इस वर्ष अक्षय तृतीया दिनांक 09-05-2016 को है परशुराम जयंती और शंकराचार्य जयंती जैसे चैतन्य दिवसों से युक्त अक्षय तृतीया पूर्णरूपेण सिद्धि प्रदायक दिवस है। भगवान परशुराम 24 अवतारों में से एक प्रमुख अवतार हैं।
परशुराम को पौरूष का उच्चतम शिखर कहा गया है, जो संकल्प लिया उसे पूरा ही किया, साधना तपस्या में भी उच्चता, शौर्य में भी उच्चता, पूर्ण पुरूषार्थ कि जिनका नाम लेने भर से मनुष्य की भुजाएं फड़कने लगती हैं। यह महान संयोग है कि ऐसे दुर्धर्ष भगवान परशुराम की जयंती भी अक्षय तृतीया के दिन ही आती है।
सद्गुरूदेव ने भी अपने एक महत्वपूर्ण प्रवचन में कहा था कि होली, दीवाली, शिवरात्रि, नवरात्रि के समान ही सिद्धतम दिवस अक्षय तृतीया परशुराम जयंती है। इस दिन मांत्रेक्त साधना हो या तांत्रेक्त साधना सम्पन्न करें, इस दिवस में साधनाओं में पूर्णता प्राप्त होती ही है। जीवन का क्षय रूक कर जीवन का सुख सौभाग्य, कीर्ति, यश, आनन्द अक्षय बन जाता है। इसी शुभ मुहूर्त को देखते हुए भौतिक जीवन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण साधनायें।
जीवन को यदि सौभाग्य में बदला जा सकता है, तो वह अक्षय तृतीया के दिन अवश्य ही बदला जा सकता है। जीवन में सुख और सौभाग्य को साधना शक्ति द्वारा जीवन में उतारा जा सकता है, यही व्यक्ति का पुरूषार्थ होता है।
इन्हें कोई भी गृहस्थ, स्त्री या पुरूष सम्पन्न कर सकता है। इनमें कोई विपरीत प्रभाव नहीं होता। ये कम से कम दिनों में सम्पन्न हो सकती हैं। पूर्ण निष्ठा और श्रद्धा भाव से सम्पन्न करने पर निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है। ये साधनायें बिना किसी विशेष निर्देशन के व्यापार या नौकरी करते हुए सरलता से सम्पन्न की जा सकती हैं।
आज का जीवन अत्यधिक असुरक्षित और भयप्रद हो गया है, समाज में जरूरत से ज्यादा द्वेष, छल, हिंसा और शत्रुता का वातावरण बना हुआ है। फलस्वरूप यदि व्यक्ति शान्तिपूर्वक रहना चाहे तब भी रह नहीं पाता।
यह साधना शत्रुओं को परास्त करने और उनके लड़ाई-झगडे़ को समाप्त करने, मुकदमें आदि में पूर्ण सफलता प्राप्ति के लिये विशेष रूप से सहायक है। यही नहीं आकस्मिक संकट आ गया है तब भी यह साधना सम्पन्न करने पर वह संकट समाप्त हो जाता है। और सामने वाला व्यक्ति शत्रु भाव भूल जाता है।
जीवन की सुरक्षा और शत्रुओं पर निर्मम प्रहार करने और उन्हें शक्तिहीन, निस्तेज करने की दृष्टि से यह अपने आप में अद्वितीय साधना है। प्रत्येक साधक को यह साधना अपने जीवन में अवश्य सम्पन्न करनी चाहिये। इससे जहां एक ओर महाविद्या तो सिद्ध होती ही है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति शत्रुओं की तरफ से निशि्ंचत हो जाता है। यदि कोई व्यापार में बाधक बन रहा हो अथवा ऑफीसर नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा हो अथवा आपके प्राणों का संकट हो या आप किसी भी दृष्टि से असुरक्षित अनुभव कर रहे हों तो यह साधना सर्वश्रेष्ठ साधना है। यदि निष्ठापूर्वक इस साधना को सम्पन्न किया जायें, तों हाथों-हाथ फल प्राप्त होता है तथा जीवन में पूर्ण अभयता प्राप्त होती है।
