पौराणिक मान्यता के अनुसार-भगवान विष्णु द्वारा सुदर्शन चक्र से सती की मृत देह को काट-काट कर जिन 51 स्थानों पर गिराया गया वहां-वहां एक-एक शक्तिपीठ बन गया, इस मान्यता में सत्यता है कि वे 51 स्थान शक्ति के स्रोत बिन्दु है, इन स्थानों पर जब साधक शुद्ध मन से शक्ति भाव से जाता है, तो उसे अपने आप एक रहस्यमय शक्ति का आभास होने लगता है, अपने शरीर में एक तीव्र ऊर्जा सी बहने लगती है, स्थान का प्रभाव साधक को साधना के प्रति जाग्रत करता है। वर्तमान समय के आसाम प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर गोहाटी के कामगिरी पर्वत पर भगवती आद्या शक्ति कामाख्या देवी का पावन शक्ति पीठ है, यहां पर देवी का गुप्तांग गिरने से इस शक्ति पीठ को योनि शक्ति पीठ कहा गया है। यह शक्ति पीठ जीवन की मूल शक्ति काम शक्ति, निर्माण शक्ति का पीठ है, और कामाख्या शक्ति काम रूपिणि महाशक्ति है, ब्रह्म का ब्रह्मत्व, विष्णु का विष्णुत्व, शिव का शिवत्व, चन्द्रमा का चन्द्रत्व और समस्त देवताओं का देवत्व इसी कामाख्या शक्ति में निहित है, शक्ति का शुद्ध लौकिक सांसारिक स्वरूप कामाख्या ही है।
कामाख्या देवी वरदायिनी, महामाया, नित्यस्वरूपा, आनन्ददात्री, देवी शक्ति है, ‘गुप्त तंत्र’ में लिखा है कि जो कामाख्या के प्रति उदासीन रहता है, उपेक्षा करता है, उसे कभी जीवन में आनन्द, सुख, सौभाग्य तथा सिद्धि प्राप्त नहीं हो पाती, कामाख्या चिन्ता मुक्त करने वाली, जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सभी स्वरूपों को पूर्ण रूप से प्रदान करने वाली देवी है।
मंत्रस्य पुरता देवि! राजानं सचिवादयः।
अन्ये च मानवाः सर्वे मेषादि जन्वो यथा।।
मोहयेन्नगरं यज्ञः स हस्तत्यश्व रथादिकम्।
उवंश्याद्यास्तु स्वर्वेश्वा राज पत्यादिकाःक्षणात।।
स्तम्भनं मोहनं देवि! क्षोमणं जृम्भणं तथा।
द्रावणं भीषणं चैव विद्वेषोच्टानं तथा।।
आकर्षण च नारीणां विशेषेण महेश्वरि।
वशीकरणमन्यानि साधयेत् साधकोत्तमः।।
कामाख्या सिद्ध साधक के सामने राजा, मंत्री तथा अन्य सभी मनुष्य भेड़ समान वशीभूत हो जाते है, उच्च व्यक्ति तो क्या स्वर्ग की अप्सराएं भी कामाख्या साधना से वशीभूत हो जाती है, यह साधना स्तम्भन, मोहन, द्रावण, त्रसन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा पूर्ण वशीकरण करने में समर्थ है, इसके प्रभाव से अग्नि, सूर्य,वायु और जल राशि सभी को स्तम्भित कर देने की शक्ति साधक में आ जाती है।
कामाख्या मंत्र का ज्ञाता कामदेव के समान हो जाता है, उसके लिए किसी को भी वशीकरण करना असाध्य नहीं रहता, और सबसे बड़ी बात यह है कि इस साधना में किसी प्रकार की हानि नहीं होती अपितु सिद्धि की ओर वृद्धि होती है। कामाख्या शक्ति साधना जीवन की रस साधना है, शरीर साधना है, लौकिक साधना है, जो जीवन में रस तत्व को हटा कर केवल मोक्ष भाव से साधना करते हैं, उन्हें जीवन में कभी सिद्धि नहीं हो सकती, जीवन सम्पूर्ण रूप से जीने की साधना कामाख्या साधना है, जिसमें साधक को अपने जीवन का पूर्ण आनन्द प्राप्त होता है, उसकी इच्छाओं की पूर्ति पूर्ण रूप से सहज संभव हो पाती है।
