भारत वर्ष में गुरु परम्परा आदि काल से चली आ रही है। गुरु अपना ज्ञान शिष्यों को प्रदान करते रहते हैं और वे शिष्य अपना ज्ञान अगली पीढ़ी को देते रहते हैं। आदि गुरु शंकराचार्य के गुरु गोविन्दपादाचार्य थे। शंकराचार्य, जिनका जीवन पादपद्म ने जहर देकर अंत कर दिया था, उस समय से ही शिष्य शब्द सबसे अधिक बदनाम हुआ। इतिहास साक्षी है कि आज तक किसी भी सद्गुरु ने अपने शिष्य को धोखा नहीं दिया है, केवल ज्ञान ही ज्ञान प्रदान किया है। धोखा प्राप्त हुआ है तो शिष्य द्वारा गुरु को धोखा प्राप्त हुआ है। उसके उपरान्त भी क्षमा गुरु द्वारा ही शिष्य को प्रदान की गई है।
आदि गुरु शंकराचार्य ने चार धाम की स्थापना की, चारों धामों पर एक-एक शिष्य- विश्वरूपाचार्य, पद्मपादाचार्य, त्रेटकाचार्य एवं पृथ्वीधराचार्य को नियुक्त किया। मठ के प्रधान चार आचार्यों में विश्वरूपाचार्य के तीर्थं तथा आश्रम नामक दो शिष्य, पद्मपादाचार्य के वन और अरण्य नामक दो शिष्य, त्रेटकाचार्य के गिरि, पर्वत, सागर, नामक तीन शिष्य, तथा पृथ्वीधराचार्य के सरस्वती, भारती, पुरी नामक तीन शिष्य सब मिलाकर इस समुदाय के दस शिष्यों द्वारा दस सम्प्रदाय बने। इस प्रकार इन नामी संन्यासियों को अपने सम्प्रदाय के अनुसार साधना करनी पड़ती है और तद्नुरूप उपाधि प्राप्त होती है। उनमें गिरि, भारती और पुरी सम्प्रदाय के साधकों ने स्थान-स्थान पर फैलकर ज्ञान का प्रचार प्रसार किया। उन्हें नाथ कहा गया और इन्हें भी नाथ संप्रदाय के अनुयायियों ने आगे जन जीवन तक फैलाया। उस समय भारतवर्ष की स्थिति अत्यन्त ही विचित्र थी। बाहरी लोगों के आक्रमण होते जा रहे थे। उनकी संस्कृति भारतीय संस्कृति कही जा सकती है, वह पनप रही थी, जो अपने आपमें संशय में थी और जो वैदिक संस्कृति को भी पूर्णरूप से अपनाने में असमर्थ हो रही थी और नई संस्कृति को भी पूरी तरह से पचा नहीं पा रहे थे। उसके साथ ही साथ एक विशेष स्थिति यह बनी की ब्राह्मणों ने धर्म के नाम पर वितण्डावाद फैलाना शुरू कर दिया। मानों धर्म पर उनका ही एकधिकार हो और साथ ही साथ वर्ण व्यवस्था का ऐसा अज्ञान फैलाया की समाज कई टुकड़ों में बंट गया। धर्म के नाम से ही लोगों को चिढ़ होने लगी।
ऐसे समय में नाथ सम्प्रदाय के योगियों ने वैदिक मंत्रों को, जो ब्रह्मा के मुख से उद्घोषित हुए, उन्हें जनजीवन की भाषा में नाथ सम्प्रदाय के योगियों ने जन जीवन को प्रदान किया, जिससे जनजीवन अपने धर्म को पूर्ण रूप से समझ सकें और साधना के माध्यम से अपने जीवन को उच्चता की ओर ले जा सकें। अतः मूलरूप से साबर मंत्र भगवान शिव के द्वारा उद्घोषित मंत्र ही हैं।
इन मंत्रों की पांच निम्न विशेषताएं है
1- ये मंत्र संस्कृत भाषा में लिखे हुए नहीं है, अपितु सीधे सादे सरल भाषा में होने की वजह से कम पढ़ा लिखा साधक भी उस प्रकार की साधना कर सकता है।
