कार्य निर्विघ्न रूप से लक्ष्य की ओर गतिशील हो। वस्तुतः ऐसा देखने को मिलता है कि योजनाबद्व तरीके से कार्य करने के उपरांत भी आर्थिक दृष्टि से लाभ नहीं हो पाता, लाभ होता है तो पैसा रूक जाता है, कर्ज दिया हुआ पैसा समय पर वापस नहीं आता, अथवा उधार लेने जाते हैं, तो आपको धन नहीं मिल पाता है, पुराना मकान, जायदाद की बिक्री उचित मूल्य पर नहीं होती, ना ही खरीददार ही उपलब्ध हो पाते हैं। नौकरी-पेशा में पदोन्नति नहीं होती, और आपके सहयोगी दिन-प्रतिदिन प्रगति की ओर अग्रसर हैं, जबकि आप में बुद्धि, चातुर्य, कार्य क्षमता पूर्ण रूप से है, फिर भी आपको हर जगह पराजय का मुंह देखना पड़ता है।
पराजय का तात्पर्य है, पीड़ा, हानि, नुकसान, बाधा, विरोध, कार्य में अपूर्णता, अपमान इत्यादि। यदि कोई कार्य सिद्ध ना हो तो यह व्यक्ति की पराजय है। और आगे की क्रियाओं के लिये उत्साह भी समाप्त हो जाता है। पराजित होना या ना होना यह भाग्य पर ही निर्भर है, इसका सत्य से कोई परोपकार नहीं है। यह हमारे अन्तः मन की शक्ति और दैवीय ऊर्जा, चेतना पर निर्भर करता है, साथ ही उन दोषों पर जो हमारे प्रगति के मार्ग को बाधित कर रहें हैं, ऐसी बाधायें अनेक रूप में हमारे सामने आती हैं, जो हमारे किसी भी कार्य को पूर्णता छिन्न-भिन्न कर देती हैं। वह तंत्र दोष, ग्रह दोष, कर्म दोष, मलिन शक्तियों का प्रकोप कुछ भी हो सकता है। जिसके कारण व्यक्ति को पराजय का सामना करना पड़ता है, हानि उठानी पड़ती है, व्यक्ति दब कर जीवन जीने को बाध्य हो जाता है।
वहीं अपराजय होने का तात्पर्य है, कि आपके सभी दोष दूर हों, आप अपनी क्षमता से परिचित हो सके और अपने संकल्प के अनुसार कार्य कर सकें, दूसरे यदि आपको हानि पहुंचाने का प्रयास करें, तो आपको हानि न पहुंचे, जो भी शत्रु आप पर किसी भी प्रकार का तांत्रिक प्रयोग करे, वह उलट पड़ पाये, तभी जीवन सुरक्षित हो सकेगा।
मनुष्य जीवन प्राप्ति का भी यही उद्देश्य है कि वह अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकें, भौतिक सम्पदाओं से परिपूर्ण हो। उसे निरंतर उन्नति प्राप्त हो, सफलता का मार्ग खुलता ही जाये और शीर्ष पर पहुंच सके।
यह संभव है दैवीय शक्ति द्वारा, उचित समय पर श्रेष्ठ क्रिया द्वारा, जिसे आत्मसात कर साधक एक-एक सीढ़ी निरन्तर चढ़ता रहता है। जीवन भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही स्थितियों का संगम है, दोनों क्षेत्र पूर्णतः अलग-अलग नहीं है, कहीं न कहीं एक-दूसरे से अवश्य ही मिलते हैं, आवश्यकता केवल इस बात की है कि दोनों स्थितियों में सामंजस्य रखा जायें, दोनो क्षेत्र एक-दूसरे के पूरक हैं।
नवरात्रि के नौ दिवस शक्ति के वे नौ दिवस है, जो आपके भीतर पूर्ण आत्मविश्वास भरने में सहायक हैं, आपके एक-एक अणु को क्रियाशील करने में समर्थ हैं, और इस शक्ति का सही उपयोग आपको पूर्ण क्रियाशील बना कर उन्नति के विशेष मार्ग की ओर ले जाता है।
धनेश्वरी विजय साधना जीवन के इन्हीं मनोरथो को पूर्ण करती है। भगवती लक्ष्मी की धन प्रदायक स्वरूप धनेश्वरी, जो साधक को जीवन के सभी धन रूपी अभावों पर सदैव विजय प्रदान करती ही हैं, इस साधना द्वारा साधक जीवन की प्रत्येक स्थिति पर विजय प्राप्त करता ही है, क्योंकि यह साधना धन की पूर्ति के साथ ही साथ विजय सिद्धिदायक भी है। महामाया धनेश्वरी की ऐसी कृपा होती है, कि साधक अपने कौशल से विपरीत से विपरीत परिस्थिति को भी अपने अधीन कर लेता है। लक्ष्मी का यह स्वरूप सर्वथा अजस्र धन प्रदायक है। धनेश्वरी साधक के जीवन में धन का कोई अभाव नहीं होता।
इस विजय दशमी पर हमेशा-हमेशा के लिये अपने अभावों पर विजय प्राप्त करने के लिये यह साधना प्रत्येक साधक को सम्पन्न करनी ही चाहिये। जो आपके प्राणों में ऐसी शक्ति भर देता है। कि आप स्वयं चैतन्यमय होकर क्रियाशील हो सकेंगे। विजय दशमी धन रूपी अभावों पर विजय प्राप्त करने का आह्नान दिवस है। नवरात्र की पूर्णता और विजय दशमी की चैतन्यता निश्चय ही जीवन का परिर्वतनकारी क्षण होगा, यदि आप यह साधना सम्पन्न कर लेते हैं तो।
रात्रि में 10 बजे के पश्चात् स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन कर ऊनी आसन पर पीला रेशमी वस्त्र बिछा कर पश्चिम दिशा की ओर मुंह कर साधक अपने पूजा स्थान में बैठें, अपने सामने एक लकड़ी के बाजोट पर पीला आसन बिछाकर उस पर चावल की ढ़ेरी बना कर ताम्र कलश स्थापित करें, कलश में जल डालें, तथा इसके साथ ही ग्यारह कमल गट्टे बीज तथा दूब डालें, तत्पश्चात् अपने सामने एक मिट्टी का दीपक जलायें, इस दीपक में जो बत्तियां हो वे कम से कम पांच अवश्य हों, दीपक में शुद्ध घी का ही प्रयोग करें।
अब साधक चन्दन तथा अबीर गुलाल से कलश का पूजन करें। पश्चात् दूसरे ताम्र पात्र में विजय सिद्ध श्री ऐश्वर्य लक्ष्मी यंत्र व विजय शक्ति गुटिका स्थापित करें, व पंचोपचार पूजन पश्चात् धन प्रदायक माला से निम्न मंत्र का 5 माला जप करें।
मंत्र जप पश्चात् निम्न मंत्र का कमल बीज से 21 आहुति दें और यह कामना करें कि भगवती लक्ष्मी जीवन के सभी क्षेत्र में मुझे विजय प्रदान कर सभी सुखों से युक्त करें। पश्चात् सभी सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।
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