केवल हमारे जीवन में व्यक्ति ही शत्रु नहीं होते अपितु शास्त्रों में नौ प्रकार के शत्रु माने गये हैं जिनकी वजह से हमारी प्रगति सही प्रकार से नहीं हो पाती। ये नौ शत्रु हैं-
1- प्रत्यक्ष शत्रु- जिससे हम शत्रुता का भाव रखते हैं।
2- अप्रत्यक्ष शत्रु- जो स्पष्ट रूप से हमारे सामने तन कर खड़ा नहीं है, परन्तु उसकी सारी प्रवृत्तियां शत्रुवत ही हैं।
3- विश्वासघाती शत्रु- जो हमारे मित्र हैं, हमारे व्यापार में पार्टनर हैं, जिन पर हम भरोसा करते हैं, समय पड़ने पर वे ही हमें धोखा दे देते हैं, या पीठ में छुरा भौंक देते हैं, ऐसे शत्रु ज्यादा नुकसान दायक होते हैं।
4- ऋण शत्रु- कर्जा अपने आप में पूर्ण शत्रु है क्योंकि जब पैसे मांगने वाला व्यक्ति सुबह सुबह छाती पर आ धमकता है तो जो वेदना होती है, वह भुक्त भोगी ही समझ सकता है। इसलिए यह शत्रु भी हमारे जीवन की उन्नति में पूर्ण रूप से बाधक है।
5- दरिद्रता शत्रु- दरिद्रता या निर्धनता हमारे जीवन का प्रबल शत्रु है, क्योंकि जब घर में गरीबी होती है, तो हम अपने जीवन में जो कुछ करना चाहते हैं, वह नहीं कर पाते, हम अपने जीवन में जो उन्नति चाहते हैं वह नहीं कर पाते। हम अपने जीवन में जो कुछ करना चाहते हैं वह कर नहीं पाते, क्योंकि यह दरिद्रता हर कदम पर हमारा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाती है और पग पग पर हमें अपमानित होना पड़ता है। इसलिए दरिद्रता शत्रु भी हमारे जीवन में पूर्ण रूप से बाधक है।
6- रोग शत्रु- जीवन में सब कुछ होते हुए भी यदि आदमी बीमार, असक्त और कमजोर है या कलिष्ट बीमारियों से वह घिरा रहता है, तो उसका सारा उत्साह, सारा जोश अपने आप में ही समाप्त हो जाता है और जीवन को जीने की जो उमंग होती है, वह उमंग ही समाप्त हो जाती है। अतः रोगों से छुटकारा पाना जीवन का महत्वपूर्ण लक्ष्य होता है।
7- कुभार्या शत्रु- हम अपने जीवन में विवाह इसी लिए करते हैं कि पतिव्रता और श्रेष्ठ पत्नी या पति मिले और दोनों के सहयोग से गृहस्थ जीवन को सही प्रकार से संचालित होने की क्रिया हो सके। यदि पति या पत्नी ही कुमार्गी हो या कुलक्षणा, बीमार हो, कदम कदम पर अपमानित करने वाली हो, भली प्रकार से सुख न देने वाली हो अथवा पति शराबी, कुगामी हो तो निश्चय ही वे एक-दूसरे के शत्रु समान ही होते हैं। हम समाज भय से उसे कुछ कह नहीं सकते और बराबर अपमान का घूंट पीते रहना पड़ता है।
8- कुपुत्र शत्रु- यदि पुत्र नहीं हो, तो जीवन अंधकारमय होता है और यदि पुत्र है, मगर वह परेशानी पैदा करने वाला है, अशिक्षित, मूर्ख या भ्रष्ट है, कुमार्ग पर चलने वाला है, आज्ञाकारी नहीं है और सही प्रकार से कमाने वाला या उन्नति करने वाला नहीं है, आलसी है, तो वह भी शत्रु ही माना जाता है।
9- भाग्यहीनता शत्रु- यदि हमारा भाग्य ही कमजोर है, हम अच्छे के लिए प्रयत्न करें और सफलता न मिले, यदि हम परिश्रम करें और उसका परिणाम प्राप्त न हो, यदि हम व्यापार के लिए जी तोड़ मेहनत करें और उससे लाभ न मिले, तो यह भाग्य का दोष ही माना जाता है और ऐसा भाग्य भी शत्रुवत ही होता है।
उपरोक्त नौ प्रकार के शत्रु माने गये हैं, इनमें से यदि एक से अधिक आपके शत्रु हैं, तो आपके जीवन की प्रगति रूक जाती है। आपके जीवन की आकांक्षा, जीवन की इच्छाएं सब कुछ समाप्त हो जाती है और जीवन में आप जो कुछ करना चाहते हैं, इन शत्रुओं की वजह से कुछ भी नहीं कर पाते और एक प्रकार से आपका जीवन सामान्य सा जीवन बन कर रह जाता है।
