेकर जाते हैं, लेकिन जब वापस आते हैं, तो बड़े खुश और प्रसन्न दिखाई देते हैं। उस गरीब को लगा कि क्यों न वो भी अपनी समस्या को भगवान के समक्ष रखे? मन में यह विचार लिये वह भी महात्मा बुद्ध के पास पहुंचा। लोग पंक्तिबद्ध खड़े होकर अपनी समस्या को बता रहे थे।
जब उसकी बारी आयी तो उसने सबसे पहले महात्मा बुद्ध को प्रणाम किया और फिर कहा- भगवान इस गांव में लगभग सभी लोग खुश और समृद्ध हैं, फिर मैं ही क्यों गरीब हूं? इस पर उन्होंने मुस्कुराते हुये कहा- तुम गरीब और निर्धन इसलिये हो क्योंकि तुमने आज तक किसी को कुछ दिया ही नहीं। इस पर वह गरीब व्यक्ति बड़ा आश्चर्यचकित हुआ और बोला- भगवान मेरे पास भला दूसरों को देने के लिये क्या होगा। मेरा तो स्वयं का गुजारा बहुत मुश्किल से हो पाता है। लोगों से भीख मांग कर अपना पेट भरता हूं।
भगवान बुद्ध कुछ देर शांत रहे, फिर बोले तुम बड़े अज्ञानी हो औरो के साथ बांटने के लिये ईश्वर ने तुम्हें बहुत कुछ दिया है। मुस्कुराहट दी है, जिससे तुम लोगों में आशा का संचार कर सकते हो, मुख दिया है, जिससे दो मीठे शब्द बोल सकते हो, उनकी प्रशंसा कर सकते हो। दो हाथ दियें हैं, लोगों की मदद कर सकते हो। निर्धनता का विचार आदमी के मन में होता है, यह तो एक भ्रम है, इसे निकाल दो।
कभी भी मन में निर्धनता का भाव उत्पन्न ना होने दो गरीबी अपने आप दूर हो जायेगी, भगवान बुद्ध का संदेश सुनकर उस आदमी का चेहरा चमक उठा और उसने इस उपदेश को अपने जीवन में उतारा जिससे वह फिर कभी दुखी नहीं हुआ।
एक समय की बात है, भगवान बुद्ध एक नगर में घूम रहे थे। उस नगर के आम नागरिकों के मन में बुद्ध के विरोधियों ने यह बात बैठा दी थी, कि वह एक ढोंगी है और हमारे धर्म को भ्रष्ट कर रहा है। इस वजह से वहां के लोग उन्हें अपना दुश्मन मानते थे। जब नगर के लोगों ने बुद्ध को देखा तो उन्हें भला-बुरा कहने लगे।
गौतम बुद्ध लोगों के उलाहने, अपशब्द शान्ति से सुनते रहे, जब नगर के लोग बोलते-बोलते थक गये, तो महात्मा बुद्ध बोले- क्षमा चाहता हूं, यदि आप लोगों की बातें पूरी हो गयी हों, तो मैं यहां से जाऊं? भगवान बुद्ध की यह बात सुन वहां के लोग बड़े आश्चर्यचकित हुये। वहीं खड़ा एक आदमी बोला- ओ! भाई हम तुम्हारा गुणगान नहीं कर रहें हैं, हम तो तुम्हें अपशब्द कह रहें है, गालियां दे रहें है। क्या इसका तुम पर कोई असर नहीं होता?
बुद्ध बोले- आप सब मुझे चाहे कितनी गालियां दो मैं उन्हें लूगां ही नहीं, आपके गालियां देने से मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता जब तक कि मैं उन्हें स्वीकार नहीं करता। बुद्ध आगे बोले- और जब मैं इन गालियों को लूंगा ही नहीं तो यह कहां रह जायेगी? निश्चित ही आपके पास। बुद्ध के जीवन का यह छोटा सा प्रसंग हमारे जीवन में नया परिर्वतन ला सकता है, क्योंकि बहुत से लोग अपने दुःखों का कारण दूसरों को मानते हैं। जो कि अच्छी बात नहीं है, ऐसा कर हम स्वयं के लिये गढ्ढा खोद रहे होते हैं। यह सब हम पर निर्भर है कि हम लोगों की नकारात्मक बातों को कैसे लेते हैं, उन्हें स्वीकार कर रहें हैं या नकार रहें हैं।
यह कहानी बहुत ही पुरानी है, उस समय महात्मा गौतम बुद्ध पूरे भारतवर्ष में घूम-घूम कर बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रसार कर रहे थे। धर्म प्रचार के सिल-सिले में वे अपने कुछ अनुयायियों के साथ एक गांव में घूम रहे थे। काफी देर तक भ्रमण करते रहने से उन्हें बहुत प्यास लग गयी थी।
प्यास बढ़ती देख, उन्होंने एक शिष्य को पास के गांव से पानी लाने के लिये कहा। शिष्य जब गांव में पहुंचा तो उसने देखा की वहां एक छोटी सी नदी बह रही है, जिसमें काफी लोग अपने वस्त्र साफ कर रहे थे और कई अपने गायों को नहला रहे थे। इस कारण नदी का पानी काफी गंदा हो गया था। शिष्य को नदी के पानी का ये हाल देख लगा कि गुरु जी के लिये यह गंदा पानी ले जाना उचित नहीं होगा। इस तरह वह बिना पानी के ही वापस आ गया। लेकिन इधर गुरु जी का तो प्यास से गला सूखा जा रहा था। इसलिये पुनः उन्होंने पानी लाने के लिये दूसरे शिष्य को भेजा। इस बार के शिष्य ने उनके लिये मटके में पानी भर कर लाया।
यह देख महात्मा बुद्ध थोड़ा आश्चर्यचकित हुये। उन्होंने शिष्य से पूछा गांव में बहने वाली नदी का पानी तो गंदा फिर ये पानी कहां से लाये? शिष्य बोला- हाँ गुरु जी, उस नदी का जल सही में बहुत गंदा था, परन्तु जब सभी अपना कार्य खत्म करके चले गये तब मैंने कुछ देर वहां ठहर कर पानी में मिली मिट्टी के नदी के तल में बैठने का इंतजार किया। जब मिट्टी नीचे बैठ गयी तो पानी साफ हो गया, वही पानी लाया हूं।
महात्मा बुद्ध शिष्य का यह उत्तर सुनकर बहुत खुश हुये तथा अन्य शिष्यों को शिक्षा दी कि हमारा जीवन भी नदी के जल जैसा ही है। जीवन में अच्छे कर्म करते रहने से यह हमेशा शुद्ध बना रहता है, परन्तु अनेंको बार जीवन में ऐसे भी क्षण आते है, जब हमारा जीवन दुख और समस्याओं से घिर जाता है, ऐसी अवस्था में जीवन समान यह पानी भी गंदा लगने लगता है।
इसलिये हमें जीवन में दुःख और बुराईयों को देखकर अपना साहस नहीं खोना चाहिये और धैर्य रखना चाहिये गंदगी समान ये समस्यायें स्वयं ही धीरे -धीरे खत्म हो जाती हैं।
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