नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। आद्या शक्ति मां दुर्गा के नौ रूप हैं, नवरात्रि का अर्थ नौ रातें होता है। इन नौ रातों में आद्या शक्ति देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ रूपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी और सिद्धिदात्री कहते हैं।
त्रैलोक्य पाविनी मां भगवती जगदम्बा का मातृ स्वरूप भी अपने अन्दर शक्ति की कैसी चैतन्यता समाहित किये है, इसे इस सामान्य बुद्धि और इन सामान्य चर्म चक्षुओं से जाना भी कैसे जा सकता हैं? मां भगवती जगदम्बा के भीतर कैसा वरदायक रूप और प्रभाव छुपा है और कैसा ममतामय अनुग्रह, इसका सहज अनुमान लगाना कठिन है।
पग-पग पर जीवन में सहायक बनती भगवती जगदम्बा को पहिचानने के लिए ही पूरे वर्ष में नवरात्रि के पर्व रचे गये, साधनाओं को सम्पन्न कर उनकी कृपा प्राप्ति का प्रत्यक्ष फल प्राप्त करने का मुहूर्त प्राप्त किया गया। चैत्र नवरात्रि एवं आश्विन नवरात्रि, इन दो प्रगट नवरात्रियों के अतिरिक्त दो गुप्त नवरात्रियां भी होती है किन्तु सभी नवरात्रियों में चैत्र नवरात्रि की महत्ता सर्वोपरि है, यह देवी के प्रकट होने का उत्सव होने के साथ मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम का जन्म भी चैत्र नवरात्रि की नवमी में हुआ था।
इस चराचर जगत के मूल में मां भगवती जगदम्बा की ही शक्ति सर्वत्र क्रियाशील है। वे ही आनन्दरूपा है, वे ही पालनकर्ता हैं और वे ही अपने भक्तों का उद्धार करने में समर्थ हैं। केवल इस धरा के भक्तों का ही नहीं वरन् रूद्र, वसु, मित्र, वरूण, अग्नि, अश्विनी कुमारों, विष्णु, ब्रह्मा और प्रजापति का भी पोषण करने वाली आद्या शक्ति मां भगवती जगदम्बा ही है। कहीं महाकाली के रौद्र रूप में अशुभ का विनाश कर सहायक होती हुई, कहीं महालक्ष्मी के विविध आभूषणों से युक्त श्रृंगारमय स्वरूप में ऐश्वर्य देती हुई और कहीं महासरस्वती के पावन स्वरूप में जीव को आध्यात्मिक उच्चता की ओर ले जाती हुई, पल-पल गतिशील रहती हुई, पल-पल मुखरित और चैतन्य रूपा बन कर। जिस प्रकार यह प्रकृति प्रतिपल नूतन होती हुई सौन्दर्यमयी है, पालन करने में समर्थ है। तभी तो प्रकृति को भी स्त्री रूपा ही माना गया।
चैत्र नवरात्रि मां भगवती के विशेष उल्लास का पर्व है क्योंकि यह महाशिवरात्रि के ठीक बाद पड़ने वाला महापर्व है, शिवमयता से युक्त पर्व है। नवरात्रि का तात्पर्य ही है कि साधक के जीवन में नवरसों का संचार हो सके, विविधता आ सके और वह भी प्रतिपल नूतन हो सके, जो शिवमयता का सही अर्थ है। साधक का भी जीवन भगवान शिव के समान वैभवशाली बन सके। यह एक मिथ्या धारणा है कि आध्यात्मिक सफलता की प्राप्ति के लिए गतिशील साधक को जीवन में शक्ति साधना की आवश्यकता नहीं पड़ती और वहीं दूसरी ओर गृहस्थ साधक शक्ति प्राप्ति को केवल साधु, संन्यासियों के जीवन की ही विषय वस्तु मानता है। इस विरोधाभास का सही हल यही है, कि प्रत्येक साधक अपने जीवन में शक्ति-साधना को एक महत्वपूर्ण स्थान दे तथा स्वयं अनुभव कर सके कि किस प्रकार शक्तिमयता के द्वारा ही जीवन में समस्त सुख-वैभव और भोग-विलास प्राप्त किये जा सकते हैं।