2- इन साधना में ज्यादा काम, धर्म या नियम-उपनियम की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए साधना में गलतियां होने की सम्भावनाएं कम ही होती है।
3- इन साधनाओं से किसी प्रकार की हानि नहीं होती। यदि मंत्र जप पूरा न हो या कोई त्रूटि भी रह जाये तब भी साधक को इसका विपरीत असर प्राप्त नहीं होता।
4- ये मंत्र भगवान शिव के द्वारा प्रतिपादित और गुरु गोरखनाथ द्वारा प्रचलित हैं, अतः तुरन्त सिद्धिदायक तथा कार्य में सफलता युक्त हैं।
5- साबर साधनाओं में शीघ्र सफलता प्राप्त होती है और उसका प्रयोग भी आसान होता है, जिससे कि साधक को जल्दी लाभ प्राप्त होता है।
साबर साधनाओं में निश्चित सिद्धि किस प्रकार कई बार लोगों को साबर साधना में असफलता मिल जाती है जिसका कारण इनसें सम्बन्धित षट्कर्म न जानने की क्रिया है। साबर सिद्धि में ये षटकर्म आवश्यक हैं और गुरु गोरखनाथ ने गोपनीय कूट शैली में इन षट्कर्म का विस्तार से विवेचन किया है, जो कि साबर साधनाओं का आधार तथा प्राण है।
यदि साधक साबर साधना से पूर्व इन षट्कर्मों को जान लें और फिर साधना करे तो निश्चय ही उसे सिद्धि प्राप्त होती है। ये षट्कर्म प्रैक्टिकल होते हैं, जो कि गुरु के चरणों में बैठ कर ही सीखे जा सकते हैं। साबर साधानाओं की सिद्धि के लिए प्रेरित षट्कर्म
1- साबर साधनाओं को प्रारम्भ करने से पूर्व व्यामोह क्रिया सम्पुटित रूप से सम्पन्न करनी चाहिए।
2- व्यामोह क्रिया के बाद भैरव उत्थान तथा भैरव समापन आवश्यक है, जिससे कि साधना में सफलता मिले।
3- वटयक्षिणी प्रयोग सम्पन्न कर द्वादश मुद्राओं का प्रदर्शन करें।
4- इसके बाद उर्ध्व विरोचन क्रिया सम्पन्न करें।
5- तत्पश्चात मंत्र प्राण सम्पुटित एवं आत्म प्राण सम्पुटित समन्वय करें।
6- अन्त में मंत्र का रेचन, प्रणयन और कुम्भन करें, जिससे कि हर हालत में सिद्धि मिले ही।
वास्तव में ये षट्कर्म गोपनीय रहे हैं पर अनुभव यह आया है कि यदि इन षटकर्मो का प्रयोग कर साधना प्रारम्भ की जाये तो निश्चय ही सफलता मिलती है।
साबर प्रयोग अपनी विविधता, प्रामाणिकता और अचूकता के लिए विख्यात है। इनका प्रभाव तुरन्त और शीघ्र होता है। जैन साहित्य में भी साबर मंत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है और इस बात को स्वीकार किया है कि ये मंत्र दिखने में भले ही सीधे, सरल और सामान्य प्रतीत हों, परन्तु इनका अचूक प्रभाव होता है।
प्रस्तुत अंक में जैन आचार्यों द्वारा रचित कुछ विशेष साबर साधनाएं दी गई हैं जिनके प्रभाव का अनुभव इन साबर साधनाओं को सम्पन्न करके ही किया जा सकता है। पूरे जैन साहित्य में सैंकड़ों-हजारों उदाहरण दिए गये हैं जिससे यह पता चलता है कि उच्च कोटि के योगियों, यतियों और मुनियों ने साबर मंत्रों के माध्यम से समाज का दुःख दूर किया है और उनके कार्य सुधारे हैं। कई बार इन प्रयोगों को आजमाया है और प्रत्येक बार ये प्रयोग सिद्ध हुए है। जैन साहित्य में से कुछ महत्वपूर्ण प्रयोग दे रहा हूं जो कई बार आजमाये हुए हैं और जिनका असर प्रत्येक बार प्रामाणिकता के साथ सफल अनुभव हुआ है।
