यह सौभाग्य सिद्धि दिवस है, इस कारण स्त्रियां अपने परिवार की समृद्धि के लिये विशेष व्रत आदि करती हैं, तथा पूर्वजों का आशीर्वाद एवं पुण्यात्माओं से परिवार वृद्धि की कामना करती है।
अक्षय तृतीया लक्ष्मी सिद्धि दिवस है, इस कारण इस दिवस पर लक्ष्मी सम्बन्धित साधनायें विशेष रूप से की जाती हैं।
इस दिन जीवन को स्थायित्व प्रदान करने वाली वस्तुओं का क्रय करना चाहिये, जिससे वे जीवन में स्थायी रूप से घर में रह सकें।
होली का उमंग भरा पर्व और नवरात्रि का चैतन्यता से भरा काल बीत जाने के बाद आ जाती है ग्रीष्म की कड़ी ऋतु, ज्यों शैशव और यौवन का आनन्द बीत जाने के बाद गृहस्थ की कर्मठता की भाव-भूमि साधक के जीवन में आ जाती है। इस तपन में झुलसन नहीं है, जीवन की एक अलग शैली है जो आवश्यक भी है। दूध से भरे अन्न कण कुछ कड़ी धूप पाकर ही परिपक्व होते हैं, प्रौढ़ होते हैं और फिर सुनहरे स्वर्ण कणों में बदल कर ही साक्षात् लक्ष्मी का आगमन प्रकट करते हैं।
यह माह होता है वैशाख का, जब धूप की तपन थोड़ी बढ़ जाती है और दिन हल्के से बोझिल हो जाते हैं, तभी फिर से जीवन में नूतनता का संचार करता हुआ यह आता है। अक्षय तृतीया का पर्व। अक्षय यानी कि जिसका क्षय न हो, जो चिर स्थायी हो, नित नूतन हो, नित यौवन से भरा हो, तपन से भरे हुये दिनों में यह मां भगवती अन्नपूर्णा के ही स्वागत का एक अवसर है, यही फसल कटने का समय भी है और घर में धन-सम्पदा आने का भी। जो लक्ष्मी सैकड़ों-सैकड़ो दानों में खनकती हुई घर में ऐश्वर्य और लावण्य बिखेरती हुई आती हैं, यह उन्हीं के स्वागत का पर्व है, यह उन्हीं को चिरस्थायित्व भी देने का पर्व है, यह उन्हीं को अक्षय कर लेने का पर्व है।
इसे नवान्न पर्व भी कहा जाता है। यही भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतरण का भी दिवस है और प्रखर पराशुराम के अवतरण का दिवस भी। मां भगवती पार्वती का भी पूजन इस दिवस पर किया जाता है और यदि तृतीया में चतुर्थी विद्ध हो जाये तो गणपति साधना का अनुपम अवसर उपलब्ध होता है। संयोग से इस वर्ष ऐसा ही हो रहा है। अक्षय तृतीया गृहस्थ साधक के जीवन का सौभाग्य है। भविष्य पुराण में वर्णित है कि इस दिन जो भी साधना की जाये, जो भी कर्म किया जाये वह अक्षय ही होता है अर्थात् उसके शुभ फलों में कोई न्यूनता नहीं आती। बुंदेलखण्ड एवं मालवा में इसी दिन से, विशेष रूप से सौभाग्यवती स्त्रियां इस दिन पार्वती पूजा करती हैं और विवाह के मुहुर्त के रूप में भी यही दिवस सर्वश्रेष्ठ माना गया है इस वर्ष यह दिवस संवत् 2074 वैशाख शुक्ल तृतीय, शनिवार दिनांक 28 अप्रैल 2017 को आ रहा है।
गृहस्थ साधक के जीवन का आधार होती है लक्ष्मी, अर्थात् धन-सम्पदा, श्री, वैभव एवं लक्ष्मी का प्रत्येक रूप, और अक्षय तृतीया तो लक्ष्मी, मां भगवती अन्नपूर्णा एवं भगवान विष्णु का संयुक्त फलदायक दिवस है। प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा होती रहती है, कि उसके पास लक्ष्मी का स्थायी आवास हो, और उसे हर प्रकार से आर्थिक दृष्टि से पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो। लक्ष्मी का तात्पर्य केवल धन ही नहीं है, यह तो लक्ष्मी का एक अत्यन्त छोटा सा रूप है। महाकाव्यों में, आदि ग्रन्थों में लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों का, विभिन्न नामों का जो वर्णन आया है, उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करना ही सही रूप में लक्ष्मी को प्राप्त करना है।
लक्ष्मी का तात्पर्य है- सौभाग्य, समृद्धि, धन-दौलत, अच्छी किस्मत, सफलता, सम्पन्नता, प्रियता, लावण्य, आभा, कान्ति तथा राजकीय शक्ति – ये सब लक्ष्मी के स्वरूप हैं, और इन्हीं गुणों के कारण भगवान विष्णु ने भी लक्ष्मी को अपनी पत्नी बनाया। जब इन सब गुणों का समावेश होता है, और जो इनको प्राप्त कर लेता है, वास्तविक रूप से वही लक्ष्मीपति है।