इस साधना हेतु साधक विशेष सामग्री व्यवस्था की पहले से ही कर लें, साधना सामग्री में कुंकुंम, लाल पुष्प, कनेर के पुष्प, सिन्दूर, पंचगव्य, पीला वस्त्र, मौली प्रमुख है। साधना हेतु मूल रूप से तंत्र विद्या युक्त कामाक्षी यंत्र, कामरूप गुटिका तथा सोलह कामव्रज (कामबीज) आवश्यक है।
होली की रात्रि 9 बजे के पश्चात् या किसी भी बुधवार की रात्रि को साधक स्नान कर, शुद्ध पीली धोती पहने और बिना किसी से बातचीत किये सीधे अपने पूजा स्थान में अपना आसन ग्रहण करें। सर्वप्रथम गुरु का ध्यान करें और गुरु पूजन प्रारम्भ करें, गुरु पूजन कर एक माला गुरु मंत्र का जप करें, इससे साधना काल में किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित नहीं होता है तथा साधक अपनी साधना पूर्ण शक्ति के साथ सम्पन्न कर सकता है।
अब अपने सामने लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर वस्त्र पर कामाक्षी यंत्र स्थापित करें, इस यंत्र के सामने सिन्दूर से एक गोला बनाएं और इसके मध्य में एक त्रिकोण बनाकर सिन्दूर से ही ‘श्रीं श्रीं श्रीं’ लिखे और इसके नीचे अपने नाम का पहला अक्षर लिखें, गोले के बाहर आठ दिशाओं में सोलह चावल की ढेरियां बना कर उन पर कामव्रज (कामबीज) स्थापित करें, ये सोलह बीज कामाख्या की सोलह शक्तियों की पीठ है। एक ओर दीपक अवश्य ही जला दें, जब देवी का ध्यान करें।
हे कामाख्या देवी! आप सरस्वती तथा लक्ष्मी से युक्त हैं, शिवमोहिनी है, सम्पूर्ण ऐश्वर्य प्रदायनी है, डाकिनी, योगिनी, विद्याधरी, आदि समूह आपके अधीन है, सम्मोहन प्रदात्री, पुष्प धनुष धारिणी, महामाया देवी मेरी पूजा स्वीकार करें।
अब यंत्र की पूजा कर सर्वप्रथम कुंकुंम चढ़ाए फिर सिन्दूर और सुगन्धित लाल पुष्प चढ़ाएं, अब देवी को जल से अर्घ्य अर्पित करें तथा प्रसाद हेतु खीर का पात्र सामने रखें, अब देवी के मूल मंत्र की पांच माला का जप करें।
यह मंत्र नहीं, सभी तंत्रों का सार है, इसीलिए इसे अत्यन्त दुर्लभ मंत्र कहा जाता है, जिसके जप से सम्पूर्ण सिद्धियां प्राप्त होकर तेजस्वी व्यक्तित्व बनता है, इस प्रकार पांच माला मंत्र के पश्चात् इन्द्र की पूजा करें और फिर सोलह पुष्प लेकर कामाख्या देवी की सोलह शक्तियों का पूजन करें, और प्रत्येक कामबीज पर शक्ति का नाम लेते हुए, ध्यान कर पुष्प अर्पित करे, ये सोलह शक्तियां है
चौसठ योगिनियां जो नृत्य करती हैं कामाख्या देवी के चारों ओर! 1-दिव्य योगा, 2-महायोगा, 3-सिद्ध योगा, 4-माहेश्वरी, 5-पिशाचिनी, 6-डाकिनी, 7- कालरात्रि, 8-निशाचरी, 9-कंकाली, 10-रौद्रवेताली, 11-हुंकारी, 12-भुवनेश्वरी, 13-ऊर्ध्वकेशी, 14-विरूपाक्षी, 15-शुष्कांगी, 16-नरभोजिनि, 17-फ़ट्कारी, 18-वीरभद्रा, 19-धूमाक्षी, 20- कलहप्रिया, 21-रक्ताक्षी, 22-घोरा राक्षसी, 23-विश्वरूपा, 24-भयंकरी, 25-कामाक्षी, 26-उग्र चामुण्डा, 27-भीषणा, 28-त्रिपुरान्तका, 29-धीरकौमरिका, 30-चण्डी, 31-वाराही, 32- मुण्डधारिणी, 33-भैरवी, 34-हस्तिनी, 35-क्रोधादुर्मुखी, 36-प्रेतवाहिनी, 37-खट्वांगदीर्घ 38- लम्बोष्टी, 