गुरु मंत्र को सर्वाधिक तेजस्वी मंत्र माना गया है। जो शिष्य हैं उनके लिये तो जीवन का आधार ही गुरु मंत्र है। गुरु मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख मंत्र का होता है। वर्ष में कम से कम तीन बार संकल्प लेकर गुरु मंत्र का पुरश्चरण अवश्य ही सम्पन्न करें। सद्गुरू तो शिष्य के सहस्त्रार स्थित ब्रह्म रन्ध्र में विराजमान होकर शिष्य का सदैव कल्याण ही करते है। ऐसे महान मंत्र की महिमा विलक्षण है।
गुरु मंत्र के सम्बन्ध में-
गुरु मंत्र सभी देवताओं के मंत्रों का मूल आत्म होता है। गुरू मंत्र का निरन्तर जप करते रहने से अन्य देवताओं के मंत्रों के जप करने की आवश्यकता ही नहीं होती है। सही अर्थों में गुरु मंत्र में मूल रूप से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का तेज समाहित होता है, गुरु मंत्र अपने आप में छोटा होते हुये भी असीम क्षमताओं से ओत-प्रोत होता है, क्योंकि इसके एक-एक शब्द का अर्थ अपने आप में मूल्यवान है, जो कार्य किसी अन्य देवी देवता के लम्बे चौडे श्लोक एवं स्तुति गान से नहीं हो पाता है, उसे गुरुमंत्र तत्काल कर दिखाता है, यदि पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ जप किया जाये तो व्यक्ति को अन्य कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं होती है, प्रत्येक साधक के लिये गुरु मंत्र जप आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है, जो साधक जिस कामना और भाव से मंत्र जप करता है, उसके अनुसार ही उसे फल की प्राप्त होती है। गुरु मंत्र जप के प्रभाव से साधक को निश्चित ही अपने पुरूषार्थ की सिद्धि प्राप्त होती है।
गुरु मंत्र के जप से उत्पन्न शक्ति साधक के शरीर को सूर्य के समान तेजस्वी बना देती है। गुरु मंत्र में शिष्य की पूर्णता निहित है। गुरु मंत्र साधक के शरीर रूपी बैटरी को पुनः चार्ज करने में पूर्ण समर्थ है, साधक के अन्दर अन्तः निहित सप्त शरीरों में स्थित अन्तः चक्र जो जन्म जन्मान्तर की वासना, कुसंस्कारो, मलिनता से सुप्त हो गये है। इन चक्रों को गुरु मंत्र चैतन्य करके पुनः सक्रिय कर देता है। साधक के शरीर में स्थित अन्तः चक्रों के चैतन्य होने के बाद साधक साधनाओं के माध्यम से इन चक्रों में छिपी शक्ति को जाग्रत कर देवत्व, ऋषित्व को प्राप्त कर लेता है। यदि गुरु मंत्र को साधक निरन्तर जपता रहता है तो गुरुमंत्र के बीजों में छिपी शक्तियाँ साधक के शरीर में जाग्रत हो जाती है।
हमारा गुरु मंत्र ‘ऊँ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः’ है। जिसका बाह्य अर्थ है कि ‘हे नारायण! आप सभी तत्वों के मूल तत्व है और सभी आकार और निर्विकार शक्तियों से परे है। हम आपको गुरु रूप में श्रद्धापूर्वक नमन करते है।’
यह सोलह बीजाक्षरों से युक्त बीज मंत्र उन षोडश कलाओं को दर्शाता है, जिसमें सद्गुरुदेव का स्वरूप परिपूर्ण है। ये बीज मंत्र ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ सिद्धियों का प्रतीक है। गुरु मंत्र के प्रत्येक बीजाक्षरों को गुरु मंत्र से सम्पुटित करके जप किया जाये, तो साधक को अवर्चनीय सफलता प्राप्त होती है।