लक्ष्मी जीतने की वस्तु नहीं है, जिसे जुऐ से प्राप्त किया जा सके। लक्ष्मी तो मन्थन अर्थात् प्रयत्न, अथक प्रयत्न, गहनतम साधनाओं का वह सुन्दर परिणाम है, जो साधक को उसके कार्यों के श्रीफल के रूप में प्राप्त होती है, उस लक्ष्मी को वह अपने पास स्थायी भाव से रख सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि वह कुछ करे, और इस कुछ करने के लिये उसके पास उचित मार्ग होना चाहिये, और यह उचित मार्ग उसे गुरु के निर्देश से प्राप्त हो सकता है।
जब व्यक्ति लक्ष्मी को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लेता है, तो वह पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है, भौतिक सुख पूर्ण रूप से प्राप्त होने पर ही वह ज्ञान और वैराग्य के पथ पर बढ़ सकता है।
मेरा तो यह कहना है, कि यदि कंगाल, निर्धन व्यक्ति घर छोड़ कर साधना की ओर, हिमालय की ओर, संन्यास की ओर भागता है, तो उसका वैराग्य शुद्ध वैराग्य नहीं है, यह तो सत्य से भागना हैं क्या आंखों के आगे हाथ रख देने से सूर्य छिप सकता है? सूर्य तो अपनी जगह स्थिर है, व्यक्ति अपनी आंखों के सामने पर्दा कर देता है, उसी प्रकार जो लक्ष्मी को तुच्छ कहते हैं, उसके संबंध में निन्दात्मक वाक्य लिखते हैं, वे व्यक्ति वास्तव में डरपोक, निर्बल और कायर हैं, जो जीवन में कुछ प्राप्त करने में असमर्थ होने पर इस जीवन के महत्व को ही नकारना चाहते हैं, लेकिन सत्य तो सूर्य की भांति है, जो छिप नहीं सकता।
अक्षय तृतीया में सबसे बड़ा गुण यह है कि पूरे वर्ष में कोई भी तिथि क्षय हो सकती है लेकिन यह तिथि अर्थात् वैशाख शुक्ल पक्ष की यह तृतीया कभी भी क्षय नहीं होती। यह पूर्णता के साथ आती है। कई बार नवरात्रि में तिथि क्षय हो जाती है, दीपावली, अमावस्या के स्थान पर चतुर्दशी को सम्पन्न करनी पड़ती है, लेकिन अक्षय तृतीया की तिथि कभी भी क्षय नहीं होती।
यह सौभाग्य सिद्धि दिवस है, इस कारण स्त्रियां अपने परिवार की समृद्धि के लिये विशेष व्रत आदि करती हैं, तथा पूर्वजों का आशीर्वाद एवं पुण्यात्माओं से परिवार वृद्धि की कामना करती है।
अक्षय तृतीया लक्ष्मी सिद्धि दिवस है, इस कारण लक्ष्मी सम्बन्धित साधनायें विशेष रूप से की जाती हैं। मनुष्य प्रत्येक शुभ कार्य मुहूर्त इत्यादि देखकर करता है, लेकिन अक्षय तृतीया ऐसा पर्व है जो गृह निर्माण शुभारंभ, विवाह विदेश यात्रा, नया व्यापार प्रारंभ करने के लिये सर्वाधिक श्रेष्ठ सिद्ध पर्व है।
इस दिन किसी भी प्रकार की साधना प्रारम्भ की जा सकती है, नया कार्य प्रारंभ किया जा सकता है, यहां तक कि यक्षिणी, अप्सरा और कमला साधना के लिये भी यह सिद्ध मुहूर्त दिवस है।
उपंयुक्त वर अथवा वधु की प्राप्ति के लिये और विवाह बाधा दोष निवारण के लिये भी श्रेष्ठ पर्व है।
अक्षय तृतीया का अद्भुत मुहुर्त
अक्षय तृतीया का महत्व भी उतना ही है, जितना दीपावली का सिद्ध मुहुर्त है, इस वर्ष अक्षय तृतीया दिनांक 28 अप्रैल 2017 को आ रही है।
शाक्त प्रमोद में लिखा है कि जो साधक अक्षय तृतीया के महत्व को जानते हुए भी पूजा साधना नहीं करता, वह दुर्भाग्यशाली है।
वृहद् रस सिद्धांत महाग्रन्थ में अक्षय तृतीया के सम्बन्ध में लिखा है, कि यह दिवस जीवन रस की अक्षय खान है, उसमें से जितना प्राप्त कर सको, उतना ही यह रस बढ़ता जाता है। अक्षय तृतीया लक्ष्मी पूर्णता का दिवस है, शारीरिक सौन्दर्य, लावण्य, आभा प्राप्त करने का दिवस है, व्यक्तित्व में शक्ति प्राप्त करने का दिवस है।
गृहस्थ पत्नी को भी गृहलक्ष्मी कहा जाता है, उनके लिये अक्षय तृतीया अनंग साधना का दिवस है।
यह प्रयोग अक्षय तृतीया या किसी भी सोमवार की रात्रि 9:00 बजे स्नानादि से निवृत्त होने के उपरान्त, स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण कर उत्तर दिशा की ओर मुंह कर सफेद ऊनी आसन पर बैठकर प्रारम्भ करें।
अपने सामने बाजोट पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर दाहिनी ओर गुरु चित्र स्थापित करे। तांबे के किसी पात्र में ‘भुवनेश्वरी यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र के सम्मुख ‘श्वेताभ माला’ स्थापित करें।
