शिष्य एक ऐसा पद होता है, जिसके समक्ष समस्त ब्रह्माण्ड की तेजस्विता नगण्य होती है, जिसके समक्ष प्रकृति हाथ बांध कर खड़ी होती है। वह साक्षात् गुरुदेव का प्रतिरूप होता है किन्तु ध्यान रहे, केवल प्रतिरूप, स्वयं गुरु नहीं। गुरु को जब अपने कार्यों को विस्तार देना होता हे, सृष्टि में कुछ नूतन घटित करना होता है, तभी वे स्वयं को शिष्य पद के माध्यम से विभकत कर, स्वयं को ही स्पष्ट करते हें।
लेकिन सामान्य व्यक्ति यह नहीं जानता कि वह अपने जीवन में क्या क्रिया सम्पन्न करें जिससे सिद्धि प्राप्त कर सके। पुस्तकों के अध्ययन से पातंजली योग सूत्र का नाम सबसे पहले आता है जिससे सिद्धि प्राप्त करने के लिये अष्टांग योग के महत्व को स्पष्ट किया गया है। अष्टांग योग के विविध सोपान हें।
जीवन संकल्प-विकल्प के बीच झूलता रहता है। विकल्पों के बाहर निकलकर इच्छाशक्ति अथवा संकल्प शक्ति ही शिष्य का निर्माण करती है। शिष्य का समर्पण भाव ही गुरु शक्ति से कृपा प्राप्त करने में सफल होता है। तभी व्यक्ति की प्राण शक्तियां केन्द्रीभूत हो सकती हें, पाप क्षय का मार्ग प्रशस्त हो सकता हे। गुरु का ज्ञान और शिष्य का कर्म मिलकर, पूर्णता तक पहुंचकर ही प्रकाश को प्राप्त कर सकते हें।
सामान्य रूप से यह माना जाता है कि सिद्धि ईश्वर कृपा से, गुरु कृपा से प्राप्त होती है। महान संतो, गुरुओं, योगियों, ऋषि-मुनियों के जीवन में ईश्वरत्व अवतरित हो जाता है और वे अपने बाल्यकाल में ही ऐसी क्रियाएं सम्पन्न करते हैं, जो सामान्य व्यक्ति के लिये संभव नहीं है। कई सिद्धियां जन्मजात होती हैं और जन्मजात सिद्धियां पूर्व जन्म की साधनाओं से ही फलीभूत होती हैं। कई सिद्धियां,मंत्र साधना-तंत्र साधना, तपस्या, ध्यान, योग के माध्यम से प्राप्त होती हैं। यही सिद्धि तत्व है।
इस संकल्प सिद्धि तत्व और शक्ति तत्व को जानने से ही व्यक्ति में आत्म जागरण होता है, व्यक्ति में सिद्धि तत्व जाग्रत होता है, संकल्प शक्ति द्वारा ही निरन्तरता के भाव से व्यक्ति को भौतिक जीवन में सफलता प्राप्त होती है, व्यक्ति को ज्ञान का मार्ग मिलता है, व्यक्ति का कायाकल्प होता है, व्यक्ति का आध्यात्मिक स्तर बढ़ता है और सबसे विशेष बात यह हे कि उसे अपने जीवन के लक्ष्य का ज्ञान और लक्ष्य की प्राप्ति होती है और यह सब जिस क्रिया के द्वारा होता है उसी को नवसिद्धि आत्म जागरण दीक्षा की संज्ञा दी गई हें।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर “नवसिद्धि आत्म जागरण दीक्षा’ उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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