अक्षय तृतीया अथवा किसी भी गुरूवार को यह साधना की जा सकती है। यह रात्रिकालीन साधना है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठ जायें, साधक पीली धोती ही पहिनें। फिर सामने पीले वस्त्र पर कालकष्णी शक्ति से युक्त ‘बगलामुखी यंत्र’ स्थापित कर दें। और उसके सामने ही ‘हरिद्रा हंसराज’ स्थापित कर दें। तत्पश्चात् अगरबत्ती और शुद्ध घी का दीपक लगा दें। सर्वप्रथम यंत्र को जल से धो पोछ कर केसर का तिलक लगावें। फिर हरिद्रा हंसराज पर निम्न मंत्र माचिस की शलाका से अंकित करें।
अब पीली हकीक माला से निम्न मंत्र का 9 माला मंत्र जाप करें।
यह छोटा सा मंत्र अपने आप में अत्यधिक महत्वपूर्ण है, निष्ठापूर्वक साधना को सम्पन्न करे और साथ ही साथ पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये, इस मंत्र में अमुक शब्द के स्थान पर शत्रु के नाम को बोले।
जब 11 दिन में मंत्र जप पूरा हो जाये तो उस हरिद्रा हंसराज को जंगल में जाकर लकडि़यां जलाकर उसमें उसे जला देना चाहिये। इस प्रकार करने से तुरन्त मनोवांछित कार्य सिद्ध हो जाते है यह साधना अपने आप में अत्यन्त महत्वपूर्ण और शीघ्र सिद्धिदायक है।
दस महाविद्याओं में से प्रमुख महाविद्या तथा संसार की अद्वितीय धनदायक देवी है, हजारों वर्षों से ऋषि मुनि व हमारे पूर्वज तारा साधना सम्पन्न करते आये हैं, क्योंकि पूर्ण निष्ठा से की गई साधना में सफलता प्राप्त होती है और मनोवांछित वरदान प्राप्त होता है।
इसके साथ ही इस साधना को सम्पन्न करने पर महाविद्या सिद्ध हो जाती है और साधक का भौतिक जीवन हर दृष्टि से सुखद और खुशहाल बना रहता है वह जो कुछ भी चाहता है, उसे प्राप्त हो जाता है।
इस साधना को 9-5-2016 या किसी भी माह के रविवार की रात्रि से प्रारम्भ किया जाय तो शीघ्र सफलता प्राप्त होती है। स्नान आदि कर लाल धोती पहन कर लाल आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें। सामने लकड़ी के बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर तारा शक्ति से युक्त ‘महालक्ष्मी यंत्र’ स्थापित करें। फिर अपने सामने गन्धक की 7 ढेरियां बना दें, चौथी ढेरी पर तेल का दीपक स्थापित करें। दीपक के सामने ‘तारा वत्सनाभ’ को स्थापित कर दें और उसके आगे जलपात्र, कुंकुंम, अगरबत्ती आदि रख दें।
सर्वप्रथम जल से यंत्र को धोकर रख दें, अक्षत चढ़ा दें, फिर तारा वत्सनाभ को जल से धोकर पोंछ कर उस पर किसी भी शलाका से कुंकुंम के द्वारा निम्न मंत्र अंकित करें।
इसके बाद दीपक व अगरबत्ती जला दें तथा ‘मूंगा माला’ से 5 माला मंत्र जप करें। यह साधना रात्रि में ही सम्पन्न की जा सकती है। इसके बाद तारा यंत्र को पूजा स्थान में रख दें और तारा वत्सनाभ को उसी लाल वस्त्र में लपेट कर घर के किसी सुरक्षित स्थान में रख दें। इस प्रकार करने से यह साधना सिद्ध हो जाती है तथा जीवन में वह सब कुछ प्राप्त होता है जो साधक की इच्छा होती है।
वस्तुतः यह साधना आज के युग में अपने आप में चमत्कार है और जो इस साधना की सिद्धि कर लेता है, उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता, प्रत्येक साधक को चाहिये कि वह जीवन में एक बार अवश्य ही इस साधना को सम्पन्न करें।
