यह परिवर्तन काल के अन्तर्गत ही होता है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा भी है- ‘कालः कलयता महम्’ ‘कालोऽस्मि लोकक्षयकृत प्रबुद्धः।’ यह काल भी सूर्य के वशवर्ती होकर चलता है।
इसी प्रकार शुभ मुहूर्त या अभिजित मुहूर्त में किये गए कार्य हमेशा सफल होते हैं, चाहे ओर कितने ही दोष क्यों न हो। अभिजित मुहूर्त समय या ‘अभिजित् लग्न’ उन समस्त दोषों का नाश कर देता है। समस्त शुभ कार्य करे, पर ऋण नहीं देना चाहिए। लेन-देन उधारी नहीं करना चाहिए।
अक्षय तृतीया का महत्व दीपावली के सिद्ध मुहूर्त स्वरूप ही है। अक्षय तृतीया दिवस में सबसे बड़ा गुण यह हैं कि पूरे वर्ष में कोई भी तिथि क्षय हो सकती है लेकिन यह वैशाख शुक्ल पक्ष की यह तृतीया तिथि कभी भी क्षय नहीं होती यह पूर्ण अक्षय लाभ युक्त रहती है। कई बार नवरात्रि में तिथि क्षय हो जाती है, दीपावली चतुर्दशी और अमावस्या के बीच दिवस में होती है। कोई भी शुभ कार्य में तिथि टूटी हुई हो तो वह भद्रा योग होता है। लेकिन अक्षय तृतीया और विजय दशमी की तिथि कभी भी क्षय नहीं होती।
राम ने मानव शरीर धारण कर जब अपने जीवन की क्रिया में विजयादशमी के दिन ही रावण संहार के साथ-साथ राक्षसों को पूर्ण रूप से समाप्त किया तो एक नया अध्याय जुड़ा और राम भारतीय संस्कृति के जनमानस की चेतना के नायक बने और वे मर्यादा पुरूषोत्तम कहलाये। विजयदशमी केवल एक पर्व नहीं है, यह विजय सिद्धि दिवस है।
इस दिन राम ने असुर रूपी रावण का संहार किया था ठीक उसी तरह से हमारे भी जीवन में दस सिर रूपी शत्रु निरन्तर जीवन में बने रहते है। उनके संहार के लिए हमें राम रूपी पुरूषोत्तम मय शक्ति से युक्त होना आवश्यक है और यह शक्ति कोई युवा होने से अथवा शारीरिक बल से प्राप्त नहीं होती बल्कि उसके साथ-साथ शारीरिक, मानसिक, आत्मिक शक्ति तथा गूढ़ ज्ञान, बुद्धि होना आवश्यक है। और ये सब क्रियायें गुरु के चिंतन और निरन्तर मार्ग दर्शन से ही प्राप्त करके सैंकड़ो-सैंकड़ो कुस्थितियों को जड़-मूल से समाप्त किया जा सकता है।
जीवन में अजेय रहने का तात्पर्य है, प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना, साथ ही उसमें लक्ष्य सिद्धि अवश्य प्राप्त हो। विजयादशमी ही एक ऐसा सिद्ध मुहूर्त पर्व है, जो साधना के माध्यम से प्राणों में ऐसी शक्ति भरता है, कि वह स्वयं पूर्ण चैतन्यमय होकर क्रियाशील होता है।
विजयादशमी जीवन में विजय को आह्नान करने का दिवस है, जिससे आपको अपने प्रत्येक कार्य में विजय ही प्राप्त हो, शत्रुओं पर आपका ऐसा तेजस्वी प्रभाव पड़े, कि वे आपके सामने झुके ही रहें।
वर्ष में श्रेष्ठतम सिद्ध मुहूर्त में विजयादशमी पूर्ण चैतन्य युक्त होती है, इस दिन किसी विशेष योग, चौघडि़याँ, काल देखने की आवश्यकता नहीं होती है। ये दिवस पूर्ण चैतन्य और शक्ति से पूर्ण होते हैं। इन दिवस में किया गया कार्य निश्चित रूप से पूर्णतः सफल होता है।
विजय दशमी पर्व पर नूतन गृह प्रवेश या व्यापार प्रारम्भ करना, शिक्षा, ज्ञान, साधना प्रारम्भ करने में और अनेकानेक शुभ कार्यों को प्रारम्भ करने का यह विजय दशमी महापर्व श्रेष्ठतम मुहूर्त दिवस होता है जो शीघ्र फल कारक और पूर्ण विजय कारक स्वरूप होता है।
जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु सर्वथा विजयश्री सिद्ध योग दिवस पर रावण कृत स्वर्ण खप्पर दीक्षा प्राप्त करने से निश्चिंत रूप से पूर्णता की
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