गुरु मंत्र में पहला बीज ‘प’ है, इसका अर्थ है ‘पराकाष्ठा’ अर्थात् जीवन के हर क्षेत्र में, हर आयाम में सर्वश्रेष्ठ सफलता जो किसी के पास न हो। इस बीज मंत्र के जपने मात्र से एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी जीवन की उच्च सफलताओं को प्राप्त कर सकता है, वह चाहे भौतिक हो या आध्यात्मिक। ऐसे व्यक्ति को स्वतः ही अटूट धन सम्पदा, ऐश्वर्य, मान-सम्मान प्राप्त हो जाता है। इस बीज मंत्र को जपने वाला व्यक्ति भीड़ में भी ‘नायक’ रहता है, वह मानव जाति का मार्ग दर्शक कहलाता है।
गुरु मंत्र में दूसरा बीज ‘र’ है। यह शरीर में स्थित अग्नि को दर्शाता है, जिसका कार्य व्यक्ति को रोग, दुष्प्रभावों आदि से बचाना है। इसके अलावा यह इच्छित व्यक्तियों को ‘रति सुख’ प्रदान करता है, जो मानव जीवन की एक आवश्यकता है। यह सूक्ष्म अग्नि का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो शरीर की अग्नि से भिन्न दूसरे प्रकार की अग्नि है, इसका कार्य व्यक्ति के चित्त में स्थित विकार ‘काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार’ को जलाकर पवित्र करना है। विकारों के नष्ट होने से मानव चेतना का मस्तिष्क ब्रह्माण्ड के ज्ञान को समझने में सामर्थ्यवान हो जाता है। इस बीज मंत्र के जप के प्रभाव से व्यक्ति इच्छित अवधि तब जीवित रह सकता है, जिसे शास्त्रों में इच्छा मृत्यु शब्द से विभूषित किया है।
गुरु मंत्र में तीसरा बीज ‘म’ है जोकि ‘माधुर्य’ को इंगित करता है। माधुर्य का तात्पर्य है शरीर के अन्दर छिपा हुआ सत् चित् आनन्द आत्मिक शान्ति। इस बीज को साध लेने से व्यक्ति को जीवन में वह चाहे पारिवारिक हो या सामाजिक हो, उसके जीवन में सभी प्रकार की बाधायें एवं कठिनाईयां समाप्त हो जाती है। जिसके फलस्वरूप उसे अवर्णित आनन्द की प्राप्ति होती है, उसे परिवारिक एवं सामाजिक यश प्राप्त होता है तथा वह व्यक्ति एक दृढ एवं पवित्र चरित्र का स्वामी बन जाता है।
गुरु मंत्र में चौथा बीज ‘त’ है जो ‘तत्वमसि’ का प्रतिनिधित्व है, जिसका अर्थ है वह दिव्य स्थिति जो कि उच्चतम योगी भी प्राप्त करने के लिये लालायित रहते है। तत्वमसि का अर्थ है कि मैं तत्व हूं। जब साधक इस बीज मंत्र का जप करता है तो वह ब्रह्म में तथा अपने में लेश मात्र भी अन्तर नहीं समझता। उसे आध्यात्मिक जीवन में उच्चतम स्थिति प्राप्त हो जाती है, उसको जो उपलब्धियां और सिद्धियां प्राप्त होती है, उसको शब्दों से बयां करना असम्भव हैं, उसको तो केवल ऐसी स्थिति प्राप्त करने पर ही समझा जा सकता है। सही अर्थों में इस बीज मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति को असीमित शक्तियां प्राप्त हो जाती है।
