भारतीय तंत्र विज्ञान अपने में अद्भुत एवं विशाल महाशक्तियों से सम्पन्न है, इसमें प्रकृति के वे सभी गूढ़ तत्व निहित हैं, जिनमें मानव जीवन की पूर्णता एवं प्रकृति का रहस्य छिपा हुआ है। महाशक्तियों में कई महाविद्यायें आती हैं, किन्तु उनमें जो विश्व की श्रेष्ठ महाविद्या साधना है, वह भगवती बगलामुखी साधना है। प्राचीन काल से ही जो भी महापुरूष हुये हैं या राजाओं ने निष्कंटक राज्य किया है, उनके जीवन में विजय एवं सफलता का रहस्य ही भगवती बगलामुखी उपासना रही है।
विष्णु पुराण में वर्णन आया है, कि एक बार सृष्टि में तपस्याहीनता से महाप्रलय की स्थिति आ गई और स्वयं विष्णु विचार करने लगे, कि मैं इस जगत का पालनकर्ता हूं और अभी महाप्रलय नहीं होना चाहिये, जगत की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। ऐसा विचार कर भगवान विष्णु स्वयं सौराष्ट्र प्रदेश के हरिद्रा तट पर गये और वहां कठोर साधना तपस्या प्रारम्भ की। तपस्या की पूर्णता के पश्चात् बुधवार अष्टमी के दिन एक देवी की उत्पत्ति हुई जो स्वर्णासीन थी, पीत वस्त्र और माला धारण किये हुये थी, हाथ में मुद्गर था और दूसरे हाथ में देवी ने शत्रु की जीभ पकड़ी थी। यह देवी वल्गा देवी थीं, जिसके प्रभाव से सृष्टि में प्रलय रूक गया।
यह वल्गा देवी ही स्तम्भन, कीलन और सम्मोहन की महादेवी हैं और तदन्तर इस वल्गामुखी शक्ति का नाम बगलामुखी बन गया। बगला शक्ति का मूल सूत्र प्राण चेतना है। ये प्राण चेतना प्रत्येक प्राणी में सुप्त अवस्था में होता है और साधना द्वारा इसे जाग्रत व चैतन्य किया जा सकता है। जब यह प्राण चेतना जाग्रत हो जाता है, तो व्यक्ति अपने सामने बैठे व्यक्ति पर ही नहीं अपितु किसी दूर स्थान पर स्थित व्यक्ति को सम्मोहित कर सकता है। बगलामुखी की साधना द्वारा ही इस प्राण चेतना को जाग्रत किया जा सकता है। जब यह चेतना जाग्रत हो जाती है, तो व्यक्ति अपने जीवन में स्तम्भन, वशीकरण व कीलन की शक्ति प्राप्त कर लेता है।
यह मूल रूप से मारण साधना नहीं है, यह तो अपने प्रभाव को इतना अधिक विस्तरित कर देने की साधना है, जिससे साधक के सभी मनोरथ पूर्ण जो जाते हैं। ‘तोड़ल तंत्र’ में कहा है, कि बगलामुखी साधना तांत्रोक्त पद्धति से सिद्ध की जानी चाहिये।
‘रूद्रयामल तंत्र’ में स्पष्ट रूप से बताया गया है, कि बगलामुखी साधना की पीठ पद्धति अपने आप में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और दुर्लभ है, जिसे महायोगी जगद्गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने योग विद्या से स्वयं भगवती बगलामुखी को अपने सामने प्रकट कर उसकी गोपनीय विधि और रहस्य को प्राप्त किया था। कहते हैं, कि मत्स्येन्द्रनाथ को पीठ पद्धति के द्वारा जब बगलामुखी सिद्ध हुई तो वह नित्य मत्स्येन्द्र के सामने आकर उपस्थित होती और योगीराज उन्हें स्वयं अपने हाथों से नैवेद्य अर्पित करते थे।
मत्स्येन्द्रनाथ ने ताड़ पत्रें पर वल्गा सिद्ध साधना पर एक अद्वितीय ग्रन्थ लिखा है, जो कि इस महाविद्या की सिद्धि के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह ग्रन्थ अत्यन्त गोपनीय और दुर्लभ रहा, किन्तु तिब्बत के मठों में इसकी प्रति उपलब्ध है। तिब्बत के कई लामा इस पीठ पद्धति से बगलामुखी को सिद्ध कर अद्वितीय आचार्य और योगी बने हैं।