39-मालती, 40-मंत्रयोगिनी, 41-अस्थिरनी, 42-चक्रिणी, 43-ग्राहा, 44-कण्टकी, 45- काटकी, 46-शुभा, 47-क्रियादूती, 48-करालिनी, 49-शंखिनी, 50-पद्मिनी, 51-क्षीरा, 52- असंधा, 53-प्रहारिणी, 54-लक्ष्मी, 55-कामुकी, 56-लोला, 57-काकदृष्टि, 58-अधोमुखी, 59- धूर्जटी, 60-मालिनी, 61-घोरा, 62-कपाली, 63-विषभोजिनी, 64-चतुर्मुखी, 65-वैताली अन्नदा, धनदा, सुखदा, जयदा, रसदा, मोहदा, ऋद्धिदा, सिद्धिदा, वृद्धिका, शुद्धिका, भुक्तिदा, मुक्तिदा, मोक्षदा, शुभदा, ज्ञानदा, कान्तिदा।
प्रत्येक शक्ति को स्मरण करते हुये निम्न मंत्र बोले
ऊँ अन्नदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ धनदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ सुखदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ जयदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ रसदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ मोहदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ ऋद्धिदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ सिद्धिदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ वृद्धिदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ शुद्धिदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ भुक्तिदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ मुक्तिदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ मोक्षदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ शुभदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ ज्ञानदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
ऊँ कान्तिदायै नमः। पुष्पं समर्पयामि।
कामाख्या पूजा विधान इन्हीं शक्तियों की पूजा से सम्पन्न होता है, अब साधक 11 माला पुनः मंत्र जप कर कामाख्या देवी को पुष्पांजलि अर्पित करे और यदि किसी विशेष इच्छा, कामना पूर्ति हेतु पूजा करता है, तो एक माला अतिरिक्त मंत्र जप अवश्य करे।
पूर्ण पूजन के पश्चात् पूरी रात्रि सभी सामग्री पूजा स्थान में ही रहने दें, खीर का प्रसाद अवश्य ग्रहण कर लें, दूसरे दिन प्रातः स्नान कर अपने पूजा स्थान में प्रवेश कर यंत्र को तो पूजा स्थान में ही स्थापित करें और कामरूप गुटिका को अपनी बाह पर बांध लें, स्त्रियां इसे काले धागे में अपनी कमर में बांधे।
कामाख्या साधना जीवन की वह साधना है, जिससे जीवन में सम्पूर्ण रस, आनन्द प्राप्त कर सकता है, अपने जीवन की कमियों को दूर कर सकता है। साधक में कामदेव स्वयं समाहित हो जाते है, जिससे साधक को वशीकरण शक्ति प्राप्त हो जाती है और वह सबका प्रिय बन जाता है, जीवन के भोग-विलास उसे पूर्ण रूप से प्राप्त होते है।
कामाख्या तंत्र में लिखा है कि गृहस्थ धर्म, गृहस्थ व्यक्ति के लिए कामाख्या ही एक मात्र वरदायिनी अभीष्ट फलदात्री, सर्व विद्या स्वरूपिणी तथा सर्व सिद्धिदायिनी है, जो साधक कामाख्या के प्रति उदासीन रहता है, उसे जीवन में सुख प्राप्त कैसे प्राप्त हो सकता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,