दुर्गा का एक रूप काली है। मां दुर्गा अपने तीव्र और शांत दोनों ही स्वरूपों में विद्यमान होती हैं। जहां वे मनुष्य की तामसिक वृत्तियों का नाश करती हैं, वहीं वे विभिन्न प्रकार के कार्यों, जैसे-आर्थिक उन्नति, मानसिक शांति, पारिवारिक उन्नति, पुत्र-पौत्र प्राप्ति हेतु भी हर क्षण साधक के साथ शक्ति रूप में विद्यमान रहती है। दुर्गा के नौ अवतार विशेष रूप से पूजित होते हैं और नवरात्रि काल में प्रतिदिन उनके अलग-अलग रूप की उपासना क्रमिक रूप में किए जाने का विधान है क्योंकि इसके किसी भी रूप का, किसी भी नाम का स्मरण किया जाए, उस भक्त व साधक को मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती ही है।
गृहस्थ सुख की अधिष्ठात्री देवी रूद्राणी है। योगियों ने जीवन को चार भागों में बांटा है और ये ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वान प्रस्थ आश्रम तथा संन्यास आश्रम है। गृहस्थ का तात्पर्य न अमीरी, न गरीबी है, और न ही वाहन भूमि सुख इत्यादि है। गृहस्थ का तात्पर्य है पति-पत्नी में सुखद संयोजन एक दूसरे के प्रति पूर्ण विश्वास और हर स्थिति का मिलकर संघर्ष करने की क्षमता का विकास क्योंकि विवाह के पश्चात् पत्नी ही जिसे अर्धांगिनी कहा गया है। वही सच्ची साथी होती है। गृहस्थ जीवन का श्रेष्ठ स्वरूप रूद्राणी है जिसने भगवान शिव को पूर्ण रूप से संभालने के साथ-साथ गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारी भी पूर्ण रूप से निभाई। जिस व्यक्ति का गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ होता है उसे जीवन के विलास अनायास ही प्राप्त हो जाते है। वह जीवन में अपने आपको तृप्त अनुभव करता है।
प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध वस्त्र धारण कर सूर्य देव को मांगल्य सिद्धि के लिए अर्घ्य प्रदान करें फिर अपने पूजा स्थान में पूर्व दिशा की ओर आसन बिछाकर बैठें, सामने चौकी रखकर घी का दीपक जला लें। ‘अक्षोभ्य यंत्र’ को किसी पात्र में स्थापित करें उसके चारों दिशाओं में चावल की ढेरी बनावें, उसमें एक-एक सुपारी रखें सुपारियों पर कुंकुंम से तिलक करें इसके बाद एक माला गुरु मंत्र की जप कर, ‘सुलक्षणा माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला जाप करें।
साधना समाप्ति के पश्चात् सभी सामग्रियों को जल में प्रवाहित कर दें तथा किसी एक गाय को हरी घास खिला कर साधना की पूर्णता कर देवें।
प्रणय और प्रेम की अधिष्ठात्री देवी गौरी को माना गया है। इसीलिए भगवान शिव के संयोग के साथ ही नाम पड़ा गौरी शंकर अर्थात् जहां गौरी है, प्रणय है वहां भगवान शिव हैं, जो केवल एक बिल्व पत्र चढ़ाने से प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसे भगवान सदाशिव भगवती गौरी के प्रणय को कैसे ठुकरा सकते हैं। कुमारी कन्यायें श्रेष्ठ वर प्राप्ति हेतु मंगला गौरी साधना अवश्य करती हैं। प्रणय जीवन का आधारभूत सत्य है और प्रणय केवल कन्याओं के लिए ही आवश्यक नहीं है, व्यक्ति चाहे पुरूष हो अथवा स्त्री हो जीवन में प्रेम रस की कमी अनुभव करता है। तो उसे नवरात्रि में इच्छा पूर्ति गौरी साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिये। गौरी भगवान शंकर की प्रत्येक इच्छा की पूर्ति करती है और प्रणय में ही निमग्न एवं प्रसन्न रहती है। जीवन में हर स्थिति में रस धारा निरन्तर बहती रहे जिससे जीवन प्रेम रस से परिपूर्ण हो सके तथा जीवन के प्रत्येक क्षण का आनन्द आ सके।
