2- गुरु के निर्णय ओर आदेश के अनुसार दीक्षा ग्रहण की जाये तो श्रेष्ठ रहता है।
3- जीवन के रहस्यो को समझने के लिए, उच्चता प्राप्ति के लिए तथा बार-बार जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति के लिए दीक्षित होना आवश्यक है।
3- जितने भी महापुरुष हुए है, चाहे वह कृष्ण हो, चाहे वह राम हो अथवा विश्वामित्र हो, सबने सद्गुरु से दीक्षा प्राप्त कर पूर्णता प्राप्त की।
4- दीक्षा संस्कार आज के युग में जीवन का अद्वितीय सौभाग्य है जिसके माध्यम से आज के युग में मुरझाये लोगों के चेहरों पर नई उमंग व चेतना आ सकती है।
5- दीक्षा के माध्यम से भोग तथा मोक्ष दोनो की प्राप्ति संभव है।
6- दीक्षा का उद्देश्य जीवन को ऊंचाई पर उठाना है, जो कि प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिए और जीवन में यदि सार्थकता प्राप्त नहीं कर सकें तो जीवन का कोई अर्थ नहीं।
7- दीक्षा के प्राप्त होने से व्यक्ति जब अपने दैनिक मंत्र जप साधना में बैठता है, साधक में अदम्य साहस, सब कुछ करने की क्षमता आ जाती है और वह निर्भय होकर कार्य करने लगता है, साथ ही गृहस्थ की सभी समस्याओं का निराकरण होने लगता है।
8- वे साधक सौभाग्यशाली होते है, जो सद्गुरु से श्रेष्ठ दीक्षाएं प्राप्त, करने का सौभाग्य प्राप्त करते है।
9- आज के युग में जहां सर्वत्र भयावह स्थिति बनी हुई है, कब क्या घटना हो जाये, ऐसी स्थिति में दीक्षाएं प्राप्त करनी चाहिए ताकि व्यक्ति विषम से विषम परिस्थितियों में सुरक्षित अनुभव कर सके तथा सफ़लता प्राप्त कर सके।
10- अगर व्यक्ति समय-समय पर श्रेष्ठ गुरु से उचित दीक्षाएं प्राप्त करता रहे तो असफ़लता एवं बाधाएं उसके जीवन में व्याप्त हो ही नहीं सकती तथा वह निरंतर उच्चता एवं श्रेष्ठता की और बढ़ता रहता है।
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