किसी भी गांव में चले जाइये, वहां कोई मन्दिर अथवा पूजा स्थान हो या नहीं, लेकिन भैरव का मन्दिर अवश्य ही होगा। जन-जन के देवता के रुप में भैरव की प्रसिद्धि है, उनसे करोड़ो- करोड़ो भक्तो की आस्था जुड़ी है और यह आस्था तब जुड़ती है। जब भक्तों के कार्य सिद्ध होते हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि भैरव की साधना करने से सफलता मिलती ही है।
काल भैरवाष्टमी दिवस अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण दिवस है। क्योंकि प्रत्येक तांत्रिक ग्रन्थों में भैरव की साधना को पूर्णता का पर्याय माना गया है। उच्चकोटि के तांत्रिक ग्रन्थों में बताया गया है, कि चाहे किसी भी देवी या देवता की साधना की जाये, उसके सुरक्षा और पूर्णता के लिये भैरव की स्थापना, पूजा आवश्यक है, जिस प्रकार से गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले हैं, ठीक उसी प्रकार से भैरव समस्त प्रकार के शत्रुओं का नाश करने में पूर्ण रूप से सहायक हैं। और भैरव की स्थापना करने से दसों दिशाओं का आबद्धीकरण हो जाता है साथ ही उस साधना में साधक को किसी भी प्रकार का भय व्याप्त नहीं होता और न ही किसी प्रकार का उपद्रव या बाधायें ही आती हैं, ऐसा करने से साधक को निश्चय ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
इसके अलावा भी भैरव की साधना अत्यन्त महत्वपूर्ण और आवश्यक मानी गयी है। आज का जीवन जरूरत से ज्यादा जटिल और दुर्बोध बन गया है। पग-पग पर कठिनाईयां और बाधायें आने लगी हैं, अकारण ही शत्रु पैदा होने लगे हैं और उनका प्रयत्न यही रहता है, कि येन-केन प्रकारेण लोगो को तकलीफ दी जाये, उन्हें परेशान किया जाये, जिसके कारण जीवन में आवश्यकता से अधिक तनाव, चिंता बन जाता है।
भय का विनाश करने वाले ऐसे ही प्रचण्ड देव हैं काल भैरव! जिनकी साधना से व्यक्ति के अन्दर स्वतः ही एक ऐसी अग्नि स्फुलिंग स्थापित होता है, जिससे उसका सारा शरीर शक्तिमय जाता है, वह ओजिस्वता, दिव्यता और शत्रुओं के लिये प्रचण्डता से परिपूर्ण हो जाता है। इस साधना से साधक अपने जीवन की प्रत्येक प्रकार की चुनौती, संघर्ष, विपरीत परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने की क्षमता से परिपूर्ण होता ही है।
यदि सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी भैरव की साधना सम्पन्न कर लें, तो उसके जीवन में अकाल मृत्यु, दुर्घटना, ग्रहों का कुप्रभाव, शत्रु बाधा अथवा कोई षड़यंत्र जो उसके विपरीत हो स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। जिससे उसके सफलता के मार्ग में अवरोध की स्थिति ही नहीं बनती। कहा जाता है कि-
अर्थात् शक्ति के उदभव से भय का नाश होता ही है। यानि जो शक्ति सम्पन्न है, उसे किसी भी प्रकार के शत्रु अथवा बाधा से भय नहीं होता है। क्योंकि वह स्वयं इतना शक्ति सम्पन्न होता है।
कलियुग में भैरव साधना ही शीघ्र से सिद्ध होने वाली साधना है। तंत्रलोक में भैरव शब्द की उत्पत्ति भैभीमादिभिः अवतीति भैरव अर्थात भीषणतम बाधाओ से भी रक्षा करने वाले भैरव हैं। शिव महापुराण में बताया गया है कि काल भैरव भगवान शिव के अवतार हैं-
