उद्यम, साहस, धैर्य, विद्या, बुद्धि और पराक्रम, ये छः तत्व जहां होते हैं, वहां भाग्य भी सहायता करता है।
अर्थात् इन गुणों से मनुष्य अपने भाग्य को भी बदल सकता है और उसके कार्य सफल हो सकते हैं। तात्पर्य यह है कि किसी दुष्कर कार्य को सफल बनाने के लिये साहस के अलावा अन्य गुणों की भी आवश्यकता होती है।
ज्ञान व्यक्ति को धैर्य प्रदान करता है, उसे चतुरता प्रदान करता है और इसके साथ ही उसके सोचने समझने के साथ क्रिया की शक्ति में भी विस्तार करता है। जब ज्ञान और विद्या से युक्त शक्ति क्रिया और इच्छा करते हैं तो वह कार्य अवश्य ही परिपूर्ण होता है। जिनके पास विद्या रूपी धन है वे निरन्तर कल्याण की वृद्धि की ओर अग्रसर होते हैं। गुरू द्वारा शिष्यों को सर्वदा विद्या देते रहने से भी यह धन बढ़ता ही रहता है, जिसका महाप्रलय में भी कभी नाश नहीं होता। विद्या युक्त बुद्धिमान व्यक्ति से कोई भी स्पर्धा नहीं कर सकता है।
वाग्देवी सरस्वती साधना प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिये। जीवन रूपी परीक्षा तो पग-पग पर चलती ही रहती हैं तथा हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बालक परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करें, हर व्यक्ति चाहता है कि उसकी स्मरण शक्ति तीव्र हो, इन्टरव्यू में, नौकरी में सफलता प्राप्त हो, जो बात कहे, वह दूसरों पर प्रभाव डाले, नेतृत्व की क्षमता का विकास हो, तो उसे वाग्देवी सरस्वती साधना अवश्य करनी चाहिये। इसके अलावा कोई दूसरा मार्ग नहीं है और जब एक बार वाग्देवी सिद्ध हो जाती हैं तो वह अपनी कृपा जीवन भर बनाये रखती है क्योंकि मां सरस्वती लक्ष्मी की तरह चंचला नहीं है, उसका तो स्थायी निवास रहता है।
बालकों में सीखने समझने की क्षमता विशेष रूप से होती है। इसीलिये बालकों को सरस्वती-साधना अवश्य करनी चाहिये। यह केवल उनका ही नहीं, उनके माता-पिता का कर्तव्य है कि बालक सरस्वती-वन्दना नियमित रूप से अवश्य करें। मैंने अपने जीवन में देखा है कि व्यक्ति अपने भीतर तो ज्ञान बहुत समेटे होते हैं लेकिन जब उन्हें बोलने को कहा जाता है, तो जबान जैसे लड़खड़ाने लग जाती है, कहना कुछ चाहते हैं और बोलते कुछ और ही हैं। इसी प्रकार नौकरी के इन्टरव्यू में जो असफल रहते हैं, उसका कारण अपने आपको, अपने ज्ञान को सही रूप से प्रस्तुत करने की कमी होती है और यह दोष उनके जीवन को साधारण बना देता है, ऐसे व्यक्ति सफल नहीं हो पाते।
सरस्वती साधना जीवन के निर्माण की नींव के समान है। यदि किसी भवन का नीव कमजोर हो तो इमारत दीर्घ समय तक सुरक्षित नहीं रहती। इसी प्रकार यदि छोटे से बालक में श्रेष्ठ सुसंस्कार, सफल मेधावी विद्यार्थी, ज्ञान, सद्बुद्धि का दीक्षा स्थापन संस्कार व बालक के नाम का संकल्प लेकर साधना सम्पन्न किया जाये तो निश्चय ही वह उच्च शिक्षा ग्रहण कर श्रेष्ठ स्थितियों को प्राप्त करता ही है। और अपने साथ ही साथ परिवार, समाज व अपने कुल का उद्धारक होता है।
इस साधना को स्त्री-पुरूष, बालक, युवा कोई भी सम्पन्न कर सकता है। श्रेष्ठ ज्ञान, सद्बुद्धि, उच्च विचार, वाक्चार्तुयता, आकर्षण, प्रभावी व्यक्तित्व, मधुर वाणी जीवन के हर मोड़ पर आवश्यक है। प्रातः काल अनुराधा नक्षत्र में साधक पीली धोती पहन कर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठें, जनेऊ धारण करें। यदि अपने बालक के लिये साधना सम्पन्न करें तो उसे भी साधना कक्ष में अपने समीप बैठायें। चन्दन का तिलक करें, सामने सरस्वती देवी का चित्र लगायें, शुद्ध घी का दीपक तथा अगरबत्ती जलायें। ताम्र पात्र में एक पुष्प रख कर उस पर मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त दिव्य चेतना वाग्देवी संस्कार स्थापन लॉकेट व ज्ञान लेखन माला को सामने स्थापित करें, उस पर केसर, अक्षत, पुष्प तथा चन्दन चढ़ायें, अपने दाहिने हाथ में सरस्वती बीज मंत्र ‘ऐं’ लिखकर चित्र के सामने सफेद कागज पर अपना नाम लिखकर मां सरस्वती की वन्दना करें।
फिर मां सरस्वती का ध्यान करते हुये इस मंत्र का 21 बार जप करें।
ऊँ या माया मधुकैटभ प्रमथिनी या महिषोन्मूलिनी या धूम्रे क्षणचण्ड-मुण्डदलनी, या रक्त बीजासनी शक्तिः शुम्भनिशुम्भदैत्य मथनी, या सिद्धलक्ष्मीपरा या देवी नवकोटि-मूर्ति सहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।
निम्न मंत्र का ज्ञान लेखन माला से 5 माला जप करें।
साधना समापन के बाद लॉकेट को तीन माह तक धारण रखें, अन्य सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।
कार्तिकेय समलेश्वरी धनदा साधना महोत्सव 19 -20 नवम्बर बालांगीर उड़ीसा आद्या शक्ति स्वरूपा समलेश्वरी कार्तिकेय की चेतना से जीवन के सभी अभाव, जड़ता, शिथिलता, आलस्य, न्यूनता, आर्थिक हीनता, गुप्त शत्रु बाधा, आसुरी शक्तियों पर विजय श्री हेतु सद्गुरूदेव के दिव्य सानिध्य में हवन, अंकन, रूद्राभिषेक, श्रेष्ठतम शक्तिपात दीक्षायें मां पाटेश्वरी की चैतन्य भूमि पर सम्पन्न होगा। जिससे जीवन की सभी विषम परिस्थितियों पर विजय श्री हेतु सद्गुरूमय चेतना से आपूरित होकर अक्षय नवमी के पावन दिवस पर अक्षुण्ण रूप से रिद्धि-सिद्धि नवनिधि युक्त लक्ष्मी को आत्मसात कर सकेंगे। जिसके फ़लस्वरूप जीवन की सभी दुर्गतियों पर विजय प्राप्त करते हुये भौतिक सम्पन्नता, प्रसन्नता, उमंग, उत्साह से जीवन पूर्ण होगा साथ ही आने वाला नूतन वर्ष नवीन सृजन की चेतना से युक्त श्रेष्ठ सफ़लतादायक होगा।
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