उच्चकोटि के योगी, ऋषि, संन्यासी, तांत्रिक, देवता, विश्वामित्र, वशिष्ठ, भारद्वाज और निवास करती हैं देव-कन्यायें, अप्सरायें उर्वशी, मेनका, रम्भा इत्यादि। ऐसी महान् ऋषि आत्माओं का आह्वान केवल समर्पित साधक शिष्य के लिये ही है। सिद्ध योगी तो सदैव मानव कल्याण की ही कामना करते हैं और साधक के सहयोग के लिये तत्पर रहते हैं। आप भी साधना करें और अपनी देह व मन का कायाकल्प करें तथा निष्ठा भाव से समर्पित हों सिद्धाश्रम की दिव्य आत्माओं के सम्मुख—!
सिद्धाश्रम अर्थात् सिद्ध आश्रम, जो सिद्धों की भूमि है, जो ऋषियों की तपः स्थली है, जो देवताओं की पुण्य भूमि है, जहां बैठकर हजारों वर्ष की आयु प्राप्त योगी तपस्यारत तथा सशरीर विचरण करते रहते हैं, आध्यात्मिक चेतना का आधार सिद्धाश्रम है, जो सुगन्धमय, सुरभिमय, प्राणश्चेतनामय है।
कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक विशेष गुप्त स्थान है, जहां पहुंचना साधारण व्यक्ति के लिये दुर्लभ ही नहीं अपितु असम्भव ही है, किसी विशिष्ट शक्ति के प्रभाव होने से तथा उस स्थान के अधिष्ठाता की आज्ञा न होने से पृथ्वी लोक में रहने वाले प्राणियों के लिये इस दिव्य भूमि को देख पाना भी असम्भव है।
स्वामी विशुद्धानन्द जी के अनुसार यह मानसरोवर और कैलाश पर्वत के मध्य स्थित है, जिसका एक रास्ता कैलाश पर्वत में घूम कर जाता है और दूसरा मानसरोवर के जल में से होकर जाता है, जो उच्चकोटि के योगियों को ही ज्ञात है। सिद्धाश्रम अध्यात्म जीवन का वह अन्तिम आश्रय स्थल है, जो कि अपने-आप में अद्वितीय, अलौकिक और अनिवर्चनीय है, जिसकी तुलना किसी भी अन्य आश्रम या लोक से नहीं की जा सकती, क्योंकि सभी उसके आगे तुच्छ और नगण्य हैं।
उस सिद्धाश्रम की तुलना कहां की जा सकती है, जहां स्वयं श्री निखिलेश्वरानन्द जी विद्यमान हों, जहां स्वयं श्री कृष्ण, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य सशरीर विचरण करते हुये दिखाई देते हो, इस प्रकार के योगियों के रहते सिद्धाश्रम में कोई न्यूनता कैसे रह सकती है, इनके दर्शन मात्र से ही यह पृथ्वी अपने-आप में पुण्य सलिला बन जाती है। सिद्धाश्रम संसार का सर्वप्राचीन आश्रम है, इसकी उत्पत्ति का चिन्तन अपने-आप में अचिन्त्य है, जिस प्रकार वेदों के बारे में कहा गया है, वेदों की उत्पत्ति नहीं हुई। वे अपने-आप में अनादि हैं, अजन्मा हैं, उसी प्रकार सिद्धाश्रम भी अपने-आप में अजन्मा है, शाश्वत है।
सिद्धाश्रम जीवन का पुण्य है, आधार है, वह इसलिये कि समस्त पृथ्वी दो भागों में बंटी हुई है – भौतिक और आध्यात्मिक और सिद्धाश्रम से भी मनुष्य का सम्पर्क और सम्बन्ध बना, क्योंकि यदि मानव जीवन का लौकिक चिन्तन, विचार और कार्य क्षेत्र यह संसार है, तो इसके पारमार्थिक और आध्यात्मिक क्षेत्र सिद्धाश्रम है। सिद्धाश्रम जहां कल्पवृक्ष, समस्त मनोकामनाओं को पूर्णता देने में समर्थ है, जहां उर्वशी, रम्भा, मेनका आदि अप्सरायें नृत्य कर अपने सौभाग्य की श्रेयता को प्राप्त करती हैं जहां सिद्धयोगा झील में स्नान करने पर शरीर की सारी कल्मषता समाप्त हो जाती है, इसमें स्नान करने पर व्यक्ति का स्वतः ही कायाकल्प हो जाता है।