इस माह 25 नवम्बर से 03 दिसम्बर का समय काल भैरव साधनाओं के लिये चेतनावान स्वरूप में श्रेष्ठमय है। साधक-शिष्य के कल्याणर्थ भैरव की एक महत्वपूर्ण शत्रु, तंत्र दोष का विनाश करने में श्रेष्ठतम साबर साधना प्रस्तुत किया जा रहा है। इस साधना के द्वारा साधक कि बाधायें दूर तो होती ही हैं, साथ ही उसे अष्ट पाशों से भी निजात मिलता है। अन्य साधनाओं को भी अपनी मनोकामना अनुरूप सम्पन्न करें, लेकिन शत्रु विनाशक साबर भैरव साधना प्रत्येक साधक को अनिवार्य रूप से सम्पन्न करना चाहिये, क्योंकि गृहस्थ जीवन का मार्ग संघर्षो से ही गुजरता है, इसलिये सभी साधकों को यह साधना सम्पन्न करना आवश्यक हो जाता है।
यह साधना किसी भी मंगलवार की रात्रि के 08 बजे के पश्चात् सम्पन्न करना चाहिये। इसे यदि स्वयं की बीमारी के नाश हेतु करना है, तो अपने नाम का संकल्प लें और यदि दूसरे के लिये करना है, तो उसके नाम का संकल्प लेना चाहिये।
अपने सामने एक पात्र में काल भैरव यंत्र कवच स्थापित कर उस पर सिन्दूर चढ़ायें तथा एक दीपक जलायें, जिसमें चार बत्तियां हों तथा दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठें, काल भैरव महायंत्र के सामने पुष्प, लड्डू, सिन्दूर, लौंग अर्पित करें तथा मंत्र जप प्रारम्भ करने से पहले एक पात्र में जल भरकर, पात्र का मुंह लाल कपड़े से ढ़क कर काले धागे से बांध दें।
अब एक पात्र में तिल लें, अपने बायें हाथ में सात सुपारी रखें और भगवान भैरव का मानसिक ध्यान करें और निम्न मंत्र का जप करते हुये, दायें हाथ से तिल दक्षिण दिशा की ओर फेंकते रहें।
इस प्रकार 51 बार मंत्र जप के पश्चात् सातों सुपारी सात दिशाओं में फेंक दें, जल पात्र को खोलकर जल रोगी को पिला दें और काले धागे से काल भैरव यंत्र कवच को रोगी की भुजा में बांध दें अथवा गलें में पहिना दें। जटिल से जटिल व्याधि इस विधान से दूर होती हैं।
इस साधना को किसी भी शनिवार की रात्रि में करना चाहिये। पूजा स्थान में पूर्ण रूपेण शांति होनी चाहिये। स्नानादि से निवृत्त होकर सफेद वस्त्र धारण कर लें तथा जिस कार्य के सफलता हेतु साधना करनी है अथवा मुकदमा में विजय प्राप्ति हेतु।
वह कार्य सिंदूर से एक कागज पर लिख लें, अब अपने सामने काल भैरव महाशंख ताम्र पात्र में स्थापित कर पंचामृत स्नान करें, शंख पर सिन्दूर छिड़के और शंख के चारों ओर सिन्दूर से एक घेरा बना दें, सामने एक शत्रुहन्ता रूपी रूद्राक्ष बीज स्थापित करें, तीन दीपक के बीच भैरव शंख स्थापित करें।
संकल्प कर जल भूमि पर छोड़ दें तथा वह कागज जिस पर कार्य लिखा है, भैरव शंख के नीचे रख दें, वीर मुद्रा में आसन पर बैठकर मुठ्ठी बंद कर जप प्रारम्भ करें।
51 बार मंत्र जप करने के पश्चात् काल भैरव महाशंख काले कपड़े में बांधकर अपने बैग या ब्रीफकेस में रख दें। रूद्राक्ष बीज को भैरव मन्दिर में अर्पित कर दें।
किसी भी मुकदमे अथवा कार्य के लिये जाते समय महाशंख अपने पास ही रखें, ऐसा करने से प्रबल विरोधी व्यक्ति भी वशीभूत होकर सन्धि करने को उत्सुक हो जाता है। इसके प्रभाव से सफलता मिलती ही है और विरोधी शक्तियां हावी नहीं हो पाती।
इस साधना से शत्रु का शमन होना निश्चित है, साथ ही प्रबल से प्रबल शत्रु तीस दिन के भीतर-भीतर निस्तेज होकर शांत हो जाता है, उसकी शक्ति व बुद्धि क्षीण हो जाती है। किसी के प्रति बैर भावना से साधना करने से विपरीत प्रभाव मिलता है। सिर्फ अपनी सुरक्षा हेतु ही यह साधना सम्पन्न करें।
