इसी पूर्वाग्रह के दर्पण में तंत्र व तांत्रिक की भी एक विशिष्ट छवि हे- हट्टा-कट्टा शरीर, लाल आंखें, चिलम और घोर अश्लील व्यवहार, दूसरी ओर यदि जैन सम्प्रदाय का नाम लें तो जो छवि बनती हे वह है करूणा, अहिंसा, दान, दया आदि मानवीय गुणों से युक्त साधु की जिसने शरीर पर मात्र एक सफेद वस्त्र डाल रखा हो या समस्त दिशायें ही जिसके वस्त्र हो। आप स्वयं कल्पना कीजिए कि यदि आपके कोई मित्र कहें कि चलो एक जैन महामुनि से मिल आएं तो क्या आपकी आंखों के सामने ऐसा ही बिम्ब उपस्थित नहीं हो जाता?
यहां पर में इन्हीं दो सर्वथा विरोधी बातों के माध्यम से अपनी बात को स्पष्ट करने का इच्छुक हूं। यह सत्य है कि आंखों के सामने जो बिम्ब बनता है, उसके पीछे कोई न कोई आधार अवश्य होता है। किन्तु यदि यह कहा जाए कि वह बिम्ब अधूरा होता है तो कोई अनुचित बात नहीं। जैन सम्प्रदाय में भी तंत्र को न केवल स्थान दिया गया है, वरन जैन साधकों ने तंत्र को उसकी पराकाष्ठा तक पहुंचाया हे। यह जानकर फिर तंत्र के प्रति क्या आपके मन में तर्क-वितर्क करता वही भाव रहेगा?
जैन तंत्र की यह विशेषता है कि अत्यन्त तीब्र होते हुए भी इसमें मारण प्रयोगों अथवा विद्वेषण प्रयोगों को स्थान नहीं दिया गया है। इसके स्थान पर आत्मरक्षा प्रयोगों को ही प्रमुखता दी गई है। प्रत्येक तंत्र में शक्ति का आश्रय लिया ही जाता हे, जिस प्रकार शाक्त तांत्रिक काली को आधार-शक्ति मानते हें, बोद्ध तारा को, उसी प्रकार जैन तंत्र में शक्ति की मूल आधार “पद्मावती’ को माना गया है। यद्यपि पद्मावती शक्ति परम्परा में महालक्ष्मी की ही तांत्रिक स्वरूप मानी जाती हैं, किन्तु जैन ग्रंथों में इन्हें सम्पूर्ण रूप से शक्ति की अधिष्ठात्री देवी मानकर साधनाएं वर्णित की गई हैं जो अत्यन्त तीब्र प्रभावों से युक्त हैं। जैन तंत्र में पद्मावती को आधार मानकर अनेक साधनाओं की सृष्टि की गई है एवं उनसे सम्बन्धित जो मंत्र हैं वे तांत्रोक्त भी हैं, मांत्रोक्त भी हें तथा साबर भी। ऐसे ही विशाल मंत्र संग्रह में से है यह सर्व कार्य सिद्धिदायक पद्मावती शुक्र साधना।
व्यापार का तात्पर्य केवल दुकान से ही नहीं होता। इस जगत में हम जिस भी माध्यम से धन प्राप्ति करें, वह एक प्रकार से व्यापार ही करते हैं, क्योंकि हम अपनी सेवाएं अर्पित करके बदले में धन की प्राप्ति करते हैं और यदि वहां भी हमारी सेवा का उचित मूल्य मिले नहीं, तो वहां अपनी सेवा अर्पित करना उचित नहीं है। अतः यह भ्रम है कि नौकरी पेशा वर्ग और दुकानदार वर्ग जीवन की दो अलग-अलग दशाए होती हैं। हमारा व्यापार सुचारू रूप से चले, उस पर तांत्रिक प्रयोग न हों, किसी प्रतिद्वन्द्दी या शत्रु द्वारा व्यापार बन्धन की घटिया हरकत न हो, ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए हमें जी-तोड़ परिश्रम न करना पडे। व्यापार में लगाई पूंजी व्यर्थ न चली जाए। व्यापार तो सैकड़ों जोखिमों से भरा कार्य है और एक व्यापारी को चारों ओर एक साथ ध्यान देना पड़ता है।
व्यापारी, वकील, डॉक्टर अथवा जेसा कि ऊपर कहा नौकरी पेशा वर्ग भी यदि जीवन में व्यापार लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिए, अपने जीवन को सजाने संवारने के लिए आग्रहशील है, प्रयासरत है और यह समझता है कि जीवन की सभी स्थितियों का निपटारा बिना देवी-बल के संभव नहीं, तो उसे हर हालत में व्यापार लक्ष्मी पद्मावती शुक्र साधना सम्पन्न करनी ही चाहिए। यह सामान्य प्रयोग नहीं वरन् एक तांत्रोक्त साधना है तथा इसके माध्यम से साधक को अपने जीवन में जहां एक ओर सकारात्मक रूप से अनुकूलता मिलती है वहीं दूसरी ओर व्यापार में आई तंत्र बाधायें भी दूर होती हैं।
महालक्ष्मी के तांत्रोक्त स्वरूप पद्मावती देवी से सम्बन्धित यह साधना कितनी तीक्ष्ण और चमत्कारिक हे, इसको तो साधक प्रथम रात्रि में ही अनुभव कर सकता है। साधक के लिए आवश्यक है कि वह पांच हकीक पत्थर और पांच गोमती चक्र लेकर उनके साथ ही साथ पद्मावती के प्रतीक रूप में पद्मावती यंत्र प्राप्त करे तथा एक मूंगे की माला भी उसके पास होनी आवश्यक है। किसी भी शुक्रवार की रात्रि में द्वितीय प्रहर में साधना में रत हों। वस्त्र का रंग लाल हो, दिशा दक्षिण हो, स्वच्छता आवश्यक है। साधक तेल का दीपक लगाएं और किसी भी पात्र (लोहे का छोड) में पद्मावती यंत्र के चारों ओर क्रम से एक हकीक और एक गोमती चक्र गोलाई में रख दें तथा मूंगे की माला से निम्न मंत्र का एक माला मंत्र जप करे। यह तीन दिवसीय साधना है।
मंत्र जप के मध्य दीपक बुझे नहीं तथा आस-पास कोई पदचाप या डरावनी स्थिति अनुभव हो तो चिंता की कोई बात नहीं, यह तो संकेत है कि आप पर जो तंत्र प्रयोग अथवा बाधा प्रयोग है उसका निराकरण हो रहा है। प्रयोग के पूर्ण होने पर समस्त सामग्री को लाल वस्त्र में बांध कर घर से काफी दूर दक्षिण दिशा में फेंक दें ओर हाथों-हाथ इस दुर्लभ साधना का प्रभाव अपने व्यापार में अनुभव कर लाभ उठाए। इस साधना से यदि किसी ने आपका व्यापार बांध दिया है अथवा कोई तांत्रोक्त प्रयोग है तो वह भी दूर होता है।
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