गुरु मंत्र में पांचवा बीज ‘वा’ है। यह बीज मानव शरीर में पांच प्रकार के प्राण तत्व ‘प्राण, अपान, व्यान, समान और उदान’ को दर्शाता है। इस बीज मंत्र के प्रभाव से वह इन पांचो पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लेता है और वह अपनी इच्छानुसार कितने ही दिनों तक की समाधि ले सकता है। इस बीज को साध लेने से व्यक्ति लोकानुलोक गमन की सिद्धि प्राप्त कर लेता है और पलक झपकते ही वह ब्रह्माण्ड के किसी भी लोक में जाकर वापिस आ सकता है। इस बीज मंत्र के प्रभाव से उसे दूसरी उपलब्धि यह होती है कि वह वरदान या श्राप दे सकता है।
गुरु मंत्र में छठा बीज ‘य’ है जोकि ‘यम’ को दर्शाता है अर्थात् जीवन को एक सही पवित्र एवं लय के साथ जीने का तरीका। इसके द्वारा व्यक्ति को एक अद्वितीय, आकर्षण प्राप्त हो जाता है, उसका व्यक्तित्व इस प्रकार का हो जाता है कि लोग उसकी ओर स्वतः ही आकर्षित होकर उसकी हर एक बात को मानने के लिये तैयार हो जाते है। इस बीज मंत्र की साधना करने से व्यक्ति मृत्युंजय हो जाता है, मृत्यु कभी उसको स्पर्श नहीं कर सकती।
गुरु मंत्र में सातवा बीज ‘ना’ है। इसका अर्थ है ‘नाद’ अर्थात् दिव्य संगीत जो एक आनन्दमय, शक्तिप्रद गुंजरण है, जो व्यक्ति नित्य गुरु मंत्र का जप करता है, उसके आत्म में यह दिव्य संगीत गुंजरित होता रहता है। इस बीज मंत्र की साधना के माध्यम से व्यक्ति संगीत में पारांगत हो जाता है, उसकी आवाज अपने आप में सुरीली, मधुरता युक्त, आकर्षण युक्त हो जाती है। जो भी कोई उसको सुनता है वह एक अद्वितीय आनन्द से सरोबार हो जाता है और एक असीम शान्ति का अनुभव करता है।
गुरु मंत्र में आठवां बीज ‘रा’ अर्थात् ‘रास’ है, जिसका अर्थ है एक दिव्य उत्सव। एक अनिवर्चनीय मस्ती, इस बीज मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति अपने जीवन में उस तत्व को उतार पाने में सफलता प्राप्त कर लेता है, जिससे सम्पर्ण जीवन परिवर्तित होकर सम्पन्नता से युक्त हो जाता है। इस बीज मंत्र के निरन्तर जप से व्यक्ति सहज ही भाव समाधि में पहुंच जाता है और साधक गुरु में लीन होकर अपनी कुण्डलिनी को पूर्णतः जाग्रत कर परकाया प्रवेश, जल-गमन, अटूट लक्ष्मी एवं असीमित शक्ति का स्वामी बन जाता है।
गुरु मंत्र में नवां बीज ‘य’ है, इसका तात्पर्य ‘यथार्थ’ से है अर्थात् वास्तविकता, सच्चाई, परमसत्य। इस बीज मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति माया जाल को काटने में सफल हो जाता है, उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते है और वह दिव्य बोध को उपलब्ध होकर जाग्रत अवस्था प्राप्त कर लेता है तथा वह समाज में कीचड़ में जिस प्रकार कमल रहता है, उसी प्रकार वह व्यक्ति रहता है।
गुरु मंत्र में दसवा बीज मंत्र ‘ण’ है जोकि ‘अणु’ को दर्शाता है। इसका तात्पर्य है ब्रह्म की शक्ति। इस बीज मंत्र को जपने से व्यक्ति ब्रह्म स्वरूप हो जाता है, वह संसार में प्रत्येक के अन्दर अपने ही आत्म का दर्शन करता है, तथा वह स्वतः उन गोपनीय अष्ट सिद्धियों का स्वामी बन जाता है, जो ग्रन्थो में वर्णित है जैसे कि ‘अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा ईशित्व, वशीत्व, प्राप्ति, प्राकाम्य—-’