उपनिषदों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हर हालत में अपने शत्रुओं को समाप्त करना ही चाहिए और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना ही जीवन की पूर्णता है। जो व्यक्ति जितना जल्दी अपने शत्रुओं का संहार करता है, उसे उतना ही ज्यादा समय मिल जाता है, कि वह अपने जीवन में पूर्ण प्रगति करे।
शत्रुओं पर बिजली की तरह कड़कने का तात्पर्य शत्रुओं को मटियामेट करना नहीं है, शत्रुओं को समाप्त करने का भाव नहीं है, अपितु इस शीर्षक का तात्पर्य है कि आपका व्यक्तित्व सूर्य के समान प्रखर और तेजस्वी हो, जिससे शत्रु भयभीत रहें और आपके सामने खड़े न हो सकें, जिससे रोग, ऋण और दरिद्रता समूल नष्ट हो सके, जिससे पत्नी और पुत्र सही मार्ग पर आकर आपके लिए सहायक हो सकें, जिससे आपके विश्वासघाती मित्र और व्यापार के पार्टनर आपके अनुकूल बन सकें और इस प्रकार से आपका जीवन ज्यादा सुखमय, आनन्दायक और सभी श्रेष्ठताओं से युक्त हो सके।
यों तो शत्रुओं को समाप्त करने के लिए तांत्रिक ग्रंथों में कई विधान बताये गये हैं, परन्तु हमारा उद्देश्य शत्रुओं को अपने अनुकूल बनाना है, उनकी शत्रुता समाप्त करना है और इसके लिए आज के युग में केवल धूमावती साधना ही सर्वश्रेष्ठ और तुरन्त प्रभाव देने वाली है।
यों तो बगलामुखी, छिन्नमस्ता आदि साधनाएं भी शत्रुओं को समाप्त करने के लिए ही हैं, परन्तु उनका अपना अलग महत्व है। धूमावती साधना तुरन्त असर दिखाने वाली साधना है, साधना समाप्त होते-होते ही अनुकूल परिणाम दिखाई देता है और इस साधना के माध्यम से हम जीवन के सभी शत्रुओं पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करने में सफल हो पाते हैं। इसीलिए तो उच्चकोटि के शास्त्रें में धूमावती को सर्वश्रेष्ठ साधना बताया है, उन्होंने स्पष्ट किया है कि यदि साधक किसी भी अमावस्या को धूमावती की यह एक दिवसीय साधना को सम्पन्न कर लेता है, तो वह सभी प्रकार के रोगों से मुक्त हो जाता है और सभी प्रकार की बाधाओं से निवृत्ति प्राप्त हो जाती है।
अर्थात् किसी भी प्रकार के रोग, ऋण, दुर्भाग्य और शत्रु बाधा से मुक्ति केवल धूमावती साधना ही दे सकती है।
जो सही अर्थों में साधना करना चाहते हैं, जो सही अर्थों में धूमावती को प्रत्यक्ष करना चाहते हैं, जो हकीकत में अपने शत्रुओं का संहार कर धूमावती सिद्धि चाहते हैं, जो सभी प्रकार के शत्रुओं को परास्त कर पूर्ण विजय प्राप्त करना चाहते हैं, उन साधकों के लिये धूमावती जयंती या धूमावती सिद्धि दिवस पूर्ण वरदान की तरह है। प्रत्येक साधक को वर्ष में अनुकूल अवसर पर एक बार धूमावती साधना अवश्य ही सम्पन्न करनी चाहिए जिससे कि उनके जीवन के सभी शत्रु समाप्त हो सकें और जीवन में पूर्ण उन्नति प्राप्त कर सकें।
इस साधना को सामान्य पढ़ा लिखा साधक भी सम्पन्न कर सकता है, इसमें कोई जटिल क्रिया नहीं है और यदि साधना में किसी वजह से गलती भी हो जाये, तब भी किसी प्रकार का अहित नहीं हो सकता। यों यदि साधक इस साधना को सम्पन्न करता है, तो उसे अनुकूल परिणाम ही प्राप्त होते हैं और कई बार तो साधना समाप्त होते होते ही, अनुकूल परिणाम अनुभव होने लग जाते हैं।
इस साधना को पुरूष या स्त्री कोई भी सम्पन्न कर सकता है। साधकों को चाहिए कि वे इस दिवस का उपयोग करें, यदि किसी वजह से धूमावती दिवस पर प्रयोग न कर सकें तो किसी भी अमावस्या को धूमावती साधना सम्पन्न की जा सकती है।
