धन की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी हैं, जिनकी कृपा से जीवन में धन की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता होती है। अर्थात् श्री ही इस युग में सबकुछ है। युग अनुसार श्री से युक्त व्यक्ति पूर्ण माना जाना चाहिये। मेरे जीवन का यह अनुभव है, कि धन के अभाव में कौशल और कुशलता का कोई मोल नहीं है, धनाढ्य व्यक्तियों को अपने आप में ज्ञानी, शिक्षित, सम्मानित माना जाता है। भले ही उनके पास जीवन का सामान्य रूप से भी ज्ञान ना हो।
प्रत्येक वर्ग के लोगों ने धन की पूर्णता को स्वीकार किया है। हमने अक्सर श्री का बहिष्कार करने वालों को पीडि़त, अपेक्षित और दयनीय स्थिति में देखा है, जिनके पास धन ना हो समाज तो उनका बहिष्कार करता ही है, परिवार, पुत्र-पुत्री, बंधु-बांधव किसी का भी सहयोग उसे प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। आज व्यक्ति की महत्ता उसके शिक्षा, ज्ञान, विचार से अधिक उसके धन होने ना होने से होती है। सभी व्यक्ति धनाढ्य व्यक्ति को ही सम्मान देते हैं। यह अब प्रचलन बन चुका है वर्तमान में सम्मान, स्नेह का अधिकारी उसी को माना जाता है, जो धनाढ्य है, अर्थात् यदि आप निर्धन, धनहीन हैं, तो आपकी उपयोगिता और आपको सम्मान उसी के अनुसार मिलेगा। सुलझे से सुलझे व्यक्तियों को भी हमने धनवान और धनहीन के बीच भेद करते हुये देखा है।
तात्पर्य कहने का केवल इतना ही है कि वर्तमान युग की क्रिया-कलापों को ध्यान में रखकर हमें धन की महत्ता व उपयोगिता को समझना होगा और उससे अधिक उसकी महत्ता को स्वीकार करते हुये, ऐसी क्रियात्मक चेतना को आत्मसात करना होगा, जिससे श्री की प्राप्ति हो सके और हम भी धन से पूर्ण हो सकें। धन, सुख-समृद्धि, वैभव प्राप्ति का दिव्यतम अवसर दीपावली महापर्व है, यह अवसर जीवन में श्री की पूर्णता का सबसे चैतन्य, प्रभावी, पूर्ण फलदायी अवसर है, जिस दिन प्रत्येक घर में, प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा श्री को, लक्ष्मी का आह्वान करने हेतु विभिन्न पूजा, अर्चना को सम्पन्न किया जाता है।
परन्तु वर्तमान में औपचारिकता का वातावरण अधिक है, मूल तत्व को आत्मसात करने की क्रियायें नाम मात्र ही की जाती है। जबकि यह अवसर श्री से पूर्ण होने का अवसर है, लक्ष्मी को आबद्ध रूप स्थायित्व प्रदान करने का अवसर है। जिससे लक्ष्मी का वास आपके जीवन में स्थायी रूप से बना रहे, धन की उपलब्धता बनी रहे। अनेक व्यक्ति परेशान रहते हैं कि धन आने से पहले ही उसके जाने का मार्ग बन जाता है, घर में पैसा रूकता ही नही। कारण इसका यही है कि हमने महालक्ष्मी को मूल रूप से आत्मसात करने की क्रिया सम्पन्न नही की। औपचारिक क्रियाओं से केवल और केवल बाहरी आवरण को प्रदर्शित किया जा सकता है। आवश्यकता है कि हम मूल तत्व को, मूल क्रियाओं को सम्पन्न करें और सहस्त्र लक्ष्मी की पूर्णता से युक्त हों।
इस हेतु परम पूज्य सद्गुरुदेव जी ने प्रत्येक साधक को सहस्त्र महालक्ष्मी पूजन व साधना सम्पन्न करने का निर्देश दिया है। जिसके अनुसार कैलाश सिद्धाश्रम- जोधपुर कार्यालय से प्रत्येक साधक को मैसेज, फोन द्वारा सूचना प्रदान कर सामग्री को बुक किया जा रहा है, यदि आपको अभी सूचना ना प्राप्त हुयी हो तो शीघ्र ही कार्यालम में अपनी सामग्री बुक करायें।
इस साधना पैकेट में रिद्धि-सिद्धि शुभ-लाभ गणपति व महालक्ष्मी विग्रह, महालक्ष्मी आबद्ध श्री, कुबेर, कनकधारा यंत्र और महाकाल कामदेव सौभाग्य गौरी जीवट पूजन विधि सहित प्रदान किया जा रहा है। जिससे आनन्द, सुख, भोग, विलास, सौन्दर्य, रस, आभूषण, वस्त्र, कीर्ति, यश, गौरव, सन्तान सुख, भू-भवन, वाहन आदि से युक्त हो सकेंगे।
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