जहां भौतिक और आध्यात्मिक जीवन, दोनों को ही सन्तुलन में रखते हुये जीवन को सफल बनाने की बात आती है तो मर्यादा पुरूषोत्तम राम की साधना और दीक्षा का महत्व निर्विवाद रूप से सर्वोच्च सिद्ध है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम की उपादेयता एक अनुभूत सत्य है। यह समस्त पातकों का नाशक तथा महामंगलकारी है। इस राम नाम शब्द ब्रह्म की अनन्त शक्ति के सामने कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता। एक समय महर्षि वाल्मीकि ने नारद जी से जिज्ञासावश पूछा कि इस समय संसार में समस्त प्राणियों का हित करने वाला, गुणवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ, वीर्यशाली, दृढ़व्रत, विद्वान्, आत्मवान, क्रोधजयी, दृढप्रतिज्ञ, सदाचारी, किसी की भी निन्दा न करने वाला तथा संग्राम में कुपित होने पर जिससे देवता भी भयभीत हो उठते हैं-ऐसा एक मात्र प्रियदर्शन पुरूष कौन है? तब नारद जी ने लोकोत्तर शील का निरूपण करते हुये उन्होंने कहा था कि श्रीराम गम्भीरता में महासागर तथा धैर्य में हिमालय पर्वत के समान है।
भगवान श्री राम अनन्त-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायक परम पिता परमेश्वर के अवतार थे और धर्म की मर्यादा रखने के लिये भारत भूमि अयोध्या में राजा दशरथ के यहां पुत्र रूप में अवतरित हुये। महाराज दशरथ के पावन गृह में जब समस्त लोकों के पालक भगवान् विष्णु अवतरित हुये तो उनके जन्म के ग्याहरवें दिन गुरु वशिष्ठ ने उनका नाम राम रखा। शास्त्रीय प्रमाणों के आधार पर करपात्री जी महाराज ने यह सिद्ध किया है कि जैसे छोटे से बीज में विशाल वटवृक्ष छिपा रहता है, वैसे ही सम्पूर्ण चराचर जगत् ‘राम’ नामक महामंत्र में समाविष्ट है। शक्ति के तीन प्रकार बतलाये गये हैं- उत्पादिनी, पालिनी तथा संहारिणी। ये त्रिविध शक्तियां राम-नाम की आश्रयभूता तथा रेफ अर्थात् रकार समन्वित है।
उस समय राक्षसों का नग्न बीभत्स रूप इतना प्रचण्ड हो गया कि ऋषि-मुनियों, गौ एवं ब्राह्मणों का जीवन संकट में पड़ गया था। जहां-जहां कोई शास्त्र-विहित यज्ञ-कर्म आदि किये जाते थे, राक्षसगण उन्हें विध्वंस करने हेतु सदा तत्पर रहते थे। देवताओं के आग्रह एवं अनुनय-विनय के फलस्वरूप भगवान् स्वयं अपने अंशो सहित राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न के रूप में अवतरित हुये। मर्यादापुरूषोत्तम भगवान् श्रीराम के आदर्श चरित्र का विवरण हम भिन्न-भिन्न रामायणों में पाते हैं, जिनमें वाल्मीकीय रामायण, आध्यात्म रामायण तथा परम भक्त गोस्वामी तुलसीदास चरित श्रीराम चरितमानस प्रमुख है।
श्रद्धा और विश्वास के साथ साधना सम्पन्न करने वालों के दुःख सुखों में बदल जाते है। प्रहलाद की कथा विश्व-विश्रुत है। आप भी अपने जीवन में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ साधना सम्पन्न करें और आपको सफलता प्राप्त होगी यह निश्चित समझे।
प्रत्येक साधक या भक्त अपने जीवन की कामनाओं को पूर्ण करने हेतु क्रियाशील रहता है परन्तु रावण रूपी बाधाओं को समाप्त किये बिना सफ़लता प्राप्त करना असम्भव सा हो जाता है। इसी हेतु विक्रम संवत् 2073 के प्रारम्भ के साथ मर्यादा पुरूषोत्तम राम के जन्मोत्सव और चैत्र नवरात्रि से युक्त शक्ति दिवसों में पूर्ण श्रद्धा से अपने सद्गुरुदेव से षोडश कला पूर्ण त्रैलोक्य शक्ति दीक्षा प्राप्त कर अपने जीवन में रावण रूपी बाधाओं को पूर्णरूपेण समाप्त कर सकें। जिससे साधक के जीवन में पाप-ताप दोषों, शत्रु बाधाओं का शमन होकर नूतन वर्ष विक्रम सवंत् 2073 में सुख-समृद्धि, सौभाग्य-सम्पन्नता, धन-वैभव, दीर्घायु जीवन की प्राप्ति हो सकेगी।
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