माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी कारण ग्रहों की कुदृष्टि का शिकार होता ही है। लेकिन इस तरह की स्थितियों में भी यदि किसी ग्रह की मजबूत स्थिति आपको सशक्त बनाती है, तो उस दुष्ट ग्रह का प्रभाव क्षीण हो जाता है, अर्थात् दुष्ट ग्रहों को बल पूर्वक अथवा उपासना के माध्यम से अपने अनुकूल बनाया जाता है। परन्तु बल पूर्वक तभी बनाया जा सकता है, जब नवग्रहों का स्वामी सूर्य सशक्त हो, सूर्य ग्रह को अपने जीवन में पूर्ण तेजस्वी और चेतना युक्त बनाने का श्रेष्ठ दिवस सूर्यग्रहण काल ही है। ग्रहों के अनुकूल होने पर व्यक्ति को अतिरक्ति बाधाओं के दबाव से निजात मिलती है, साथ ही सांसारिक समस्याओं व विशेष रूप से शनि व मंगल कुदशा से सुरक्षित रहता है।
मानव जीवन पर सूर्य का प्रभाव सर्वाधिक होता है, इसलिये सूर्यग्रहण पर ऐसी दीक्षाओं से जीवन प्रकाश युक्त बनता है, ऐसे चेतनावान दिवस का उपयोग निश्चित ही साधनात्मक दृष्टि से सर्वलाभकारी होगा।
इस दीक्षा से व्यक्ति के नवग्रह अनुकूल फल प्रदान करते हैं, साथ ही यह दीक्षा साम्फल्य सफलता प्रदायक शक्ति से आपूरित है जिसके माध्यम से बाधाओं, अवरोधों का निवारण होता है और व्यक्ति सफलता के उच्चतम स्थितियों को प्राप्त करने की चेतना से आप्लावित होता है।
मनुष्य को शिव स्वरूप कहा गया है और वह हर समय किसी न किसी रूप में शक्ति पर ही आधारित रहता है। उसके जीवन में निर्माण शक्ति, क्रिया शक्ति, ज्ञान शक्ति, अधिकार शक्ति, प्रेम शक्ति, आनंद शक्ति, संहार शक्ति, अर्थात् शक्ति के सारे स्वरूप आवश्यक है, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य का जीवन बहु आयामी होता है। उसके जीवन मे रंग, तरंग, उमंग है तो कभी हताशा-निराशा, परेशानी भी है। ये सारी स्थितियाँ मनुष्य को विचलित करती हैं और व्यक्ति अपने कार्यो का समाधान नहीं कर पाता तथा उन्हें स्थितियों में अनुकूल प्राप्त नहीं होती है, तो अपने जीवन को निराशमय अंधकार स्वरूप में निर्मित कर लेता है।
इस हेतु मनुष्य को जीवन में नव स्वरूपों में सर्व शक्ति नवदुर्गा की आवश्यकता होती है। जिनकी अभ्यर्थना, साधना, दीक्षा से मनुष्य अपने जीवन की शक्तिहीनता को समाप्त करते हुये ही अपूर्ण इच्छाओं, मनोकामनाओं को शीघ्रता के साथ पूर्ण करने में सहायक होता है और साथ ही आरोग्यता, शतायु जीवन, सुहाग सौभाग्य, संतान सुख, कार्य, रोजगार, व्यापार, कृषि, धन लक्ष्मी युक्त योग भोग सुशक्तियों से युक्त होता है।
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