शिव तत्व को जाग्रत करने के लिए सबसे अधिक महत्व शिवरात्रि महोत्सव को माना गया है। क्योंकि इन दिवसों पर अपने जीवन की न्यूनताओं को दूर कर पूर्ण शिवमय बनने की क्रिया प्रारम्भ होती है। औदार्य, सरलता, क्षमा, करूणा और ऐश्वर्य के अधिपति भगवान शिव के समान कोई भी अन्य देव है ही नहीं। योग और भोग को एक साथ धारण करने की सामर्थ्य किसी भी अन्य देव में नहीं है। अर्द्धनारीश्वर स्वरूप ही भगवान शिव का यथार्थ परिचय है। विष पान कर लेने की घटना भगवान शिव की जन-जन के मानस में अपनी पहचान बनाएं हुए है और वे ही तो हैं जो गुरू रूप में धरा पर अवतीर्ण होते हैं। गुरू साक्षात् भगवान शिव ही कहे गए हैं।
‘शिवरात्रि’ जो आनन्द की रात्रि है, जो मनुष्य को अन्धकारमय व घोर कालिमा युक्त जीवन को प्रकाशवान कर देने की रात्रि है, जो आत्मा को परमात्मा में लीन कर देने की रात्रि है, जो पूर्णता की रात्रि है, जो श्रेष्ठता की रात्रि है, जो शिव-शक्ति के सामंजस्य की रात्रि है, जो शिवत्व को प्राप्त कर लेने की रात्रि है—— और ऐसे शिवत्व को प्राप्त कर लेना ही तो जीवन का परम सौभाग्य है, परम आनन्द है, जीवन की सर्वोच्चता है और यह सर्वोच्चता, यह आनन्द, यह सौभाग्य जीवन में प्राप्त हो सकता है शिव शक्ति को धारण करने से।
भगवान शिव का गृहस्थ जीवन प्रत्येक कामनाओं से पूर्ण है। पुत्र के रूप में भगवान गणपति और कार्तिकेय हैं। और पत्नी के रूप में सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी पार्वती, स्थान भी पूर्ण शांति युक्त हिमालय है। जहां पूर्ण आनन्द के साथ शिव-गौरी परिवार विराजित होते हैं। गृहस्थ व्यक्तियों के लिए शिव गौरी आदर्श स्वरूप हैं। भगवान शिव को ही सृष्टि का प्रथम पुरूष माना गया है। जिन्होंने अपने साथ हर समय शक्ति को संयुक्त रखा है। भगवान शिव के बिना शक्ति अधूरी है और शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं। और जहां शिव शक्ति का मिलन होता है। वहां जीवन है, आनन्द है, पूर्णता है।
महापंडित रावण ने भगवान शिव की आराधना और पूजन कर बल, पराक्रम, शौर्य, तपस्या, भक्ति के साथ-साथ ऐश्वर्य के स्वामी के रूप में अपना परिचय दिया। महा शिवरात्रि के पावन पर्व पर नवीनता, आनन्द, परिवार, पुत्र, ऐश्वर्य, भयहीनता की प्राप्ति होती है इस सौभाग्य को अपने जीवन में उतारने के लिए इससे उच्चकोटि का दिवस कौन सा हो सकता है? जीवन के प्रत्येक क्षण को पूर्ण रसमय, आनन्द युक्त, शौर्य, सम्मान, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य युक्त बनाने की क्रिया प्रारम्भ इसी पावन पर्व पर होती है।
जब जीवन शव से शिव की ओर अग्रसर होता है। तो शिष्य और साधक अनुभव करने लगता हैं कि उनका जीवन पूर्णता की तरफ उनके कदम बढ़ने लगे है, आनन्द की प्राप्ति होने लगी है इन सब का नाम ही शिव गौरी अखण्ड सौभाग्य दीक्षा हैं। विक्रम संवत् के प्रारम्भ में नवीनता का संचार करना और जीवन में नवीन शक्ति भरना गुरु का कार्य है। उसे ज्ञान शक्ति प्रदान करे। जिससे जीवन में पूर्णता प्राप्त हो सकेगी।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर ‘शिव गौरी अखण्ड सुख वृद्धि दीक्षा’ उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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