प्रातः स्नान आदि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके पवित्र आसन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठ जायें। फिर दायें हाथ में जल लेकर संकल्प करें। मैं (नाम) अमुक साधना अमुक इच्छा पूर्ति हेतु सम्पन्न कर रहा हू मेरी मनोकामना पूर्ण हो। सामने धूप-दीप जलाकर, गुरु गणपति पूजन कर किसी ताम्र पात्र में स्वास्तिक बनाकर चावल की एक ढेरी बनावे। उस पर ‘महागौरी यंत्र’ को स्थापित कर कुंकुंम अक्षत से पूजन सम्पन्न करें। फिर दुर्गा शक्ति युक्त ‘मूंगा माला’ से निम्न मंत्र की 6 माला जप करें।
मंत्र जप के बाद दोनों हाथों में खुले पुष्प लेकर अपनी मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद प्राप्त करे और पुष्पाजलि समर्पित करें। साधना समाप्ति के पश्चात् समस्त सामग्री को नदी में विसर्जित कर दें।
जहां जीवन में गृहस्थ सुख है, आनन्द है, प्रेम है, प्रणय है, ज्ञान है, कोमलता है लेकिन यदि अधिकार नहीं है तो जीवन अधूरा ही है। संसार में आज तक अधिकार के लिए ही अधिकतर संघर्ष हुए है। अधिकार का तात्पर्य है आपका अपने जीवन पर अधिकार अपने कार्यों पर अधिकार, अपने विचारों पर अधिकार तथा जीवन को जो मोड देना चाहें वह सहज सरल रूप से दे सकें। व्यक्ति के लिए सबसे अधिक आवश्यक है कि उसका अपने स्वयं पर अधिकार होना चाहिये और वह शक्ति सम्पन्न होना चाहिये क्योंकि अधिकार का आधार शक्ति ही है। अधिकारहीन व्यक्ति अपना कोई भी कार्य अपनी इच्छानुसार सम्पन्न नहीं कर सकता। वह दूसरों के अधीन ही अपना जीवन चलाता है।
उसके जीवन में इच्छायें अपूर्ण ही रहती है। भगवती दुर्गा का तीव्र स्वरूप चामुण्डा स्वरूप है अधिकार की अधिष्ठात्री देवी है और नवरात्रि में चामुण्डा साधना करना एक प्रकार से अपने आपको पूरे वर्ष के लिए शक्ति से सम्पन्न कर देना है। जीवन में कभी किसी क्षण निर्बलता नहीं आये और भगवती चामुण्डा हर समय सहयोगी बनी रहें।
रात्रि में 9 बजे के पश्चात् स्नान आदि से निवृत्त होकर अपने पूजा कक्ष में उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। शांत चित्त से सद्गुरुदेव का ध्यान करें तथा साधना की पूर्णता के लिए प्रार्थना करें। इसके पश्चात् किसी ताम्र पत्र में ‘चामुण्डा यंत्र’ को स्थापित करके पंचामृत से स्नान करावें तथा शुद्ध जल से स्नान कराकर किसी वस्त्र से पोंछ कर उसमें कुंकुंम से तिलक करे अक्षत और तिलक चढ़ाकर धूप,दीप तथा मिष्ठान भोग लगाकर निम्न मंत्र की 9 माला जप करें।
साधना समाप्ति के पश्चात् यंत्र को अपने घर के मुख्य द्वार पर जमीन के नीचे दबा दे और माला नदी में प्रवाहित कर दें।
कई शास्त्रों में भगवती दुर्गा की साधना अष्टम दिवस को ही पूर्ण कर दी जाती है और दुर्गा अष्टमी को विशेष महत्व दिया गया है। क्योंकि यह वह दिवस है जब शिव का शक्ति के सांसारिक स्वरूप लक्ष्मी के साथ संयोग हुआ था। जहां जीवन में लक्ष्मी है वहां सारी शक्तियां अपने आप सरल हो जाती है इसीलिए शिव आरती में भी यही कहा गया है कि सुख में शिव रहता, अर्थात् जहां शिव है वहां लक्ष्मी है और जहां लक्ष्मी है वहां शिव है। लक्ष्मी का तात्पर्य केवल आर्थिक अनुकूलता ही नहीं है। लक्ष्मी का तात्पर्य यह है कि पद, मान, मर्यादा, सुरक्षा, सुख, अनुकूलता, सौन्दर्य इत्यादि। भगवान शिव ने भगवती लक्ष्मी को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। सदैव आनन्द मुद्रा में सामान्य वेशभूषा में कम से कम उपकरणों के साथ ही युक्त होते हुये भी आनन्द के साथ मृदंग डमरू ही बजाते रहे। जीवन में लक्ष्मी शक्ति पूर्ण रूप से हो, लेकिन लक्ष्मी के किसी भी स्थिति में हम अधीन न होकर लक्ष्मी को अपने अधीन कर सकें। इसीलिए नवरात्रि में अष्टम दिवस में यज्ञ इत्यादि शिव साधना के साथ लक्ष्मी की पूर्ण प्राप्ति और वैभव के लिए ही की जाती है। लक्ष्मी साधना का यह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त दिवस है।