अति रूपं च सौन्दर्यं षोडशी गन्ध माप्नुयात्।
चिर यौवन सम्पूर्णं अप्सरा विचरन्ति वै।।
सभी एक सौ आठ अप्सरायें निरन्तर वहां विचरण करती रहती हैं, आज्ञा मिलने पर ही वे अन्य किसी लोक में जा पाती हैं, चाहे वह इन्द्रलोक हो या अन्य लोक हो, उनका स्थायी निवास तो सिद्धाश्रम ही है। इन सभी अप्सराओं में तीन अद्वितीय सुंदरी मानी गई है जिनके नाम उर्वशी, रम्भा, मेनका है इनमें भी उर्वशी का नाम सर्वोपरि है और यह सुंदर अप्सरायें अद्वितीय नृत्य और सूर्य के समान सौन्दर्य से सब को अभिभूत किये रहती है। उर्वशी के बारे में कहा गया है कि वह चिरयौवना है। हजारों वर्ष बीतने पर भी वह सोलह वर्ष की युवती के समान अल्हड, मदमस्त और यौवन रस से परिपूर्ण रहती है। सारा शरीर एक अद्वितीय सुंदरता से परिपूर्ण रहता है जिसको देख कर मनुष्य तो क्या देवता भी ठगे रह जाते है।
इस सिद्धाश्रम दिवस के अवसर पर साधक साधिकाओं को उर्वशी काया कल्प साधना करने पर इसका हजारों गुणा प्रभाव मिलता है क्योंकि इस दिवस पर सिद्धाश्रम की दिव्य आत्मायें पृथ्वी लोक में विचरण करती है तो साथ ही अप्सरायें भी इस दिन अपने साधकों पर प्रसन्न होकर उन्हें मनोवांछित प्रदान करती है। इस साधना को करने पर साधक के शरीर का ही नहीं वरन् तन, मन, व्यावहारिक, सामाजिक एवं भौतिक पक्ष का भी कायाकल्प हो जाता है। उसे स्वास्थ्य लाभ एवं धन संबंधी समस्याओं को समाधान होकर पूर्ण सफलतायें प्राप्त होती है। तथा एक सच्ची सहचरी की प्राप्ति होती है।
साधना विधि
सिद्धाश्रम संस्पर्शित उर्वशी यंत्र को अपने सामने बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर ताम्र पत्र में जल भरकर डाल दें। तथा अप्सरा माला से निम्न मंत्र की पांच माला जप करें। जप के पश्चात् वह जल चरणामृत स्वरूप स्वयं पी लें तथा परिवार के सदस्यों को भी पिलायें।
यह साधना सिद्धाश्रम दिवस के दिन रात्रि में 9 बजे के पश्चात् प्रारम्भ करें।
सिद्धाश्रम महान् आश्रम है जो आध्यात्मिक पुनीत स्थली है, प्रत्येक साधक वहां पहुंचने का सपना अपने मन में संजोये रहता है, क्योंकि सिद्धाश्रम दिव्यता व पूर्णता का परम स्थल है और जब साधक अपनी साधनाओं में अमृत सिद्धि प्राप्त कर सशरीर अथवा देह त्याग के पश्चात् वहां पहुंच जाता है, तो वह स्वयं दिव्य होकर अपनी आने वाली पीढि़यों का हर प्रकार से भला कर सकता है, लेकिन क्या हर कोई सिद्धाश्रम जा सकता है? सामान्य व्यक्ति कदापि नहीं।