दुर्लभ ग्रंथ ‘मंत्र महार्णव’ में भी लिखा है कि
इस मंत्र को सिद्ध करने के बाद मात्र स्मरण से ही प्रचण्ड पवन भी स्थिर हो जाता है। भगवती बगलामुखी को ‘पीताम्बरा’ भी कहा गया है। इसलिये इनकी साधना में पीले वस्त्रों, फूलों व रंग का विशेष महत्व है। यह पीताम्बर पटधारी भगवन् श्री मन्नारायण की अमोघ शक्ति, उनकी शक्तिमय सहचरी हैं।
ब्रह्मास्त्र की अचूक क्षमता का बल तथा शत्रुओं को सहज ही स्तम्भित कर देने का प्रभाव लिये ही तो अवतरित होती हैं पीताम्बरा देवी अपने साधक के जीवन में स्वर्ण आसन पर स्वर्णिम आभा के साथ आसीन, पीत वस्त्रों को धारण किये, मस्तक पर चन्द्रमा को धारण करने वाली त्रिनेत्री देवी बगलामुखी का तो सम्पूर्ण स्वरूप ही मातृमय है। साधक के लिये तो ये देवी मातृमय स्वरूप हैं।
यदि देवी उग्र हैं तो वे साधक के जीवन में दुःख देने वाले शत्रुओं के लिये हैं, शत्रु चाहे बाहरी हो अथवा आन्तरिक, शत्रु का तात्पर्य है रोग, शोक, तनाव, पीड़ा व दरिद्रता आदि। ये आन्तरिक शत्रु साधक को अन्दर से खोखला करने का प्रयास करते हैं। इन सभी पर वज्र की तरह प्रहार करने की क्षमता प्रदान करती हैं भगवती बगलामुखी।
भगवती बगलामुखी में 16 शक्तियां समाहित हैं। ये 16 शक्तियां इस प्रकार हैं – 1- मंगला, 2- स्तम्भिनी, 3- जृम्भिणी, 4- मोहिनी, 5- वश्या, 6- बलाय, 7- अचलाय, 8- मुंधरा, 9- कल्पमसा, 10- धात्री, 11- कलना, 12- कालकर्षिणी, 13- भ्रामिका, 14- मन्दगमना, 15- भोगस्था, 16- भाविका। इस प्रकार बगलामुखी साधना जीवन में एक श्रेष्ठ व अद्वितीय साधना है। दस महाविद्याओं में यह अपने आप में एक निराली साधना है और मेरा यह अनुभव रहा है कि जिस व्यक्ति ने भी इस साधना को गुरुदेव से दीक्षा प्राप्त कर सम्पन्न किया है, उनके जीवन में सम्पूर्ण बाधाओं का निवारण हुआ ही है और उन्होंने जीवन में नवीनता प्राप्त की है।
बगलामुखी देवी अत्यन्त तीव्र शत्रुहन्ता दारिद्रयहन्ता एवं श्री समृद्धि प्रदाता देवी हैं। प्रायः इस देवी का तीक्ष्ण स्वरूप होने के कारण सामान्य साधक इस साधना से भय खाते रहे हैं। इसके कारण इसके प्रामाणिक विधान एवं सिद्धतम आचार्य के अभाव में इस साधना का प्रचलन कम हो गया था, जिसके कारण जरूरतमन्द लोगों को इसका लाभ न मिल सका।
इस साधना में बैठने से पूर्व साधक को गुरु से बगलामुखी दीक्षा प्राप्त करनी चाहिये और साधना प्रारम्भ करने से पूर्व मन में दृढ़ संकल्प हो। मात्र कौतूहलवश या आजमाने की दृष्टि से साधना में बैठना उचित नहीं। गुरु निर्देशन एवं निरीक्षण अत्यन्त आवश्यक है।
यह साधना कृष्ण पक्ष की अष्टमी, नवरात्रि, बगलामुखी जयंती या किसी भी बुधवार से आरम्भ करें। साधक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर, अपने पूजा कक्ष को स्वच्छ कर बाजोट पर एक पीला कपड़ा बिछा दें। एक तांबे के कलश में पवित्र जल भरकर पांच पीपल के पत्ते रखकर नारियल स्थापित कर दें।
बाजोट पर पीले कपड़े के ऊपर थाली स्थापित करें। थाली के पीछे गुरु चित्र स्थापित कर विधि-विधान से, सम्मान सहित गुरु पूजन सम्पन्न करें। इसके पश्चात् थाली में प्राण-प्रतिष्ठित ‘बगलामुखी सिद्ध यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र के सम्मुख प्राण चैतन्य माला और सम्मोहन गुटिका स्थापित करें और संकल्प लें कि मैं अमुक गोत्र, अमुक पिता का पुत्र, अमुक नाम का साधक, गुरु आज्ञा से सूर्य या दीप के साक्षी में मत्स्येन्द्रनाथ प्रणीत पीठ पद्धति से बगलामुखी साधना सिद्ध कर रहा हूं, ऐसा कहकर हाथ में लिया हुआ जल भूमि पर छोड दें। इसके पश्चात् निम्न विधि के अनुसार पूजन क्रम प्रारम्भ करें-