प्रातः स्नानादि से शुद्ध होकर अपने पूजा कक्ष में उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें सामने चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उसमें कुंकुंम से स्वस्तिक बनाकर पानी भर कर कलश स्थापित करें। उसके ऊपर चावल से भरा हुआ एक प्लेट और प्लेट के ऊपर ‘महालक्ष्मी यंत्र’ को स्थापित कर दें तथा ‘आकस्मिक धनदा माला’ को भी स्थापित कर दें। इसके बाद यंत्र तथा माला का कुंकुंम, अक्षत, पुष्प आदि से पूजन करके 5 माला निम्न मंत्र का जप करें।
मंत्र
।। ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ नमः।।
(Om Shreem Hreem Shreem Om Namaha)
जप समाप्ति के बाद अक्षय तृतीया तक एक माला नित्य जाप करें। अक्षय तृतीया के दूसरे दिन सभी सामग्री जल में प्रवाहित कर दें।
काल का तात्पर्य है अंधकार और भगवती महाकाली जीवन से अंधकार को पूर्ण रूप से दूर ले जाती है। जिससे जीवन में ज्ञान का उदय होकर हम शुद्धता की ओर अग्रसर होकर पूर्ण जीवन जी सकें। जिस प्रकार काले रंग में कोई भी रंग मिला दिया जाए वह काला हो जाता है। इसी प्रकार महाकाली जो कि अंधकार पूर्ण रूप से दूर करती है वह सदैव श्याम वर्ण रूप में ही रहती है।
काल का तात्पर्य है समय और ‘ई’ का तात्पर्य है कारण इस प्रकार काली का तात्पर्य काल के कारण अर्थात् जो कि काल से भी परे है। हमारे भीतर पूर्णता के लिए सदैव ज्ञान का उदय करती है और ज्ञान को स्थायी भाव से रखती है। जिससे मनुष्य के भीतर उठने वाले अशुद्ध रूपी भाव पूर्ण रूप से दूर हो जाएं तथा वह आन्तरिक शान्ति को अनुभव कर सके। महाकाली को मधु और कैटभ को नष्ट करने वाली शक्ति स्पष्ट किया गया है। मधु का मतलब है बहुत अधिक, कैटभ का तात्पर्य है बहुत कम इन दोनों ही स्थितियों का नाश कर वह अपने भक्तों में समभाव की स्थिति बनाए रखती है।
मनुष्य अपनी प्रकृति के अनुसार क्रिया करता रहता है और जब काली अर्थात् ज्ञान शक्ति उदय होती है तो मनुष्य के भीतर एक आंतरिक प्रकाश फैल जाता है और वह पूर्ण शक्ति भाव से आनन्द भाव से युक्त होकर शिवमय बन जाता है। उस व्यक्ति पर संसार की विपदाओं को प्रभाव नहीं पड़ता और वह सब कुछ देखता हुआ सब स्थितियों को सहन करता हुआ विरोधी भावों को समाप्त करता हुआ परमानन्द की ओर अग्रसर होता है। नवरात्रि की पूर्णता इसी साधना से है।
इस साधना के प्रारम्भ करने से पूर्व अपने पूजा स्थान को अच्छी तरह साफ कर लें। जिससे पवित्रता बनी रहे क्योंकि यह उग्र साधना है स्नानादि के बाद लाल आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे, सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछ दें, धूप, दीप जलाकर पहले गुरु पूजन और गुरु मंत्र जप करें, उसके बाद संकल्प लेकर साधना सिद्धि के लिए अपने नाम गोत्र बोलकर जल भूमि पर छोड़ दें। इसके बाद किसी प्लेट पर स्वस्तिक बनाकर ‘महाकाली यंत्र’ को स्थापित कर दें। साथ में ‘भैरव गुटिका’ स्थापित कर दें।
यंत्र तथा गुटिका का कुंकुंम धूप,दीप से सामान्य पूजन करके उसके बाद ‘हकीक माला’ से निम्न मंत्र की 9 माला मंत्र जप करें।
मंत्र जप पूर्ण होने के बाद दूसरे दिन सभी सामग्रियों को लाल वस्त्र में बांध कर जल में प्रवाहित कर दें।
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