मानसरोवर और कैलाश पर्वत से उत्तर दिशा की ओर स्थित लम्बा-चौड़ा अद्वितीय, प्रकृति की गोद में स्थित दिव्य आश्रम जिसकी ब्रह्मा जी के आदेश से स्वयं विश्वकर्मा ने अपेन हाथों से रचना की, श्री विष्णु ने सजीव, सचेतना युक्त बनाया और भगवान शंकर की कृपा से यह अजर-अमर है। यहां रहने वाले किसी भी योगी, संन्यासी को दुर्बलता, वृद्धावस्था व्याप्त नहीं होती, यह तो अमृत का दिव्य-धाम है।
सिद्धाश्रम की सिद्धयोगा झील, सिद्धाश्रम के सिद्धयोगी, ऊंचे-ऊंचे वृक्ष, सुगंधित पुष्प लतायें, छोटे-छोटे मनोहर आश्रम, सात्विक वातावरण की एक झलक ही है, इसका पूर्ण विवरण तो हजारों पृष्ठों में भी नहीं लिखा जा सकता।
सिद्धाश्रम में तन्मयता है, आनन्द है, सिद्धाश्रम में भावना ही लोक-कल्याण की भावना है, सिद्धाश्रम में योगी अपने बारे में नहीं सोचते, उनका केवल एक ही चिन्तन है कि किस प्रकार जन-जन में साधना-तत्व जागृत किया जाये, किस प्रकार उनकी पीड़ाओं को दूर किया जाये, किस प्रकार साधकों के जीवन में आनन्द का संवेग उत्पन्न किया जाये, किस प्रकार मन की ही नहीं साधकों के तन की बाधायें भी दूर की जायें, जिससे साधक सदैव स्वस्थ और निरोगी रह कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें, श्रेष्ठ साधक का लक्ष्य सिद्धाश्रम में प्रवेश पाना तो है ही, लेकिन उसके पहले वह अपने इस लौकिक जगत की मूल-भूत सभी आवश्यकताओं की पूर्ति भी कर लेना चाहता है, जिससे वह स्वयं कामनाओं से रहित होकर आगे बढ़ सके।
अधूरी इच्छायें अतृप्त आत्माओं को जन्म देती हैं, ये आत्मायें भटकती रहती हैं, क्योंकि इनके जीवन में कुछ ऐसी कमियां रह जाती हैं, जो उन्हें हर समय कचोटती रहती हैं, उनकी सन्तानों को दुःख और पीड़ा रहती है, ऐसी अतृप्त आत्मायें सिद्धाश्रम में प्रवेश योग्य नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने स्वयं अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त नहीं की।
साधक जंगल में धूनी जगाने वाला व्यक्ति नहीं है, साधक हिमालय पर्वत के बीच, घर से भाग कर तपस्या करने वाला व्यक्ति भी नहीं है, श्मशान की राख रगड़ने वाला व्यक्ति भी साधक नहीं है, सच्चा साधक तो अपने जीवन में अपने कर्त्तव्यों को निभाते हुए, गुरु कृपा से युक्त, गुरु से दीक्षा प्राप्त कर साधना करने वाला व्यक्ति है, जिसका लक्ष्य गुरु द्वारा बताये गये मार्ग पर आगे बढ़ते हुए कुण्डलिनी जागरण करना, मूलाधार से प्रारम्भ कर, समस्त चक्रों को भेदन कर, सहस्त्रार दर्शन करना, ऐसे साधक को केवल योगियों की कृपा प्राप्त होती है, क्योंकि गुरु कृपा ही तो सिद्धाश्रम का द्वार है।
साधक यदि अपने निर्मल हृदय से कोई साधना करता है, अपनी विकट घड़ी में आह्नान करता है, संकट के समय पुकारता है, किसी कार्य के लिये उसे विशेष आत्मबल की आवश्यकता होती है, आने वाले किसी बड़े खतरे का उसे ज्ञान नहीं होता है, तो क्या उसे संदेश प्राप्त हो सकता है?