गुरु पूजन करें और शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित होना चाहिये। इसके पश्चात् संकल्प लें। जल अपने दाहिने हाथ में लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण करते हुये, तिथि, संवत्, वार, स्थान आदि का स्पष्ट उच्चारण करते हुये कहें, ‘मैं ऋण मुक्ति तथा समस्त रोग दोष निवारण के लिये यह साधना सम्पन्न कर रहा हूं और मुझे इसमें पूर्ण सफलता प्राप्त हो।’
जल को भूमि पर छोड़ दें।
इसके पश्चात् स्वयं के माथे पर कुंकुम का तिलक करें और ‘भुवनेश्वरी यंत्र’ को पवित्र जल से स्नान कराकर स्वच्छ कपड़े से पोंछ लें। यंत्र पर कुंकुम का तिलक कर दें। ‘श्वेताभ माला’ को भी पवित्र जल से स्नान करायें। यंत्र तथा माला का पूजन कुंकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से करें। इसके पश्चात् हाथ जोड़कर भगवती भुवनेश्वरी का निम्न रूप से ध्यान करें-
माता भुवनेश्वरी देवी के शरीर के अंगों की आभा प्रभात
काल के सूर्य के समान लालिमा लिये हुये है, मस्तक पर मुकुट स्वरूप चन्द्रमा शोभायमान है। उभरे हुये स्तनों वाली मां के तीन नेत्र है वे मन्द-मन्द मुस्करा रही है। चारों भुजाओं में वरद मुद्रा, अंकुश, पाश एवं अभय मुद्रा हैं। भक्तों को अभय प्रदान करने वाली भुवनेश्वरी देवी का मैं ध्यान करता हूं।
इसके पश्चात् साधक 21 बार गुरु मंत्र का जाप कर निम्न मंत्र का ‘श्वेताभ माला’ से 5 माला मंत्र जप करें-
साधना सम्पन्न होने के उपरान्त पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त करें। साधना समाप्त होने के अगले दिन यंत्र तथा माला नदी में प्रवाहित कर दें तथा 21 दिन तक नित्य प्रातः 51 बार उपरोक्त मंत्र का जप करें।
यह साधना अक्षय तृतीया, गुरु पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग या किसी भी गुरुवार की रात्रि 9:00 बजे स्नानादि से निवृत्त होकर, स्वच्छ सफेद वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठ जायें। अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर दाहिनी ओर गुरु चित्र स्थापित करे। तांबे के किसी पात्र में ‘मातंगी यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र के सम्मुख ‘रसेश्वरी माला’ स्थापित करें।
दैनिक साधना विधि के अनुसार गुरु पूजन सम्पन्न करे। इसके पश्चात् संकल्प लें। जल अपने दाहिने हाथ में लेकर अपने नाम व गोत्र का उच्चारण करते हुये, तिथि, संवत्, वार, स्थान आदि का स्पष्ट उच्चारण करते हुये कहें, ‘मैं जीवन में चुम्बकीय व्यक्तित्व व अद्वितीय पुरूष बनने के लिये यह साधना सम्पन्न कर रहा हूं और मुझे इसमें पूर्ण सफलता प्राप्त हो।’
जल को भूमि पर छोड़ दें। इसके पश्चात् हाथ जोड़कर भगवती मातंगी का निम्न रूप से ध्यान करें-
विनियोग
ऊँ अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि विराट छन्दः, मातंगी देवता, ह्रीं बीजं, हूं शक्ति, क्लीं कीलकं सर्वेष्ट सिद्धय जपे विनियोगः।।
इसके पश्चात् स्वयं के माथे पर कुंकुम का तिलक करें और ‘मातंगी यंत्र’ को गंगा जल से स्नान कराकर स्वच्छ कपड़े से पोंछ लें। यंत्र पर कुंकुम का तिलक कर दें। यंत्र तथा माला का पूजन कुंकुम, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से करें। मातंगी की 8 शक्तियों को स्मरण करते हुये यंत्र पर पुष्प अर्पित करें –
ऊँ रत्यै नमः ऊँ प्रीत्यै नमः
ऊँ मनो भावायै नमः ऊँ क्रियायै नमः
ऊँ शुद्धायै नमः ऊँ अनंगकुसुमायै नमः
ऊँ अनंगमदनायै नमः ऊँ मदनालसायै नमः
इसके पश्चात् गुरु मंत्र का 1 माला जाप कर निम्न मंत्र का ‘रसेश्वरी माला’ से 05 माला मंत्र जप करें-
साधना सम्पन्न होने के उपरान्त जप समर्पण करते हुये क्षमा प्रार्थना करे। अगले दिन यंत्र और माला को किसी पवित्र जलाशय में प्रवाहित कर दें।
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