भैरवी साधना साधक के जीवन का श्रृंगार है, पूर्णता है, सफलता है…
सिद्धिदा भैरवी प्राप्त हो जाय, तो जीवन में फिर किसी प्रकार की कोई न्यूनता या कमी नहीं रह पाती।
प्रस्तुत लेख में सिद्धिदा भैरवी के बारे में विस्तार से विवेचन है…
आप स्वयं इस समुद्र में गोता लगाइये, आप अनुभव कर सकेंगे, कि आप के हाथ मोतियों से भरे हैं।
एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ लेख आप सभी साधकों के लिये…
‘‘भैरवी साधना साधक के जीवन का श्रृंगार है, उसके जीवन की परिपूर्णता है, क्योंकि बिना ’शक्ति तत्त्व’ की साधना किये, बिना शक्ति तत्व को अपने अन्दर आत्मसात किये, व्यक्ति उच्चवस्था प्राप्त कर ही नहीं सकता…’’ ये शब्द अघोरी असंज्ञानन्द के थे, जिन्हें मैं चुपचाप बैठा सुन रहा था।
वह मुझे अचानक ही मिल गये थे… गंगोत्री के आसपास के जंगलों में मैं विचरण कर रहा था, कि उनसे भेंट हो गई… यह जगह सौन्दर्य की दृष्टि से अपूर्व है। सारा वातावरण यौवन के वेग में झूमता हुआ मन को एक असीम शांति एवं अनिर्वचनीय आनन्द प्रदान करता है।
‘‘पर…,’’ मैंने झिझकते हुये कहा, ‘‘पर भैरवी तो शायद उग्र देवी है और सुना है उनकी साधना तलवार की धार पर चलने के समान है… और अगर कोई भूल-चूक हो जाये तो गए काम से…।’’
वह ‘‘हो-हो’’ कर हंस पड़ा। मेरी बात कतई हास्यास्पद नहीं थी, पर वह ऐसे हंस रहा था, मानो मैंने कोई चटुकुला सुना दिया हो। एक बार तो मुझे लगा, कि शायद वह….
‘‘अरे नहीं… नहीं!’’ वह हंसी के बीच बड़ी मुश्किल से बोला, ‘‘ये सब कहां से सीख लिया तूने, कितनी बार समझाया है, कि इन दो टके के साधुओं के पास मत बैठा कर, जो चौबीसों घण्टें चिलम सुलगाते रहते हैं। ये बेचारे खुद भटके हुये हैं, तुझको क्या रास्ता बताएंगे…?’’
‘‘पर फिर भी… है तो यह बात सच ही?’’
‘‘अरे नहीं, ये सब फालतू बातें हैं, लोगों को गुमराह करने के लिये और अपनी दुकान जमाने के लिये…।’’
‘‘अच्छा अगर मैं तुझसे कहूं, कि भैरवी से ज्यादा सौम्य देवी और कोई है ही नहीं और इसकी साधना अत्यन्त सुगम है तो?’’
मेरी आंखें आश्चर्य के साथ फैल गई और उनमें सन्देह साफ-साफ झलक रहा था… असंज्ञानन्द ने मेरी मनोस्थिति तुरन्त भांप ली।
‘‘ तेरा इस तरह से आश्चर्य करना सही ही है, परन्तु मैं तुझसे दो टूक सत्य कह रहा हूं, कि भैरवी साधना बहुत सहज, सौम्य एवं साधक के लिये सर्वोपयोगी साधना है, जिसके बिना उसका जीवन अर्थहीन, सामान्य एवं चेतनाहीन रहता है…’’
‘‘शिव की ‘शिवा’ पूर्ण शक्ति स्वरूपा माँ हैं और उन्हीं के दस अंशों से दस महाविद्याओं का प्रादुर्भाव होता है अर्थात अगर हम दसों महाविद्याओं को संग्रहित करें, तो जो पिंड प्राप्त होगा वही वास्तव में शिव की आद्यशक्ति कहलाती है।’’
‘‘इन दस महाविद्याओं का विभाजन करके ही चौंसठ योगिनियों या भैरवियों की उत्पति होती है, जो मूल रूप से शक्ति स्वरूपा ही हैं…’’
वह कुछ देर तक चुप रहा ताकि उसकी बात मेरे गले उतर सके, फिर उसने अपनी बात आगे बढ़ाई-
– ‘‘भैरवी तो मात्र उस सर्वव्यापी शक्ति, उन महाविद्याओं की ही अंश स्वरूपा है और जब महाविद्याओं की साधना करने में कोई नुकसान नहीं, तो फिर भैरवी की साधना में ऐसा कैसे सम्भव है… और अगर अनुभव के आधार पर सच कहूं तो भैरवी साधना अन्य शक्ति साधनाओं से ज्यादा उपयोगी एवं उन तक पहुंचने को प्रथम सीढ़ी है…’’
मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था… अब भैरवी साधना महाविद्या साधनाओं से ज्यादा उपयोगी कैसे हो गई, जबकि वह खुद ही महाविद्या का अंश मात्र है…
असंज्ञानन्द ने मेरे चेहरे पर उठते हुये संशय के भावों को अनदेखा करते हुये अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘जब कोई व्यक्ति पी.एच.डी. करना चाहता है तो उससे पूर्व उसे इण्टर, ग्रेजएट आदि करना पड़ता है। वे उसके लिये अत्यधिक उपयोगी हैं और पी.एच.डी के लिए प्रथम सीढ़ी भी… तुम सीधे पी.एच.डी. नहीं कर सकते… बेशक कोशिश करके देख लो…