रम्भा, उर्वशी और मेनका तो देवताओं की अप्सरायें रही है और प्रत्येक देवता इन्हें प्राप्त करने के लिये प्रयत्नशील रहा है। यदि इन अप्सराओं को देवता प्राप्त करने के लिये इच्छुक रहे हैं तो मनुष्य भी इन्हें प्रेमिका रूप में प्राप्त कर सकते हैं। इस साधना को सिद्ध करने में कोई दोष या हानि नहीं है तथा जब अप्सराओं में श्रेष्ठ उर्वशी सिद्ध होकर वश में आ जाती है, तो वह प्रेमिका की तरह मनोरंजन करती है, तथा संसार की दुर्लभ वस्तुयें और पदार्थ भेंट स्वरूप लाकर देती है। जीवन भर यह अप्सरा साधक के अनुकूल बनी रहती है, वास्तव में ही यह साधना जीवन की श्रेष्ठ एवं मधुर साधना है तथा प्रत्येक साधक को अपने जीवन में एक बार इस साधना में सिद्धि हेतु प्रयत्नशील होना चाहिये।
यह साधना आप अक्षय तृतीया से प्रारम्भ करे या किसी भी शुक्रवार से प्रारम्भ कर सकता है। यह सात दिवसीय रात्रिकालीन साधना है। साधक स्नान आदि कर पीले आसन पर उत्तर की ओर मुंह कर बैठ जाएं। सामने पीले वस्त्र पर ‘उर्वशी यंत्र’ (ताबीज) स्थापित कर दें तथा सामने पांच गुलाब के पुष्प रख दें। फिर पांच घी के दीपक लगा दें। फिर उसके सामने ‘सोनवल्ली’ रख दें और उस पर केसर से तीन बिन्दियां लगा लें।
इस यंत्र के नीचे केसर से अपना नाम अंकित करें। फिर उर्वशी शक्ति युक्त ‘अप्सरा माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला 7 दिन तक जप करें।
यह मात्र सात दिन की साधना है और सातवें दिन अत्यधिक सुन्दर वस्त्र पहने यौवन भार से दबी हुई उर्वशी प्रत्यक्ष उपस्थित होकर साधक के पास बैठ जाती है और कहती है कि तुमने मुझे साधना से अपने वश में किया है, जीवन भर आप जो भी आज्ञा देंगे, मैं उसका पालन करूंगी।
तब पहले से ही लाया हुआ गुलाब के पुष्पों वाला हार उसके गले में पहिना देना चाहिये, इस प्रकार यह साधना सिद्धि हो जाती है।
साधना समाप्त होने पर उर्वशी यंत्र (ताबीज) को धागे में पिरोकर अपने गलें में धारण कर लेना चाहिये। सोनवल्ली को पीले कपड़े में लपेट कर घर में किसी स्थान पर रख देना चाहिये, इससे उर्वशी जीवन भर साधक के वश में बनी रहती है और उसकी आज्ञा का पालन करती है।
जीवन की पूर्णता के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि मनुष्य हर हालत में साधक बने, जीवन की सम्पन्नता के लिये यह जरूरी है कि वह हर हालत में दैवी सहायता प्राप्त करे, जीवन की सफलता के लिये यह जरूरी है कि देवताओं की आराधना कर शक्ति प्राप्त करे और उसके माध्यम से अपने अभाव, अपनी समस्यायें, अपने कष्ट-बाधाओं को दूर करे और जीवन में भौतिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्णता प्राप्त करने का प्रयत्न करें।
अक्षय तृतीया के श्रेष्ठतम सिद्धि दिवस पर प्रत्येक साधक को अपनी आवश्यकता अनुसार साधना सम्पन्न करनी ही चाहिये। जिससे उसके जीवन में आ रही बाधाओं का शमन हो सके और वह अपना जीवन पूर्णरूपेण आनन्द और मस्ती के साथ जीवन व्यतीत कर सकता है।
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