जहां भावना ही कल्याण की है तो संदेश क्यों नहीं प्राप्त होगा, अवश्य प्राप्त होगा, लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि साधक निरन्तर अपने साधना तत्व को प्रबल बनाये रखे, वह लोगों के बहकावे में आकर अपने मार्ग को न छोड़े और सबसे बड़ी बात उसे यह प्रबल विश्वास हर समय होना चाहिये कि मुझे ऐसा आशीर्वाद प्राप्त है, जिससे मेरे संकट अपने- आप दूर होंगे, भावी खतरों के बारे में चाहे वह उसके कार्य से सम्बन्धित हों, परिवार से सम्बन्धित हों, बीमारी से सम्बन्धित हो अथवा किसी दुर्घटना से, यदि वह अपने आपको ऐसी शक्ति के भरोसे छोड़ कर अपनी साधना, अपने कर्त्तव्य पूरे करना रहता है, तो उसे हर स्थिति में संदेश अवश्य प्राप्त होता है।
संदेश का माध्यम सिद्धाश्रम का अशरीरी आत्माओं के लिये सूक्ष्म रूप से विचरण करना, किसी भी प्रकार का स्वरूप ग्रहण करना संभव है, इसलिये यह संदेश साधक को सोते अथवा जागते, कार्य करते अथवा यात्रा करते दिन अथवा रात को कभी भी प्राप्त हो सकते हैं, इसके लिये माध्यम उसका स्वप्न भी हो सकता है, इसके लिये माध्यम कोई अन्य व्यक्ति भी हो सकता है, उसके सामने उसकी पूजा में साधना करते हुये भी संदेश अकस्मात प्राप्त हो सकता है, यह विभिन्न रूपों में प्राप्त हो सकता है, इसे प्राप्त कर समझने की आवश्यकता अवश्य है।
साधक साधना के द्वारा आत्मा का आह्नान कर उनसे आवाहन कर प्रश्न कर अपनी समस्याओं के सम्बन्ध में पूछ सकता है, इस आह्नान जिसे ‘सिद्ध आत्म आह्नान’ कहा जाता है। इस प्रयोग को पूर्ण विधि-विधान से सम्पन्न करना चाहिये, जब भी आप इन आत्माओं को बुलायें, तो उन्हें सम्मान दें, नम्रता से शिष्ट भाषा का प्रयोग कर प्रश्न पूछें और तब ये सिद्ध आत्मायें आप द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर पूर्ण प्रसन्नता के साथ देती है, लेकिन कभी भी प्रयोग के तौर पर, हंसी के रूप में अथवा दूसरों के सामने अपने चातुर्य को बताने के लिये अथवा परखने के उद्देश्य से अथवा गलत प्रश्नों को पूछने के लिये, किसी गलत कार्य की पूर्ति करने की इच्छा रखते हुये सिद्ध आत्मा का आह्नान उचित नहीं है, इससे उस समय सिद्धाश्रम से आत्मायें आती तो अवश्य हैं लेकिन साधक को ऐसे श्राप मिल सकते हैं जिससे आगे का जीवन नरकमय हो सकता है, जब भी यह कार्य करें, पूर्ण सात्विक भाव से सम्पन्न करें। सिद्धाश्रम आत्म-आह्नान कैसे करें?
