गुरु के जीवन की पूंजी एकमात्र उसके शिष्य ही होते हैं, भावों से युक्त गुरु शिष्य से सिर्फ समर्पण और प्रेम ही पाना चाहते हैं। शिष्य ही गुरु के आदर्शों और ज्ञान को सम्पूर्ण जगत में बाटंते हैं, तभी गुरु के अवतरण का उद्देश्य पूरा होता है। और सबसे बड़ी बात यह है कि अपने गुरु के आदर्शो को, ज्ञान, चेतना का विस्तार करने के लिये शिष्य में कितनी व्याकुलता, तड़फ है, इसके लिये स्वयं का आकलन प्रत्येक शिष्य को करना ही चाहिये, और यह समझना होगा कि मैं कितना सहायक बन सका इस निखिल युग निर्माण में, इस निखिल युग का निर्माण तो होकर रहेगा, लेकिन यदि आप चूके तो पुनः पछतावे के शेष कुछ ना बचेगा। इसलिये अपने आपको पहचानो, पुनः अपने अन्तः मन में जागृति लाओ और निकल पड़ो सद्गुरु निखिल चेतना को फैलाने के लिये। यही आपकी ओर से सद्गुरुदेव अवतरण दिवस पर आपका समर्पण होगा। सद्गुरुदेव ने लुधियाना गुरु पूर्णिमा शिविर में अपने प्रवचन में कहा- तुम शिष्य रूपी एक-एक पुष्प को संवारने में कितनी बार तुम्हारे दामन पर उगे कांटों को अपनी उंगलियों पर सहा है, कितनी बार उन छलछला आई लहु की बूंदों को चुपचाप अपने दामन से पोंछ दिया है, इसका कोई लेखा-जोखा ही नहीं, फिर भी सन्तोष होगा कि सुगन्ध फैले, तुम खुद भी सुवासित हो और दूसरों को भी सुवासित करों, तुम सभी शिष्यों से मुखरित होते, सुगन्धित होते और रंग बिखेरते उपवन का निर्माण करना ही है।
अमृत महोत्सव का मूल भाव चिंतन शिष्यों में निरन्तर सड़ी-गली क्रियाओं और विचारों का नाश कर जीवन में नूतनता और श्रेष्ठता का विस्तार करना होता है, और ये धरमजयगढ़ नगर का सौभाग्य है कि उन्हें निखिल जन्मोत्सव महोत्सव 19-20-21 अप्रैल को छत्तीसगढ़ में सम्पन्न करने का अवसर प्राप्त हुआ। शिष्यों ने अपनी भावना व्यक्त की इस वर्ष सद्गुरु अवतरण दिवस पर छतीसगढ़ में निखिल धर्म की चेतना का विस्तार और अधिक नूतनता और शक्ति से नव निर्माण कर सके। सबसे बड़ी बात यह है कि सामान्य संसाधनों की कमी के बावजूद घने जंगल में स्थित छोटे से ग्रामीण क्षेत्र में साधनात्मक क्रियाओं की व्यवस्था की गई। इस नगर के शिष्यों के चेहरे पर उत्साह और आत्म विश्वास दमक रहा था। हर शिष्य सद्गुरुदेव द्वारा दी गई साधनात्मक शिविर की प्राणवान ऊर्जा से आलोकित था। वास्तव में यह अमृत महोत्सव धरमजयगढ़ के लिये नव निर्माण की ही क्रिया है, जिसका प्रारम्भ हो चुका है।
मंगलमय निखिल ध्वनि का जयघोष सम्पूर्ण वातावरण को गुरुत्व तरंगों से आपूरित कर रहा था। 19 अप्रैल को भव्य शोभा यात्रा से शिविर प्रारम्भ हुआ जो शिविर स्थल पर गुरु आरती पर समापन किया गया। परम पूज्य सद्गुरुदेव कैलाश जी ने शिष्यों को सद्गुरुदेव निखिल के दिव्यतम आशीर्वाद से युक्त विष्णु भगवती लक्ष्मी दीक्षा व साधना सम्पन्न करवाई। ब्रह्म मुहुर्त से साधनात्मक क्रियायें प्रारम्भ होकर रात्रि कालीन आरती के पश्चात् समाप्त हुआ। सद्गुरुदेव कैलाश जी ने इस अमृत महोत्सव में प्राचीन विशिष्ट साधनात्मक पद्धति से शिष्यों को अवगत कराया व समस्त शिष्यों को योगेश्वर कृष्णत्व मुकुट रजत छत्र से दीक्षा प्रदान की, और त्रिशक्ति सरस्वती, लक्ष्मी शक्ति दीक्षा से सरोबार किया। शिविर स्थल के समीप गायत्री मन्दिर में गुरुदेव ने साधको को मनोकामना दीक्षा व सूर्य तेजस्वी साधना की विशिष्ट दुर्लभ साधनायें सम्पन्न करवायी। इस साधनात्मक शिविर से साधकों को सद्गुरुदेव ने पूर्ण रूपेण एहसास करा दिया कि जंगल में मंगलमय स्थितियां गुरु कृपा से ही निर्मित हो सकती हैं।