व्यापार वृद्धि, बिक्री बढ़ाने और निरन्तर लाभ होने के लिए इन प्रयोग को प्रामाणिक बताया गया है। बुधवार के दिन अपने सामने ‘समुद्र फेन गुटिका’ किसी पात्र में रख दें और उसके सामने ‘विजय माला’ से 21 माला मंत्र जप करें। इस प्रकार केवल तीन दिन प्रयोग करें, मंत्र पढ़ते समय सफेद धोती पहने, इसके अलावा शरीर पर अन्य कोई वस्त्र न हो। अपना मुंह पूर्व दिशा में रखे।
प्रयोग समाप्ति के बाद विजय माला गले में धारण कर ले और वह सिद्ध की हुई ‘समुद्र फेन गुटिका’ दुकान में या गल्ले में अथवा जहां पर रूपये पैसे रखते है, वहां रखे तो व्यापार निरन्तर बढ़ता ही रहता है, लक्ष्मी समुद्र से उत्पन्न हुई थी, अतः उस पर यह प्रयोग प्रमाणित रहता है। विजय माला धन धान्य, सौभाग्य वृद्धि, गृहस्थ सुख के मंत्रों से आपूरित होती है, इस प्रकार से पूरी माला गूंथी हुई होती है। वस्तुतः प्रत्येक व्यापारी को यह प्रयोग करना ही चाहिए।
घर में किसी को बुखार आ गया हो, या किसी प्रकार का रोग हो, ऐसी स्थिति बन गई हो कि घर में कोई न कोई रोगी बना रहता हो, रोग पर बराबर चर्चा होती रहती हो और रोग नियंत्रण में नहीं आ रहा हो या बीमारी से परेशान हो गया हो तो यह प्रयोग अचूक माना है।
किसी भी बुधवार को अपने सामने मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित तीन मूंगा दाना रख दे। फिर उस पर जल धार चढ़ाये और फिर दूध से धोकर फिर जल चढ़ाये, जल चढ़ाते समय निम्न मंत्र का 108 बार उच्चारण करें। इसके बाद मूंगे के टुकड़े निकाल कर अलग रख दें और वह दुग्ध मिश्रित जल पूरे घर में छिड़क दें तथा एक चम्मच रोगी को पिला दें।
इस प्रकार मात्र तीन दिन करें तो घर से बीमारी हमेशा-हमेशा के लिए चली जाती है और रोगी को तुरन्त आराम मिलता है।
वस्तुतः यह प्रयोग आजमाया हुआ है और महत्व पूर्ण है।
हमारे सामने नित्य कई समस्यायें और बाधायें उपस्थित होती हैं, इनके समाधान से प्रसन्नता और अनुकूलता प्राप्त होती है, परन्तु ऐसे कार्यों की सम्पन्नता में बाधाएं भी आती रहती हैं। यदि घर से यह प्रयोग करके निकले तो निश्चय ही उसका सोचा हुआ कार्य सफल होता ही है। प्रातः उठकर गणपति बाहु के सामने मात्र ग्यारह बार इस मंत्र का उच्चारण कर लें और प्रार्थना करे कि यह कार्य आज मेरा सिद्ध हो जाये। गणपति के सामने गुड़ का भोग लगा दें, फिर कार्य के लिए घर से निकल जायें तो वह कार्य अवश्य ही सफल होता है, गुड़ का जो भोग लगाया हुआ है, वह घर में या बाहर बांट दें।
