हमारे सौरमण्डल में पृथ्वी के अस्तित्व को कायम रखने के लिए सूर्य का सर्वोपरि स्थान है। यदि सूर्य न हो, तो इस पृथ्वी पर प्रकृति का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश से ही सम्पूर्ण धरा आलोकित है, जिसके प्रकाश में व्यक्ति के जीवन से अंधकार को समाप्त कर उसे नवीन चेतना, जागृति से भर देने की क्षमता है। सूर्य के तेज के फल स्वरूप ही मनुष्य जीवन में चलायमान रहता है।
विवाह, यात्रा, मांगलिक कार्यों, व्यापारिक और शारीरिक तथा मानसिक रोग, खेद, उदासीनता, अपमान, मंदाग्नि आदि रोगों का अध्ययन कुण्डली में सूर्य की स्थिति के अनुसार किया जाता है। इस कारण सूर्य साधना को सम्पन्न करने से साधक में आकर्षण, सम्मोहन क्षमता में वृद्धि होती है। ग्रहण काल में साधना करने से विवाह यात्रा, तथा मांगलिक कार्यों और व्यापार वृद्धि में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं। श्रेष्ठ विजय काल का यह समय जो कि ग्रहण काल के रूप में आता है। ऐसे समय में छोटी-सी साधना भी सवा लाख मंत्र-जप वाले अनुष्ठान के बराबर होती है, क्योंकि जो फल सवा लाख मंत्र-जप करने से प्राप्त होता है, वही ग्रहण काल में पांच माला या ग्यारह माला मंत्र-जप करने पर ही प्राप्त हो जाता है।
ग्रहण काल अज्ञानियों के लिए अशुभ और ज्ञानियों के लिए शुभ होता है, इसीलिए श्रेष्ठ साधक या योगी इस क्षण का लाभ उठाने के लिए बहुत पहले से ही तैयारी शुरू कर देते हैं, जिसे वे निश्चित समय पर साधना कर जीवन में सफलता एवं सम्पन्नता प्राप्त करे श्रेष्ठ मानव बन सकें। जिसने आनन्द ही प्राप्त नहीं किया, वह आनन्द का क्या वर्णन करेगा, जिसे सुन्दरता का संसर्ग ही प्राप्त नहीं हुआ, वह सुन्दरता का बखान नहीं कर सकता, जिसने गृहस्थ सुख नहीं भोगा वह गृहस्थ जीवन की सभी स्थितियां योग्य, पत्नी, सुन्दर आवास, वाहन सुख, संतान सुख, कार्य सुख नहीं भोगा वह गृहस्थ जीवन को नारकीय जीवन कैसे लिख सकता है, जिस प्रकार शक्कर, मधु को चखे बिना उसके स्वाद का वर्णन नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार जीवन के सभी सुखों को भोगे बिना उनकी परिपूर्णता का ज्ञान भी नहीं बताया जा सकता, आनन्द को पूर्ण रूप से भोगने वाला व्यक्ति ही पूर्ण व्यक्ति है और वही योगी है।
अतः जीवन का यह प्रथम उद्देश्य एवं कर्तव्य है, कि अपना लक्ष्य निर्धारित करे और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए चाहे कितनी ही साधनाएं क्यों न करनी पड़े, कितनी ही बार प्रयत्न क्यों न करना पड़े अपने लक्ष्य को अवश्य ही प्राप्त करना है, और एक लक्ष्य प्राप्त करने के बाद नूतन नया लक्ष्य बनाये ऐसा दृढ़ निश्चय ही उन्नति का मूल मार्ग है।
जीवन में दुख संकट, परेशानियां, बाधाएं, रोग, पीड़ा तो आयेगी ही, इन स्थितियों के बीच साधना को सम्पन्न करने से ही सिद्धि एवं सफलता के द्वार खुल सकती है, और जब एक सफलता का द्वार खुलता जाता है, तो इतना अधिक उत्साह आता है कि दूसरा द्वार खोल सकें, सिद्ध साधक को जीवन में सुख, धन, सौन्दर्य, यश, सम्मान पूर्ण रूप से प्राप्त हो जाता ही है।