निखिल भक्तों के उत्साह, प्रेम को देखकर ऐसा प्रतीत होने लगा है कि सद्गुरुदेव के उद्देश्यों के पूर्ति का समय निकट आ चुका है। अब वह समय आ चुका है, कि भारतवर्ष के सभी शहर से निखिल की जयघोष सुनायी दें, और मेरी तरह हर शिष्य का यह सपना होगा ही कि हम सबके परमात्मा स्वरूप गुरुदेव निखिल के ज्ञान चेतना का बीज हर शहर, गांव में रोपा जाये, और सम्पूर्ण विश्व को सिद्धाश्रम जैसा बना दिया जाये। प्रत्येक साधक के हृदय भाव में गुरु की चेतना हो, हर मुख से गुरु मंत्र उच्चरित हो, यह सपना साकार करना ही होगा हमें, यह निखिल ऋण सभी शिष्यों पर समान रूप से है और इससे पूर्ण रूपेण सफल होना ही शिष्य जीवन का उद्देश्य है। पूर्णिमा का तात्पर्य है पूर्णता, पूर्णिमा में दिन के समय गगन मण्डल में सूर्य अपने तेज प्रकाश द्वारा धरा को आलोकित कर रहा है, तो उसी धरा को रात्रि में चन्द्रमा अपने शुभ्र शीतल प्रकाश द्वारा शीतलता एवं प्रेम का प्रवाह दे रहा है।
और यही कार्य सद्गुरुदेव करते हैं, जीवन में ऊष्णता हो, तेजस्विता हो, प्रकाश हो, वहीं जीवन में प्रेम की फुहार हो, पूर्णता की शान्ति हो, जीवन में सारे रस अर्थात् प्रेम, सौन्दर्य, हास्य, करूणा, विनोद, सहजता की धारा हो। इसीलिये गुरु पूर्णिमा होती है। सद्गुरु तो पारस ही होते हैं। वे नहीं देखते कि उनके सम्पर्क में आने वाला शिष्य किस प्रकार का बना है। वे उसकी अपूर्णता की ओर किंचित मात्र भी ध्यान नहीं देते, वे केवल और केवल एक ही विचार करते हैं कि इसे भी मुझे सामान्य से स्वर्ण की भांति कान्तियुक्त और तेजस्वी बनाना है। शिष्य जो अपने आप को अपूर्ण समझ रहा है, वह अपूर्णता का ज्ञान उसमें से दूर हो सके और वही शुभ, सौम्य विराट व्यक्तित्व बन सके। हर पिता अपने पुत्रों को अपने से आगे बढ़ते हुये देखना चाहता है। गुरु हर क्षण विचार करता है, कि मैंने अपने जीवन में कष्ट उठाकर जो अनुभव प्राप्त किये हैं, जो श्रमसाध्य, साधनायें की हैं, जिस प्रकार से ब्रह्माण्ड में वेद, मंत्र, ज्ञान की ध्वनि पांचजन्य रूपी गुरु मुख से प्रवाहित की है वही आधार शक्ति इन शिष्य रूपी पुत्रों को प्राप्त हो, जिससे वे स्वयं को पहिचान सकें, गुरु को अपने भीतर आत्मसात कर सकें।
गुरूत्व शक्ति को पूर्ण रूपेण धारण करने से ही शिष्य स्वयं के जीवन को प्रकाशित कर उसे प्राणवान ऊर्जा से सरोबार कर सम्पूर्ण जीवन को सभी सुखों से युक्त होकर अपने भौतिक जीवन को आनन्दमय व्यतीत कर सकता है। इसी हेतु 17-18-19 जुलाई को महामाया पूर्णत्व शिव-शक्ति गुरू पूर्णिमा महोत्सव रायपुर (छ- ग) में सम्पन्न होगा। आपका हृदय से स्वागत है!
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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