वस्तुतः यह सिद्धि प्रयोग है, ‘गणपति बाहु’ बड़ी कठिनाई से प्राप्त होते हैं, परन्तु मंत्र सिद्ध गणपति प्राप्त हो जायें तो जरूर घर में स्थापित कर लेने चाहिए क्योंकि यह प्रयोग कई-कई पीढि़यों तक उपयोगी है और वह गणपति कई पीढि़यों के लिए सहायक बने रहते हैं।
ग्रहों का प्रभाव होता ही है, मगर जैन साहित्य में एक ऐसा भी प्रयोग है, जिससे किसी भी प्रकार के ग्रह का दोष समाप्त हो जाता है, और उसका अशुभ फल मिटकर वह शुभ फल देने लग जाता है।
ताम्रपत्र पर अंकित ‘नवग्रह यंत्र’ को अपने सामने रख दें और निम्न मंत्र की एक माला फेरे। इस प्रकार ग्यारह दिन तक करने से छः महीने तक अशुभ ग्रहों का दोष व्याप्त नहीं रहता, छः महीने बाद ग्यारह दिन का पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
यों यदि व्यक्ति चाहे तो नित्य ग्यारह बार इस मंत्र का उच्चारण कर ले, तब भी उसके जीवन में ग्रहों की अशुभ बाधा व्याप्त नहीं होती।
वस्तुतः यह आजमाया हुआ प्रयोग है और नवग्रह यंत्र के सामने यदि नित्य ग्यारह बार उच्चारण किया जाये, तो उसके सारे काम सफल होते रहते हैं और किसी प्रकार की अड़चन या बाधा नहीं आती।
पहले दो दिन उपवास करें और तीसरे दिन फूल पर 108 बार मंत्र बोलकर वह फूल या पुष्प जिसको भी देंगे वह वश में हो जाता है।
वस्तुतः यह सरल और सुविधाजनक प्रयोग है और इसको आजमाया जा सकता है।
वाग्देवी यंत्र के सामने यदि नित्य एक माला मंत्र जप करें और फिर परीक्षा दें तो वह परीक्षा में पास होता है अथवा नित्य इस मंत्र की एक माला फेरे तो वह जो भी पढ़ता है उसे कंठस्थ हो जाता है और वह भूलता नहीं।
वस्तुतः यह मंत्र विद्यार्थियों के लिए और किसी भी प्रकार की प्रतियोगी या विभागीय परीक्षा देते समय विशेष रूप से उपयोगी है। यह आवश्यक है कि यह मंत्र जप वाग्देवी यंत्र के सामने ही किया जाये जो कि मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो।
ऐसी कई समस्याएं या प्रश्न विचारणीय होते हैं जिनके बारे में तुरन्त निर्णय लेना होता है।
इस प्रयोग में रात्रि को पलंग पर बैठकर अपना प्रश्न कागज पर लिखकर तकिये के नीचे रख दें और फिर पलंग पर बैठे-बैठे ही 21 बार इस मंत्र को पढ़कर सो जाये तो रात्रि को स्वप्न में उस प्रश्न का शुभाशुभ हल दिखाई दे जाता है और उसके अनुसार कार्य करने पर सफलता मिलती है।
वस्तुतः यह जीवन में आजमाया हुआ प्रयोग है और इससे जटिल प्रश्नों के उत्तर आसानी से प्राप्त हो जाते हैं।
‘सर्व सम्मोहन गुटिका’ और पुरूष या स्त्री के पैरों की धूल या कंकर हाथ में लेकर साठ बार मंत्र बोलकर वह गुटिका और धूल को पुरूष या स्त्री पर डाले अथवा जमीन में गाड़ दे तो निश्चय ही वह पुरूष या स्त्री जीवन भर वश में रहती है।
यह प्रयोग आजमाया हुआ है, और निश्चय ही इसमें सफलता प्राप्त होती है।
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