“तो क्या शक्तिशाली होना आपको विजयश्री बना देगा? क्या शक्ति-सामर्थ होने से आपके दुःख-कष्ट समाप्त हो जायेंगे!”
शक्ति का सही अर्थ तो ईश्वर का वो निराकार स्वरूप है जो सुजन करता है, मानवता को जन्म देता है, हमारा पालन पोषण करता है, जिसे हम शक्ति स्वरूपा, मॉ स्वरूपा में पूजते हैं।
माँ कभी नहीं चाहेगी कि उनकी सन्ता्न अभागी हो, दौन-हीन हो या कोई कष्ट में हो। आपकी दिनहीनता तो आपके कर्म न करने के कारण हो रही है, आपके सदकर्म न करने के कारण हो रही है, गलत का विरोध न करके, सही का उपहास करने के कारण हो रही है।
माँ का काया स्वरूप कोई बलशाली – विशाल काय – भयवान – रोद्र नहीं अपितु सौम्य व वात्सल्यमय है परन्तु उनमें व सामर्थ है कि वे अन्याय-गलत पर अपनी सन्तान के लिये भक्तों के लिये दुर्गा – काली -चण्डी का रूप भी धारण करती है। तो गलत आपकी परिस्थिति नहीं आपकी कर्महीनता थी, आपके साथ गलत इसलिये हुआ क्योंकि आपने उसका सामना नहीं किया, आपके साथ कोई इसलिये नहीं खड़ा था क्योंकि आपमें डर-भय का भाव था। सामर्थ्य तो सभी में होता है परन्तु गलत होता देख अपना मुँह मोड़ लेना,व अपने समक्ष होते देखना ही आपके पतन का कारण है।
शक्ति शारीरिक नहीं अपितु अंतर्मन व आत्म शक्ति होती है जो इस भय को, उस संकोच को भुलाकर सही करने को प्रेरित करती है।
गलत व सही तो अतीत था उसे कोई नहीं बदल सकता लेकिन भविष्य में गलत नहीं होगा ये आपके सामर्थ पर आपके कर्म पर निर्भर करता है। जो हो गया उसके बारे में सोचकर समय बर्बाद मत कीजिये, आपके साथ कोई गलत करने से पहले कोई सौबार सोचे व कभी यह हिम्मत भी न कर सके, यह सामर्थ्य गुरूदेव के हर साधक में हो, प्रत्येक साधक भैरव, काली, जैसा सामर्थ हो साथ ही हनुमान जैसा शालीनता और भक्ति हो। आने वाले नूतन वर्ष में ऐसी ही चेतना से सरोबार होने के लिये 27-28-29 दिसम्बर को बिलासपुर (छ .ग.) में नवग्रह युक्त शनि संताप दोष निवृत्ति नूतन वर्ष सर्वमंगला गौरी सुखदा प्राप्ति साधना दीक्षा महोत्सव में आप सपरिवार आयेंगे तो सुश्रेष्ठ होगा।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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