उसी तरह तुम सीधे दस महाविद्याओं की साधना नहीं सम्पन्न कर सकते, क्योंकि उनके लिये अद्वितीय चेतना एवं तेजस्विता की आवश्यकता होती है तो केवल भैरवी साधना के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। जो लोग कहते हैं, कि उन्हें महाविद्या सिद्ध है उनमें से 95 प्रतिशत बकवास करते हैं… क्योंकि इतनी तीव्र एवं उग्र शक्ति को अपने शरीर में स्थापित करने के लिये किसी गुरू अथवा किसी भैरवी की सहायता आवश्यक है।’’
असंज्ञानन्द ने उस दिन भैरवी साधना से सम्बन्धित न जाने कितनी गूढ़ बातें मुझे बताई। जब मैंने उनसे किसी भैरवी साधना के विषय में जानकारी चाही, तो उन्हेंने बिना आनाकानी किये मुझे ‘सकल सिद्धिदा भैरवी’ के विषय में विशिष्ट जानकारी दी, उसकी साधना विधि समझाई और उससे प्राप्त होने वाले विशेष लाभों के बारे में भी मुझे बताया। वही जानकारी मैं पाठकों के लाभ हेतु इन पृष्ठों पर प्रस्तुत कर रहा हूं-
1 सकल सिद्धिदा भैरवी की साधना अत्यधिक सोम्य है। सिद्धिदा भैरवी चौंसठ भैरवियों में से एक है और साधकों को योग क्षेत्र में अग्रसर करने के लिये सदैव तत्पर रहती है।
2 भैरवी की साधना करने से व्यक्ति को स्वतः ही धन लाभ प्रचुर मात्रा में प्राप्त होने लगता है। व्यापार, लॉटरी आदि माध्यम कोई भी हो, पर ऐसे व्यक्ति का घर सदैव धन-धान्य से पूर्ण रहता है।
3 ऐसे व्यक्ति का सारा व्यक्तित्व भैरवी के साहचर्य से अत्यधिक सम्मोहक एवं आकर्षक हो जाता है। अगर वह वृद्ध है तो पुनः यौवनवान एवं स्फूर्तिवान हो जाता है। वह जीवन भर रोगरहित हो कर स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है।
4 ऐसे साधक से जो एक बार भी मिल लेता है, वह अनायास ही उसकी ओर आकर्षित हो जाता है और उसकी हर आज्ञा का पालन करने को तत्पर हो जाता है।
5 भैरवी चूंकि स्वयं समस्त सिद्धियों की स्वामिनी होती है अतः ऐसा व्यक्ति स्वयं भी समस्त सिद्धियों को हस्तगत कर लेता है और दिव्य पुरूष कहलाता है।
6 वह सब प्रकार के ज्ञान-विज्ञान में अग्रणी हो जाता है तथा किसी भी विषय पर घण्टों धाराप्रवाह बोलना उसके लिये बाएं हाथ का काम होता है। इस तरह वह समस्त विद्वत् समाज में पूज्यनीय होता है।
7 उसका पारिवारिक जीवन अत्यधिक सुखी एवं रूचिकर होता है। उसे मनपसंद जीवन साथी की प्राप्ति के साथ-साथ पुत्र सुख भी प्राप्त होता है।
8 ऐसा व्यक्ति प्रबल शत्रुहन्ता होता है। दुश्मन उसके नाम से थर-थर कांपते हैं और उसके समक्ष आते ही तेजहीन हो जाते हैं।
9 भैरवी जहां व्यक्ति को हर प्रकार की भौतिक सुख सुविधायें प्रदान करती है, वहीं उसे आध्यात्मिक ऊंचाईयों की ओर भी अग्रसर करती रहती है और चूंकि भैरवियां महाविद्याओं की सहचरी, सेविकायें होती हैं अतः इनकी सहायता से फिर महाविद्या साधना में सफलता प्राप्त करना साधक के लिये सहज हो जाता है।
ये ऊपर कुछ बिन्दु दिये हैं जो इस सिद्धिदा भैरवी की साधना सम्पन्न करने से व्यक्ति के जीवन में स्वतः ही प्राप्त होने लग जाते हैं और स्वयं भैरवी भी चौबीस घण्टे अदृश्य रूप में साधक के साथ रहती है।
यह साधना अत्यधिक सुगम एवं सरल है और इसको स्त्री-पुरूष, युवक-वृद्ध कोई भी सम्पन्न कर सकता है। इसमें निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है-
1 सकल सिद्धिदा भैरवी यंत्र, 2 सकल सिद्धिदा भैरवी माला
यह साधना 26 दिसम्बर को सम्पन्न करे या किसी भी शुक्रवार को रात्रि काल में। साधक सफेद स्वच्छ धोती पहन कर श्वेत आसन पर दक्षिणाभिमुख होकर बैठ जायें और अपने सामने सफेद वस्त्र से ढके बाजोट पर ‘सकल सिद्धिदा भैरवी यंत्र’ स्थापित कर, उसका विधिवत पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें। फिर यंत्र पर लाल सिन्दूर अर्पित करते हुये, जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त करने की इच्छा कहें तथा कामना करें कि भैरवी निरन्तर सहयोगिनी बनी रहे।
इसके उपरान्त ‘सकल सिद्धिदा भैरवी माला’ से निम्न मंत्र की 21 माला मंत्र जप करें।
साधना समाप्ति के उपरान्त समस्त साधना सामग्रियों को किसी जलाशय में अर्पित कर दें। ऐसा करने से साधना फलीभूत होती है तथा व्यक्ति की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है और वह संसार में धन, मान, यश, प्रतिष्ठा एवं वैभव प्राप्त कर सबके द्वारा पूज्यनीय होता है।
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