इस दिन सिद्धाश्रम को नये-नये दिव्य अनुभव प्राप्त होते हैं। गृहस्थ जीवन की समस्याओं का हल प्राप्त होता है। सिद्धाश्रम साधना गृहस्थ से भागने की साधना नहीं है अपितु गृहस्थ जीवन की बाधाओं को समाप्त करने हेतु सिद्धाश्रम के योगियों से आशीर्वाद प्राप्त करने की साधना है। यह साधना सिद्धाश्रम के अद्भुत आलोक को जीवन में समा लेने की साधना है। अपने सामने ‘गुरु चित्र’ तथा ‘सिद्धाश्रम संस्पर्शित गुरु यंत्र’ स्थापित करें, तांत्रोक्त विधि द्वारा इस विशिष्ट ‘गुरु यंत्र’ का पूजन कर ‘सिद्धाश्रम चैतन्य रहस्य माला’ द्वारा गुरु मंत्र का जप सम्पन्न करें। इस प्रकार इस माला से पांच माला मंत्र जप सम्पन्न करें, कमरे में धूप और अगरबत्ती अवश्य ही जलती रहे।
अब साधक कांसे की कटोरी में ‘आत्म यंत्र’ स्थापित करें तथा उस पर केवल चंदन तथा केशर चढ़ायें क्योंकि सिद्धाश्रम की विशिष्ट आत्माओं का पूजन सात्विक रूप से चंदन और केशर द्वारा ही किया जाता है, अब अपने सामने एक कागज पर पहले से लिख कर रखे हुए सिद्धात्मा बीज मंत्र का जप प्रारम्भ करें।
अब इस मंत्र को ‘सिद्धाश्रम चैतन्य रहस्य माला’ द्वारा ही उत्तर दिशा की ओर मुंह कर जोर-जोर से जप करना प्रारम्भ करें, एक माला मंत्र जप होते ही पुनः पांच बार गुरु मंत्र का जप करें और दूसरी माला सिद्धात्मा बीज मंत्र का जप करें। इसी क्रम को दोहराते हुए तीन माला मंत्र जप करें।
साधक को तीन माला जप करते-करते एक रहस्यमय वातावरण का अनुभव होने लगता है। ऐसा लगता है कि कोई आपके ऊपर आशीर्वाद मुद्रा में हाथ किए खड़े हैं, शरीर के रोम-रोम खड़े हो जाते हैं, इस स्थिति में साधक माला को रख कर, दोनों हाथ जोड़ कर गुरु मंत्र बोले और किसी प्रश्न को जिसका उत्तर वह जानना चाहता है पूछे, यह प्रश्न किसी भी प्रकार का हो सकता है, आत्मा से प्रश्न पूछते समय संकोच नहीं करना चाहिये।
उसी समय जैसे कि कोई बिजली कौंधी हो, साधक को कटोरी हिलती हुई प्रतीत होती है और उस प्रश्न विशेष का उत्तर प्राप्त होता है, अपने कार्यों के सम्बन्ध में संदेश प्राप्त होता है, इस संदेश को पूर्ण रूप से समझ कर उसकी व्याख्या करनी चाहिये और जब वह कान्तिमान स्थिति शांत हो, तो साधक को गुरु आरती सम्पन्न करनी चाहिये।
इस प्रकार एक बार पूर्ण विधि विधान सहित प्रयोग सम्पन्न करने के पश्चात् साधक किसी भी कार्य के सम्बन्ध में निर्देश प्राप्त करने हेतु सिद्धात्मा बीज मंत्र का 21 बार जप करने से स्पष्ट दिशा-निर्देश प्राप्त होता है।
सिद्धात्मा प्रवेश यदि आपके घर में हो जाता है तो आप यह निश्चित जानिये कि हर कार्य के सम्बन्ध में आपको दिशा निर्देश प्राप्त होंगे, यदि कोई आपको धोखा देने का प्रयास करेगा तो सिद्धात्मा से संदेश प्राप्त होगा कि अमुख व्यक्ति के कार्य न करें, यदि कोई दुर्घटना होने वाली है, तो तत्काल संदेश प्राप्त होगा कि अमुख यात्रा न करें, अथवा अमुक स्थान पर न जायें।
इन संदेशों को समझते हुये इनके अनुसार कार्य करने की आवश्यकता है तथा आगे निरन्तर संदेश प्राप्त होते रहते हैं, साथ ही अपनी साधना निरन्तर करते रहें, साधना के पथ से विचलित हुये साधक के लिये कोई भी मार्ग खुला नहीं रहता है।
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