गुरु मंत्र में ग्यारहवा बीज ‘य’ है, अर्थात् ‘यज्ञ’ जिसका तात्पर्य है, यज्ञ विज्ञान इस बीज मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति के शुभ और अशुभ समस्त कर्म ज्ञान की अग्नि में जलकर समाप्ति हो जाती है, जिससे वह कर्मों के कठोर बन्धन से मुक्त होकर जन्म मृत्यु के आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाता है, इस बीज मंत्र के प्रभाव से उसे प्राचीन विद्याओं का ज्ञान हो जाता है, धन एवं वैभव की लक्ष्मी उसकी गृह में निरन्तर स्थापित रहती है।
गुरु मंत्र में बारहवा बीज ‘गु’ अर्थात् गुंजरण है। यह व्यक्ति के आन्तरिक शरीरों जैसे के ‘भू, भुवः, स्वः, मह, जनः, तपः, सत्यम्’ से उसके चित्त के योग को दर्शाता है। ‘गु’ गुरु का बीज मंत्र है, उसको जपने से व्यक्ति स्वतः ही गुरुमय हो जाता है, गुरु का सारा ज्ञान शक्तियां, तेजस्विता उसके शरीर में उतर जाती है, जिससे वह अत्यन्त उच्च भव्य स्थिति को प्राप्त कर लेता है, ऐसा व्यक्ति देवता, ऋषियों, एवं विश्व में पूजनीय हो जाता है। और ऐसा व्यक्ति किसी भी लोक पर आ जा सकता है।
गुरु मंत्र में तेरहवा बीज ‘रु’ है, अर्थात् ‘रूद्र’ जिसका अर्थ है ब्रह्माण्ड का मुख्य पुरूषतत्व इस बीज को सिद्ध करने से व्यक्ति कभी भी वृद्ध नहीं होता एवं न ही काल कवलित होता है, वह सर्वव्यापी, सर्वज्ञाता, एवं सर्वशक्तिशाली हो जाता है। ऐसा व्यक्ति विश्वामित्र की भांति नवीन सृष्टि रच सकता है और शिव की तरह उसे नष्ट भी कर सकता है, सम्पूर्ण प्रकृति उसके इशारे पर नृत्य करती हुई प्रतीत होती है, उसके चारों ओर एक दिव्य चतुर्दिक आभा मण्डल बन जाता है और जो भी ऐसे व्यक्तित्व के सम्पर्क में आता है, उसका आध्यात्मिक उत्थान हो जाता है।
गुरु मंत्र में चौदहवा बीज ‘यो’ जिसका अर्थ है ‘योनि’ अर्थात् शिवकी शिवा (शक्ति) ब्रह्माण्ड इसी ऋणात्मक शक्ति के स्वरूप में गतिशील है, जो भी साधक इस बीज मंत्र को सिद्ध कर लेता है, उसके शरीर में शक्ति चक्र जाग्रत होकर शक्ति उतर जाती है। बीज मंत्र के प्रभाव से व्यक्ति अपनी समस्त पाप राशि को नष्ट करने में सफल हो जाता है। ऐसा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को छिपाने के लिये दूसरे पर माया का आवरण डालने में समर्थ हो जाता है।
गुरु मंत्र में पन्द्रहवां बीज ‘न’ है अर्थात् ‘नवीनता’ जिसका अर्थ है एक नूतनता, एक अद्वितीय क्षमता। इस बीज मंत्र के प्रभाव से साधक दूसरों को अपने अनुकूल बना सकता है एवं स्वयं भी दूसरों के अनुकूल बनने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है। जिसके फलस्वरूप वह शीर्ष स्थान पर पहुंच जाता है और उसे किसी भी प्रकार की कमी नहीं होती। इस बीज मंत्र के सिद्ध कर लेने से व्यक्ति अपने बाह्य व्यक्तित्व कद, रंग, आंखों को बदलने में सक्षम हो जाता है। ऐसा व्यक्ति हर बार नवीन स्वरूप में दिखाई देता है। सही अर्थों में इस बीज मंत्र को सिद्ध करने वाला व्यक्ति हर क्षण इच्छानुसार परिवर्तित होता रहता है।