इसके लिए विशेष साधना सामग्री की आवश्यकता नहीं होती, केवल पिप्लाद ऋषि द्वारा वर्णित ‘धूमावती महायंत्र’ की आवश्यकता होती है, जो कि विशेष मंत्रें से सिद्ध और प्राण प्रतिष्ठा युक्त होता है। इसके साथ ही साथ तांत्रिक ग्रन्थों में बताया है कि साधना में काली हकीक माला से ही मंत्र जप होना चाहिए। इसके अलावा इस साधना में अन्य किसी भी पदार्थ की आवश्यकता नहीं होती।
साधक इस साधना को धूमावती सिद्धि दिवस 19 दिसम्बर रात्रि में अथवा किसी भी अमावस्या को सम्पन्न कर सकता है। वह स्नान कर लाल आसन पर बैठ जाये और लाल धोती धारण करे, अपने कन्धों पर भी लाल धोती ओढ़ लें, फिर सामने एक तांबे के पात्र में श्रेष्ठ मंत्र सिद्ध धूमावती महायंत्र और उसके ऊपर शूर्पधारिणी गुटिका को स्थापित कर दें, जो कि पिप्पलाद ऋषि द्वारा वर्णित मंत्रें से सिद्ध और प्राणश्चेतना युक्त हो, यह यंत्र आगे जीवन भर उपयोगी रह सकता है।
इसके बाद सामने तेल का दीपक प्रज्ज्वलित कर बाधाहारिणी माला से मंत्र जप सम्पन्न करें, इसका प्रत्येक मनका विशेष मंत्रों से मंत्र सिद्ध होना चाहिए और यह ऐसी हकीक माला होनी चाहिए जिसका पहले कभी प्रयोग नहीं किया हो।
साधक को चाहिए वह इस यंत्र के सामने हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि मैं समस्त प्रकार के शत्रुओं को समाप्त कर जीवन में हर दृष्टियों से पूर्ण उन्नति चाहता हूं। यदि कोई विशेष शत्रु हो जो आपको जरूरत से ज्यादा परेशान कर रहा हो तो उस शत्रु का नाम लेकर उच्चारण कर सकते हैं। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर निम्न धूमावती मंत्र की 11 माला मंत्र जप करें-
यह मंत्र अपने आपमें अत्यंत तेजस्वी और महत्वपूर्ण है। जब मंत्र जप पूरा हो जाये तब धूमावती यंत्र और माला को किसी नदी, तालाब या कुएँ में विसर्जित कर दें अथवा किसी मंदिर में जाकर रख दें।
इस प्रकार यह साधना सम्पन्न होती है जो कि आगे के पूरे जीवन को संवारने, सुखमय बनाने और उन्नति युक्त बनाने में सहायक है।
जो साधक विविध समस्याओं से ग्रस्त हैं, जो विविध शत्रुओं से परेशान हैं, इस प्रयोग के द्वारा उन शत्रुओं का संहार कर, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करते हुए, श्रेष्ठ और अद्वितीय उन्नति प्राप्त कर सकेंगे।
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में तरह-तरह के शत्रु होते ही हैं, अगर वह अपना जीवन सुचारू रूप से जीना चाहे तो उसके लिए इस युग में बहुत ही कष्टप्रद है। व्यक्ति के जीवन में पग-पग पर तंत्र बाधा, ग्रह बाधा, मुकदमेबाजी, व्यापार तंत्र बाधाओं से ग्रस्त रहता है, धनहानि की स्थितियां निर्मित होती रहती हैं और इनके निवारण के लिए वह हर कोशिश करता है पर वह अपनी समस्याओं के समाधान में निष्फ़ल होता है क्योंकि बिना दैविक शक्ति के ऐसा सम्भव ही नहीं कि वह अपने जीवन को सुचारू रूप से चला सके। इसी हेतु अपने जीवन में हर विकराल समस्या,बाधाओं के निवारण के लिए शास्त्रों में एक मात्र साधना का लेख आया है जो बिजली से भी तेज कड़कड़ाहट और तफ़ूान से भी तेज प्रचण्ड धूमावती साधना है। किन्हीं तीन पत्रिका सदस्य बनाने पर आपको तांत्रोक्त धूमावती दीक्षा उपहार स्वरूप गुरुदेव द्वारा प्रदान की जायेगी।
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