विनियोग
दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग का उच्चारण कर जल भूमि पर छोड़ें-
ऊँ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुप् छन्दः
बगलामुखी देवता। ह्लीं बीजं, स्वाहा शक्तिः। मम शरीरे
यजमानस्य शरीरे वा नाना ग्रहोपग्रह प्रयोग, ग्रह प्रवेश,
सम्पूर्ण रोग समूह वातिक पैत्तिक श्लैष्मिक
द्वन्दजानि नाना दुष्ट रोग जन्मज पातक आदि
शान्त्यर्थे सर्व दुष्ट बाधा कष्ट कारक ग्रह उच्चाटनार्थे,
शीघ्र आरोग्य लाभार्थे मम सर्व अभीष्ट कार्य
सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ध्यान
इसके पश्चात् दोनों हाथ में पीले पुष्प और पीताम्बरा गुटिका को हाथ में लेकर निम्न प्रकार से ध्यान करें-
ऊँ नमो भगवति, ऊँ नमो वीर प्रताप विजय
भगवति बगलामुखि! मम सर्वनिन्दकानां सर्व दुष्टानां वाचं
मुखं पदं स्तम्भय जिह्नां मुद्रय, बुद्धिं विनाशय विनाशय,
अपरबुद्धिं कुरू कुरू, आत्मविरोधिनां शत्रूणां शिरो, ललाटं,
मुखं नेत्र, कर्ण, नासिकोरु, पाद, अणु-अणु, दन्तोष्ठ, जिह्नां,
तालु, गुह्य, गुदा, कटि, जानु, सर्वांगेषु, केशादि पादान्तं
पादादि केशवपर्यन्तं स्तम्भय स्तम्भय, खें खीं मारय मारय,
परमंत्र, परयंत्र परतंत्रणि छेदय छेदय, आत्म मंत्रतंत्रणि रक्ष
रक्ष, ग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय, दुःखं
हर हर, दारिद्रय निवारय निवारय, सर्वमंत्रस्वरूपिणि दुष्टग्रह
भूतग्रह पाषाणग्रह सर्वचाण्डालग्रह यक्षकिन्नर किम्पुरूषग्रह
भूतप्रेत पिशाचानां शाकिनी डाकिनी ग्रहाणां पूर्वदिशं बन्धय
बन्धय, वार्तालि! मां रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशं बन्धय बन्धय
स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, पश्चिमदिशं बन्धय बन्धय,
उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पाताल दिशं बन्धय बन्धय, बगला
परमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकल रोगान् विनाशय विनाशय, शत्रु
पलायनम् पंचयोजनमध्य राजजनस्वपचं कुरु कुरु, शत्रुन् दह
दह, पच पच स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, आकर्षय
आकर्षय मम शत्रुन् उच्चाटय उच्चाटय, ह्लीं फट् स्वाहा।
सम्मोहन गुटिका एवं पीले पुष्प यंत्र पर अर्पित करें और अपने हाथ में प्राण चैतन्य माला लेकर निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें-
इसके बाद साधक उपरोक्त मंत्र से ही किसी पात्र में या हवन कुण्ड में एक हजार आहुति दें। आहुति के समय मंत्र के बाद स्वाहा अवश्य बोलें। इसमें चन्दन, पीपल, बड़ या आम की लकड़ी का प्रयोग करना चाहिये। हवन सामग्री में घी, शहद, दूध, धन, पीली सरसों के दानें मिलाकर इसके द्वारा ही उपरोक्त मंत्र से हवन करें।
साधना के बाद थाली में रखी हुई जो सामग्री आदि है, उसे नदी में विसर्जित कर दें। इस प्रकार यह साधना सम्पन्न होती है। सफलता प्राप्त करने वाले साधक पर देवी बगलामुखी कृपालु हो जाती है, जिससे साधक का जीवन सर्व वशीकरण की चेतना से युक्त होता है।
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