गुरु मंत्र का सोलहवां बीज ‘म’ है, अर्थात् ‘मातृत्व’, जिसका अर्थ है असीमित ममता अर्थात् व्यक्ति को उत्थान की ओर अग्रसर करने की शक्ति। इस बीज मंत्र को साध लेने से व्यक्ति स्वयं एक दया और मातृत्व का सागर बन जाता है, वह दया और ममता से आपूरित होकर किसी के दुःख और परेशानियों को अपने ऊपर लेकर उनको सुख पहुंचाने की चेष्टा करता है।
यह तो गुरु मंत्र की एक प्रारम्भिक व्याख्या है, गुरु मंत्र के एक-एक बीजाक्षर पर वृहद ग्रंथ लिखा जा सकता है। गुरु मंत्र के प्रत्येक बीजाक्षर के महत्व को समझते हुये गुरुमंत्र का जप करने वाला शिष्य जीवन में दिव्यता प्राप्त कर लेता है। संसार में भौतिकता और आध्यात्मिकता दोनों का ही संगम है, हमारे जीवन में भौतिक तत्व भी है जो इस संसार में प्राप्त भोग विलास को पूर्ण रूप से अपनाने को प्रेरित करते है, विषय वासना बार-बार हावी होती है लेकिन गुरु मंत्र का प्रभाव निराला ही है, गुरु सम्बन्ध में कहा गया है-
अज्ञान तिमारान्धस्य ज्ञानाजनं शलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
जो हमारे जीवन के अंधकार को अपने ज्ञान से दूरकर हमें ज्ञान दृष्टि प्रदान करे, उन सद्गुरूदेव को नमन है। गुरु हर शिष्य पर हर स्थिति में नजर रखते ही हैं और बार-बार उसे अज्ञान रूपी भटकन से बचाकर ज्ञान रूपी मार्ग पर लाते है जिससे वह अपना जीवन पूर्ण रूप से जी सकें, भौतिकता की दृष्टि से भी उन्नति कर सके और अपने जीवन आध्यात्मिक लक्ष्य अर्थात् अध्य-आत्म अपने सद्गुरुदेव से पूर्ण मिलन और परमतत्व को प्राप्त कर सके।
गुरु मंत्र के बीजाक्षरों से युक्त कुछ विशेष साधनायें दी गई हैं, जिन्हें आप निखिल जयंती के चैतन्य दिवस पर या किसी भी माह की 21 अप्रैल को सम्पन्न कर अपने जीवन का पूर्ण लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
बीज मंत्रों से सम्पुटित गुरु मंत्र साधनायें
स्वयं के अभ्युदय हेतु
जीवन में यदि आप चाहते है कि सफलता आपके कदम चूमे और यदि उन्नति के उच्च शिखर पर पहुंचना हैं, तो गुरु मंत्र से उत्तम और कोई पथ दर्शक नहीं है। जो तुम्हें उच्चता और श्रेष्ठता प्रदान कर सके। तुम्हारे जीवन का अभ्युदय कर सके। साधक ‘विद्युत माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला जप करें-
मंत्र
।। ऊँ वं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः।।
Om Vam Param Tatvay Narayanay Gurubhyo Namaha
विपत्तियों के नाश के लिये
मानव जीवन है, तो दुःख भी होंगे, कठिनाइयाँ भी होगी और विपत्तियां भी आयेंगी पर यदि अन्य कहीं भटकने की अपेक्षा गुरु मंत्र जप पूर्ण निष्ठा के साथ कर लिया जाय तो समस्त विपत्तियों का नाश स्वतः ही होने लगता है। निम्न मंत्र का सवा लाख मंत्र जप ‘आपदाहन्ता माला’ से करें-
मंत्र
।। ऊँ खं परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः।।
Om Kham Param Tatvay Narayanay Gurubhyo Namaha
रोग शमन दीर्घायु हेतु
गुरु मंत्र से कैसा भी रोग हो, जड़मूल से समाप्त किया जा सकता है, इससे श्रेष्ठ अन्य कोई उपचार नहीं है, जो कि मनुष्य को रोग मुक्त कर पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान कर सकें। निम्न मंत्र की ‘रूद्र माला’ से 51 माला जप करें। यदि साधक स्वयं करने में सक्षम न हो तो साधक का भाई या माता-पिता भी उसके हेतु कर सकते है।
