दस महाविद्याओं के नौवें क्रम में भगवती मातंगी का नाम आता है। इनके शिव ‘मतंग’ हैं, भगवती मातंगी तेजस्वी, नीलकमल की कान्ति जैसी श्याम वर्ण की हैं। उच्छिष्ट चाण्डालिनी, राज मातंगी, सुमुखी, वश्य मातंगी, कर्ण मातंगी आदि स्वरूपों में इनकी स्तुति साधक करते हैं। एक श्लोक के अनुसार कालिका, त्रिपुरा तथा मातंगी में कोई भेद नहीं समझना चाहिये। मातंगी शब्द जीवन के प्रत्येक पक्ष को जाग्रत करने की क्रिया का नाम है, परन्तु मातंगी शक्ति की आराधना विशेष रूप से भौतिक पक्ष को सुधारने के लिये की जाती है।
रूप, रस, यौवन, विलास, ऐश्वर्य, गृहस्थ सुख, आनन्द, भोग को प्रदान करने वाली मातंगी शक्ति जीवन के भौतिक पक्ष को पूर्ण करती है। इस शक्ति की साधना से जहां स्वास्थ्य, आयु, धन, कुटुंब सुख, संतान सुख, भवन सुख, भाग्योदय, राजयोग के साथ ही ये चण्डेश्वरी शक्ति आपूरित होने से अकाल मृत्यु निवारण, शत्रु घातिनी, बाधा संहारिणी महाविद्या हैं। जिसकी चेतना से साधक अपने सांसारिक जीवन को न्यूनताओं से उबार पाने में समर्थ हो पाता है। इस शक्ति को भोग-विलास की अधिष्ठात्री कहा गया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति के अन्दर यौवन पुनः अंगड़ाई लेने लगता है और वृद्धावस्था दूर होने लगती है। चेहरा ओज, तेज और कान्तिमय हो जाता है। पुरूष इस शक्ति द्वारा पौरूष शक्ति आपूरित निर्भय, बलिष्ठ व यौवनवान होते हैं, स्त्रियां रूप, लावण्य, सौन्दर्य व कोमलता से परिपूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में उमंग, उत्साह, ऊर्जा का वातावरण बना रहता है।
आद्या शक्ति चण्डेश्वरी मातंगी की चेतना आत्मसात करने वाले साधक के जीवन में धन की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता बनी रहती है, ये साधक के कार्य व्यापार वृद्धि में विशिष्ट सहयोग व सुरक्षा प्रदान करती हैं। क्योंकि सांसारिक जीवन का अधिकांश भोग अर्थ पर ही निर्भर है और भगवती मातंगी भोग-विलास प्रदायिनी महाविद्या हैं। होली महापर्व जो आनन्द, प्रेम, उल्लास, मस्ती का महान पर्व है, इस दिव्य चैतन्य दिवस पर चण्डेश्वरी मातंगी शक्तिपात दीक्षा ग्रहण करने से जीवन में स्थायी रूप से मधुरता, सुख-भोग पूर्ण स्थितियां प्राप्त होंगी और साधक अपनी मनोकामनाओं को मूर्त रूप देने के लिये अग्रसर होने की चेतना से युक्त होगा।
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