किसी गुरुवार की रात्रि में 09 बजे के पश्चात् साधक स्नान कर लाल धोती धारण करें, सिन्दूर का तिलक लगायें, अपने सामने एक मिट्टी की ढे़री बनाकर उस पर पानी छिड़के, फिर सिन्दूर छिड़के और उस पर महा भैरव यंत्र व शत्रु विनाशक गुटिका स्थापित करें, ढ़ेरी के चारो ओर तिल की 5 ढ़ेरियां बना कर उस पर पांच कमल बीज रखें, प्रत्येक बीज पर सिन्दूर छिड़के, अब अपने पूजा स्थान में दीप और धूप तथा अगरबत्ती जला दें, अपने हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अपनी अमुक शत्रु बाधा अथवा तंत्र बाधा के निवारण हेतु यह साधना सम्पन्न कर रहा हूं।
अब एक पात्र में सरसों और काले तिल को मिलायें, उसमें थोड़ा सरसो का तेल और सिन्दूर डाल कर उसे मिला लें, इस मिश्रण को भैरव मंत्र का 108 बार जप करते हुये शत्रु विनाशक गुटिका के समक्ष अर्पित करते रहें।
इस प्रकार 108 बार इस मंत्र का जप कर, गुरुदेव की आरती सम्पन्न करे, अब महा भैरव यंत्र व शत्रु विनाशक गुटिका छोड़कर बाकी सामग्री काले कपड़े में बांध कर जमीन में गाड़ दें।
वर्तमान समय ग्रहों की दृष्टि से चिन्ताजनक है। पिछले कई वर्षों से ग्रहो के कुयोगों से घातक शस्त्रों के दुरुपयोग तथा इन ग्रहों की वजह से भीषण प्राकृतिक प्रकोपों में भयंकर जन-धन की हानि हुयी है। पूरे विश्व भर में विरोधाभास और युद्ध की स्थितियां बनती रहती हैं। ऐसे कुयोगों की चपेट में 60 प्रतिशत से अधिक लोगों के आने की आशंका है। भारत में भी अनेक प्राकृतिक आपदा, आतंकवादी हमला, पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव कभी भी भीषणतम रूप ले सकती है। पूज्य सद्गुरुदेव ऐसे अनेक उपाय शिविरों और पत्रिका के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनसे ऐसे दुर्योगों के दुष्प्रभावों को यदि पूरी तरह रोका जाना सम्भव न भी हो, तो उसके दुष्परिणाम यथासम्भव कम से कम किया जा सके। ऐसा ही एक साधना भगवती छिन्नमस्ता और छिन्नमस्ता के भैरव से सम्बन्धित विकराल भैरव की साधना है।
यह साधना केवल ग्रह बाधा से ही नहीं किसी भी प्रकार के तांत्रिक, मांत्रिक, दुष्प्रभावों, भूत-प्रेत बाधा अथवा डिप्प्रेशन (जीवन में हताशा) या किसी भी प्रकार की असफलता जन्य निराशा को दूर करने के लिये राम बाण है।
यदि आपका कोई प्रियजन किसी कारण आपकी बात नहीं मान रहा है, किसी अन्य के प्रभाव में आने से गलत कार्यो में लिप्त हो, अथवा शराब, जुआ अनेक अनर्गल कार्य करता हो तो उसे श्रेष्ठ मार्ग पर गतिशील करने में यह अचूक है। जिसका वार कभी भी खाली नहीं जाता।
किसी रविवार की रात्रि में केवल धोती पहन कर, बाजोट पर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें, अपने सामने विकराल भैरव गुटिका और तांत्रोक्त नारियल रख लें। जिस व्यक्ति की तंत्र बाधा, ग्रह बाधा या किसी की गलत संगत छुड़ाने हेतु उसका नाम का उच्चारण कर दायें हाथ की मुट्ठी में सरसों के दाने भर लें। फिर मंत्र बोलते हुये सरसों को सामग्री के चारों ओर अर्पित करे।
साधना समाप्ति के बाद समस्त सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।
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