अज्रस धन, ऐश्वर्य तेजस्विता प्राप्ति सूर्य ग्रहण के समय सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में तेजस्वी ऊर्जा का संचार होता है यही ऊर्जा तो साधना में सिद्धि की सीढ़ी होती है। सियार सिंगी प्रकृति का मानव को रहस्मय वरदान है। यह जंगल में स्वतः प्राप्त होती है और यह लक्ष्मी का प्रतीक है। बिरले भाग्यशाली लोगों के घर में ही इस प्रकार की आश्चर्यजनक चैतन्य सिंयार सिंगी पायी जाती है। जिसके प्रभाव से जीवन में पूर्ण सम्पन्नता व समृद्धि आती है। साथ ही लक्ष्मी चिरस्थायित्व रूप सदा बनी रहती है।
ग्रहण काल में साधक को चाहिए कि पश्चिम की तरफ मुंह करके बैठ जाये तथा अपने सामने सिंयार सिंगी को रख दें। निम्न मंत्र की सहस्र लक्ष्मी तेजस्विता शक्ति माला से 5 माला जप करें तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और उसे जीवन में आर्थिक दृष्टि से अभाव नहीं रहता।
जब मन्त्र जप समाप्त हो जाये, तब साधक को चाहिए कि वह उस सिंयार सिंगी को अपने सन्दूक जहां पर गहने आदि रखे जाते हैं, वहां रख दें। तो व्यापार में उन्नति होती रहती है। यदि स्वयं बेरोजगार होता है तो वह नौकरी प्राप्त करने समर्थ हो पाता है तथा यश, मान, पद, प्रतिष्ठा, वैभव सम्पत्ति आदि से उत्तरोत्तर उन्नति करता रहता है।
इस ग्रहण के अवसर पर शत्रु दमन साधना सम्पन्न करनी चाहिये जिससे शत्रु पूर्ण वशीकरण युक्त दास स्वरूप बनता है। मुकदमों में सफलता प्राप्त होती है, तथा सर्वत्र विजय होती है, साधना में प्रयोग होने वाली सामग्री तांत्रोक्त शत्रु विजय यंत्र, शत्रु संहार सिद्धि माला, सिद्धि दायक सूर्य गुटिका।
सूर्य ग्रहण में पीले आसन पर पीली धोती पहन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाए और तांत्रोक्त शत्रु विजय यंत्र व सूर्य गुटिका को किसी ताम्रपात्र में स्थापित कर सामान्य पूजन करें और शत्रुसंहार सिद्धि माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें।
जप पूर्ण होने पर सामग्री को गोपनीय स्थान पर रख दें तो उसी समय से शत्रुओं पर पूर्ण विजय प्राप्त होनी प्रारम्भ हो जाती है और मुकदमों में स्थिति अनुकूल बनने लगती है।
यदि मनुष्य जीवन में उच्चता, प्रखण्डता व तेजिस्वता शक्ति धारण करनी हो, तो साधक को भगवान सूर्य की चेतना आत्मसात करनी ही चाहिये। क्योंकि भगवान सूर्य ही एकमात्र ऐसे देव हैं, जो व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व को असीम शक्ति व ऊर्जा प्रदान करने में पूर्ण समर्थ है। जिनके माधयम से साधक अपने पूरे जीवन को शारीरिक ही नहीं आत्म रूप में भी निखार सकता है।
सूर्य को सभी ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ व सभी ग्रहों का पालन कर्ता कहा जाता है। जो सभी ग्रहों का नेतृत्व भी करते हैं। इनकी आराधना करने से व्यक्ति में वहीं ऊष्मा, चेतना व प्रचण्डता व्याप्त हो जाती है। जिससे वह जीवन के सभी क्षेत्रों में विजय प्राप्त करता ही है।
ऐसे चैतन्य व रोम-रोम को जाग्रत करने की क्षमता से युक्त सूर्य ग्रहण पर सभी साधक-साधिकाओं को सूर्य की चेतना शक्ति को सूर्य तेजस शक्ति दीक्षा के माधयम से आत्मसात करने पर जीवन का चहुँमुखी विकास व उन्नति होता है। साथ ही सम्मोहन, आकर्षण, नेतृत्व क्षमता, धन प्राप्ति, व्यापार वृद्धि, कार्य सिद्धि अनेक क्षेत्रों का वह स्वामित्व प्राप्त कर लेता है।
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