मंत्र
।। ऊँ रं परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः ।।
Om Ram Param Tatvay Narayanay Gurubhyo Namaha
सुख-सौभाग्य प्राप्ति के लिये
यदि बार-बार प्रयत्न करने पर भी भाग्य साथ न दें, तो उस व्यक्ति से दुर्भाग्यशाली दूसरा कोई नहीं होता, किन्तु यदि व्यक्ति ‘सौभाग्य माला’ से निम्न मंत्र का 41 माला जप कर ले, तो उससे ज्यादा सौभाग्यशाली ही अन्य कोई नहीं होता, क्योंकि यह दुर्भाग्य की लकीरों को मिटाकर सौभाग्य के अक्षर अंकित कर देने वाला अत्यंत तेजस्वी मंत्र हैं।
मंत्र
।। ऊँ क्लीं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः।।
Om Kleem Param Tatvay Narayanay Gurubhyo Namaha
सुलक्षणा पत्नी प्राप्ति हेतु
इस मंत्र के माध्यम से अपनी इच्छानुकूल पत्नि को प्राप्त किया जा सकता हैं, जो सुलक्षणा हो, सौन्दर्यवती हो, साक्षात् लक्ष्मी हो, प्रिया हो, वरना सम्पूर्ण जीवन ही तनाव ग्रस्त हो जाता है निम्न मंत्र का ‘तिलोत्तमा माला’ से 31 माला मंत्र जप करें
मंत्र
।। ऊँ सुं हुं परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः।।
Om Sum Houm Param Tatvay Narayanay Gurubhyo Namaha
कार्य बन्धन शमन दारिद्रय निवारण हेतु
इस मंत्र के माध्यम से जीवन में व्याप्त दुःख, दैन्यता, व्यापार बाधा, दरिद्रता जैसे शत्रुओं का नाश कर जीवन में सुख, समृद्धि, सम्पन्नता प्राप्त करते हुये जीवन को उल्लासित व प्रफुल्लित बनाया जा सकता है। महाकाली शक्ति युक्त ‘हकीक माला’ से निम्न मंत्र की 21 माला 9 दिन तक नित्य जप करें। साधना समाप्ति पर माला को किसी निर्जन स्थान में गढ्ढ़ा खोद कर दबा दें।
मंत्र
।। ऊँ क्रीं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः।।
Om KreemParam Tatvay Narayanay Gurubhyo Namaha
समस्त साधनाओं में सफ़लता हेतु
इससे बड़ा और सर्वश्रेष्ठ उपाय नहीं है जो कि बड़ी-बड़ी उच्चकोटि की साधनाओं में सफलता प्रदान करने में सक्षम हो, क्योंकि गुरु ही एक मात्र ऐसा व्यक्तित्व होते है, जो शुभ और लाभ के प्रदाता है और समस्त न्यूनताओं को समाप्त करने वाले हैं। कैसी भी साधना हो या जीवन का कोई भी क्षेत्र हो सफलता निश्चित प्राप्त होती ही है। निम्न मंत्र का ‘साफल्य माला’ से सवालाख जप करें-
मंत्र
।। ऊँ ह्लीं परम तत्वाय नारायणाय गुरूभ्यो नमः।।
Om Hleem Param Tatvay Narayanay Gurubhyo Namaha
इन बीजाक्षरों से सम्पुटित गुरु मंत्र के जप से निश्चित ही उपरोक्त लाभ साधक को प्राप्त होते हैं, यह एक संन्यासी के द्वारा बताये गये तेजस्वी प्रयोग है, जो अचूक है, पूर्ण लक्ष्य भेदन में समर्थ है। मंत्र जप पूरा होने पर माला नदी, तालाब या मंदिर में विसर्जित कर दें। मंत्र के प्रभाव को निरन्तर बनाये रखने हेतु सवा लाख मंत्र जप का बीज मंत्र के अनुसार पुरश्चरण करना शास्त्रोक्त विधान है।
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